बेहतर समाज, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था, बेहतर शिक्षा, बेहतर कानून – बेटियों की है मांग

देश ‘निर्भया’ के दोषियों को सजा दिला कर हाल ही में मुक्त हुआ ही था कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक और ‘निर्भया’! इससे साफ होता है कि लड़कियों के लिए जगह बदल जाती है, हालात नहीं। खबरों के मुताबिक हाथरस की घटना इतनी क्रूरता के साथ की गई है कि जिसने फिर से बेहतर समाज, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था, बेहतर शिक्षा, बेहतर कानून के दावों की पोल खोल दी है। अपराधियों ने पीड़िता के बलात्कार के बाद उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, जबान भी काट दी। हालांकि पुलिस ने बाद में यह कहा कि बलात्कार या जबान काटने जैसी घटना नहीं हुई है। इस बीच आखिर पीड़िता हमारे समाज और निष्क्रिय कानून व्यवस्था के सामने हार गई और उसकी मौत हो गई।

यह घटना इस बात का सबूत है अपराधियों को न तो कानून का भय है और न इस समाज का, जो उन्हें अक्सर स्वीकार कर लेता है। इस घटना के बाद विपक्ष का कहना है कि यह दलितों पर अत्याचार है। यह मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए! खबर यह भी है कि पीड़िता के परिवार के खिलाफ पहले भी अत्याचार किया गया था। तब भी कुछ कार्रवाई नहीं हुई थी। परिणाम आज सामने है। इसलिए अब वक्त आ गया कि सरकारें सिर्फ कड़े कानून बना कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़े, बल्कि उनको प्रभावी तरीके से लागू करवाएं, तभी हम ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगा सकते हैं!सरकार को चाहिए कि अनुसूचित जाति-जनजाति संरक्षण कानून जिनके लिए बनाया गया है, उन्हें इसके बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध कराई जाए। यह कड़वा सत्य है कि दलित समाज का आज भी ऐसा एक बड़ा वर्ग है जो इस कानून का अपने हक में इस्तेमाल नहीं कर पाता है।

ऐसे मामलों में न्यायपालिका खुद अति सक्रिय रहे और मामला जल्द से जल्द निपटाए। तीसरे उपाय में सरकार यह कर सकती है कि डीएसपी स्तर के अधिकारी समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों का निरीक्षण करें, विशेषकर जहां दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग रहते हों और उनसे उनकी समस्याओं के बारे में बात करें। यही बात नगरपालिका, कस्बो नगरों व महानगरों में लागू होती है कि प्रशासनिक अधिकारी पुलिस, एसडीएम स्तर के अधिकारी कॉलेज, स्कूल में हफ्ते भर में जाकर कमजोर तबकों के विद्यार्थियों से, विशेषकर लड़कियों से संवाद करें, क्योंकि खासतौर पर लड़कियां कानून की जटिलता में उलझने से भयभीत रहती हैं और अपराधी के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं करती हैं। अगर उन्हें प्रशासन का सहयोग मिलेगा, तो वे न्याय के लिए आवाज उठा पाएंगी।

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