कहां जाती हैं ‘गायब’ हो जाने वाली लड़कियां, कितनों की हो पाती है घर वापसी-जानिये

समयपुर बादली की पुलिसकर्मी सीमा ढाका ने 76 बच्चों को उनके माता-पिता से वापस मिलाकर बेहद सराहनीय काम किया है। लेकिन गायब होने वाले या अपहरण किये जानेे वाले 50 फीसदी से ज्यादा बच्चे इतने भाग्यशाली नहीं होते कि वे दुबारा अपने माता-पिता का साया पा सकें। अनेक स्तर पर होने वाली लापरवाही के कारण वे हमेशा के लिए किसी के ‘गुलाम’ बन जाते हैं या उनको अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता है। गायब होने वाले बच्चों में सबसे ज्यादा संख्या लड़कियों की होती है, जिनकी या तो जबरन किसी से शादी करा दी जाती है या उन्हें यौन अपराध में धकेल दिया जाता है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में पूरे देश में 1,05,037 लोगों का अपहरण किया गया था। जबकि 2018 में 1,05,734 और 2017 में 95,893 लोगों का अपहरण किया गया था। यानी पिछले तीन सालों से यह आंकड़ा लगभग एक लाख के आसपास रिपोर्ट किया जा रहा है। 2019 में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 16,590 और महाराष्ट्र में 11,755 लोगों का अपहरण किया गया। इसके बाद बिहार में 10,707, मध्यप्रदेश में 9812, असम में 9432, राजस्थान 8058 और पश्चिम बंगाल में 5191 लोगों का अपहरण किया गया।

अपहरण के अपराधों में सबसे ज्यादा निशाना बच्चों को बनाया जाता है। इनमें भी बच्चियां अपराधियों के सबसे ज्यादा निशाने पर रहती हैं। 2019 में अपहरण के कुल अपराधों में 71,264 मामलों में 18 साल से कम उम्र के बच्चों का अपहरण किया गया। इनमें लड़कों की संख्या 15,894 और लड़कियों की संख्या 55,370 थी। अपहृत होने वाली सबसे ज्यादा लड़कियों की उम्र 12 से 18 वर्ष के बीच थी। आशंका है कि इन लड़कियों का अपहरण जबरदस्ती विवाह करने या यौन अपराधों के लिए किया जाता है।

कितनों की हो पाई वापसी
वहीं, अपहरण के मामलों में बच्चों की घर वापसी पुलिस के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण कार्य साबित हुआ है। दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के आंकड़ों के मुताबिक अकेले राजधानी में वर्ष 2019 में 22,567 बच्चे गायब हो गए या उनका अपहरण किया गया। लेकिन इनमें से केवल 12,996 बच्चों की ही घर वापसी हो पाई। यानी लगभग 57.5 फीसदी बच्चे ही दुबारा अपने घरों को लौट पाए।

इसी प्रकार इस वर्ष 31 जुलाई तक 3376 बच्चे अपने घरों से गायब हो चुकेे हैं, या उनका अपहरण कर लिया गया है। इनमें से अब तक 2226 बच्चों को खोजकर उनके परिवार वालों से वापस मिलाया जा चुका है।

क्यों नहीं हो पाती वापसी
बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार बच्चों के खोने के मामले में पुलिस अधिकारियों की लापरवाही सबसे ज्यादा खतरनाक साबित होती है। पहले पुलिस इस तरह के मामले संवेदनशीलता के साथ दर्ज नहीं करती है। बाद में इन्हें खोजने के लिए भी अपेक्षित प्रयास नहीं किए जाते। बच्चियों के मामले में पुलिस का रवैया यही रहता है कि ‘लड़की किसी के साथ भाग गई होगी’। इस तरह के मामलों में होने वाली देरी बच्चों को हमेशा के लिए गुम हो जाने का रास्ता तैयार कर देती है।

संवेदनशील समाज ही बच्चों को देगा बेहतर भविष्य
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने अमर उजाला से कहा कि अगर समाज के लोग और सुरक्षा में जुड़े अधिकारी बच्चों की समस्याओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनेंगे तो यह दुनिया बच्चों के लिए ज्यादा बेहतर बन सकेगी। उन्होंने कहा कि समयपुर बादली थाने की पुलिस अधिकारी सीमा ढाका ने एक सराहनीय कार्य किया है जो दूसरे पुलिस अधिकारियों के लिए एक प्रेरणा का काम करेगी। आयोग ने सीमा ढाका के कार्य की प्रशंसा करते हुए एक पत्र दिल्ली पुलिस आयुक्त को लिखा है।साभार-अमर उजाला

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