गाजियाबाद, बाबुओं का 500 करोड़ की जमीन में सेटिंग का खेल-दोनों निलंबित

गाजियाबाद। तनख्वाह सरकारी खजाने से लेकर लाभ निजी पार्टी को पहुंचाने के मामले में कलक्ट्रेट के दो बाबू पर गाज गिरी है। करीब 500 करोड़ रुपये की जमीन से जुड़े प्रकरण में बाबुओं को प्रारंभिक जांच के बाद निलंबित कर दिया गया। साथ ही अग्रिम जांच बैठाकर एफआईआर दर्ज कराने के भी आदेश दे दिए गए हैं। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के बाद कलक्ट्रेट में तैनात बाबुओं को दूसरा बड़ा घोटाला पकड़ा गया। जिसके बाद शासन-प्रशासन में हलचल बढ़ गई है। माना जा रहा है कि संबंधित पटल को देख रहे सीनियर अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है। मामला सीलिंग के तहत निर्धारित जमीन से अतिरिक्त जमीन को सरकारी घोषित करने का है, जिसके के लिए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने को कहा था लेकिन बाबू हाईकोर्ट के आदेश को दबाए बैठे रहे।

अर्थला, डासना, मटियाला, रसूलपुर सिकरोड व दनकौर में कोडंली बांगर में एक परिवार के नाम पर 12.5 एकड़ से जमीन दर्ज होने के बाद उसे सरकारी घोषित किया जाना था। इसे लेकर न्यायालय नियत प्राधिकारी (सीलिंग) गाजियाबाद द्वारा सभी वादों में सम्मलित गांवों की भूमि को सर प्लस यानी अतिरिक्त (सीलिंग) भूमि घोषित किया था, जिसके तहत जमीन पर मालिकाना हक सरकार का था। उत्तर प्रदेश सरकार बनाम सत्यवती प्रकरण में सीलिंग अधिनियम के तहत एडीएम प्रशासन की कोर्ट ने सील आदेश को गलत माना, जिसके बाद न्यायालय अपर आयुक्त मेरठ मंडल के समक्ष प्रकरण गया।

जहां राज्य सरकार की अपील निरस्त कर दी गई। इसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी ने शासन को अवगत कराते हुए माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अपील दाखिल की गई। जहां से पूर्व में जारी आदेशों का प्रभाव रोकने हेतु आदेश पारित हुए। न्यायालय ने आदेश दिया कि राज्य सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में छह माह की अवधि के दौरान एसएलपी दाखिल करे। अब सीलिंग पटल का काम देख रहे बाबू हाईकोर्ट के आदेश को दबाए बैठे रहे। हाईकोर्ट ने 2018 में आदेश दिया था लेकिन आज तक उसमें एसएलपी दाखिल नहीं हो सकी। अब अपील का समय गुजर जाने के बाद सीधे तौर पर दूसरी पार्टी को सीधे तौर पर लाभ मिल गया है।

ब्लैक बॉक्स से हुआ खुलासा-
पूरे प्रकरण का खुलासा कलक्ट्रेट में लगाए गए ब्लैक बॉक्स की मदद से हुई। डीएम को बीते दिनों ब्लैक बॉक्स में किसी अनजान व्यक्ति द्वारा डाला गया पत्र मिला। इसमें पूरे प्रकरण के बारे में लिखा गया। पत्र के आधार पर एडीएम सिटी शैलेंद्र सिंह से जांच कराई तो पूरा प्रकरण सही पाया गया।

जांच के बाद निलंबन व एफआईआर के आदेश-
एडीएम सिटी ने जांच में पाया कि बाबुओं ने हाईकोर्ट के आदेशों को दबाकर दूसरी पार्टी को लाभ पहुंचाया है। मोटे तौर पर इससे करीब 500 करोड़ का सीधे तौर पर सरकार को नुकसान होगा। क्योंकि बाजार मूल्य से जमीन का वास्तविक कीमत इतनी ही बैठेगी। हालांकि एडीएम में मामले की अलग से विस्तृत जांच कराने की भी सिफारिश की। एडीएम की रिपोर्ट में डीएम ने सीलिंग सेक्शन के वरिष्ठ सहायक प्रवीण त्यागी, लिपिक बिजेंद्र कुमार को अपने दायित्वों को निर्वहन न करने व शासकीय कार्यों में लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया। साथ ही विभागीय कार्रवाई और एफआईआर दर्ज कराने का भी आदेश जारी किया। मामले की विस्तृत जांच एसडीएम सदर को सौंप दी गई है।

अब शासन को अवगत कराने के बाद दाखिल करेंगे अपील-
प्रशासन ने अब सारे मामले में नए सिरे से कवायद शुरू कर दी है। पूरे प्रकरण में कार्रवाई के बाद शासन को अवगत कराया जा रहा है। उसके बाद शासन की सलाह से सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की जाएगी लेकिन अब चिंताएं निर्धारित अवधि के बीत जाने को लेकर है। क्योंकि न्यायालय अपील को यह कहकर खारिज कर सकता है कि आप निर्धारित अवधि में क्यों नहीं आए।

ताजा हुईं दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे घोटाले की यादें
करीब तीन साल के बाद जमीन से जुड़ा एक और घोटाला सामने आने के बाद दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे से जुड़े घोटाले की यादें ताजा हो गई है। वर्ष 2017 में तत्कालीन मंडलायुक्त डॉ. प्रभात कुमार ने जांच कराई थी तो तत्कालीन एडीएम भू-अर्जन को भी लिप्त पाया गया था, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर जांच बैठा दी गई। इसमें भी करोड़ों रुपये का खेल हुआ, जिसमें एडीएम भू-अर्जन कार्यालय की मिलीभगत स्पष्ट तौर पर सामने आई।साभार-अमर उजाला

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