गाजियाबाद,बिना टेंडर जल निगम को दिया 10 ट्यूबबेल का काम,1.04 करोड़ ज्यादा किया भुगतान

गाजियाबाद। नगर निगम में अब नलकूप घोटाला सामने आया है। नगर निगम (जलकल विभाग) के इंजीनियरों ने 14.38 लाख में रिबोर होने वाले नलकूप का ठेका बिना टेंडर जारी किए जल निगम को 23.23 लाख रुपये में दे दिया। नगर निगम ने जल निगम से हाल ही में 9 नलकूप रिबोर कराए हैं। यही नहीं नया नलकूप लगाने की एवज में भी जल निगम को 24 लाख रुपये ज्यादा का भुगतान किया गया है। नगर निगम ने महज 10 नलकूपों को लगाने के लिए जल निगम को 1.04 करोड़ रुपये ज्यादा का भुगतान कर दिया है और वो भी बिना टेंडर जारी किए। आरोप है कि नियमों को धता बताकर लगवाए गए नलकूपों के एवज में किए गए 1 करोड़ से ज्यादा भुगतान के एवज में निगम के कुछ अधिकारियों और एक जनप्रतिनिधि ने 50 लाख रुपये का गोलमाल किया है।

भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने बुधवार को प्रेसवार्ता कर यह गंभीर आरोप निगम अधिकारियों पर लगाए। उन्होंने इसकी शिकायत सूबे के मुख्य सचिव और नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव के अलावा मंडलायुक्त, डीएम के पास भेजकर मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है।

राजेंद्र त्यागी ने बताया कि नगर निगम ने 2020-21 में अब तक 19 नलकूपों को रिबोर कराया है। प्रत्येक नलकूप के रिबोर के लिए अनुमानित राशि 18 लाख रुपये तय की गई थी लेकिन ठेकेदारों ने इससे भी कम रेट पर रिबोर करने के लिए निविदा डाली। ई-टेंडर में 8 से 25 प्रतिशत तक कम दरों पर टेंडर आए थे। यानी नगर निगम को प्रत्येक नलकूप के रिबोर पर औसतन 3.5 से 4 लाख रुपये की बचत हुई थी। इसी तरह से नए डीप बोरवेल की अनुमानित राशि 32 लाख रुपये तय की गई थी लेकिन निगम ठेकेदारों ने इस काम को सिर्फ 23.60 लाख रुपये में किया।

अब नगर निगम के जलकल विभाग ने 9 नलकूपों को रिबोर और एक नया डीप बोरवेल लगाने का काम 2.58 करोड़ रुपये में दिया। पार्षद राजेंद्र त्यागी का कहना है कि नगर निगम के ठेकेदार इस काम को 1.04 करोड़ रुपये कम यानी महज 1.54 करोड़ रुपये में करने के लिए तैयार थे। नगर निगम के जलकल विभाग में तैनात ठेकेदारों ने इसके लिए बीते दिनों नगर आयुक्त को संयुक्त रूप से पत्र भी दिया था। उनका आरोप है कि नगर निगम के अधिशासी अभियंता (जल) योगेंद्र यादव ने नियमों को ताक पर रखकर जल निगम को ठेका दे दिया जबकि जल निगम भी प्राइवेट ठेकेदारों से काम कराता है और नगर निगम भी।

नगर निगम खुद ई-टेंडर जारी करता तो निगम को 1.04 करोड़ रुपये का नुकसान न होता। मिलीभगत इस कदर थी कि नगर निगम ने जल निगम को पूरी धनराशि एडवांस में ट्रांसफर कर दी जबकि प्राइवेट ठेकेदार को काम पूरा होने के बाद भुगतान किया जाता है। प्राइवेट ठेकेदारों से जमानत राशि ली जाती है लेकिन नगर निगम ने जल निगम से जमानत राशि भी जमा नहीं कराई।

एक जनप्रतिनिधि के इशारे पर हुआ घोटाला
भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी का कहना है कि यह पूरा घोटाला नगर निगम के अधिशासी अभियंता और एक जनप्रतिनिधि के इशारे पर हुआ है। 1.04 करोड़ रुपये ज्यादा भुगतान करके जल निगम के अधिकारियों से सेटिंग की गई है। आरोप है कि इस 2.58 करोड़ के काम में 50 लाख रुपये से ज्यादा की रकम की बंदरबांट हुई है। निष्पक्ष जांच हुई तो स्थिति साफ हो जाएगी।साभार-अमर उजाला

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