कोविड19 के बढ़ते संक्रमण के बीच भारत के कुछ जानेमाने वामपंथी अर्थशास्त्रियों और उदारवादियों की तरफ से मोदी के लिए ‘क्रांतिकारी’ मैनिफेस्टो तैयार है। सात पॉइंट का एक चार्टर के इस चार्टर में मोदी सरकार को मौजूदा कोरोना संकट से मुकाबला करने के लिए सुझाव दिए गए हैं क्योंकि देश में गरीबों का काफी बुरा हाल है।
इस चार्टर में कई महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया गया है। इसमें लिखा है कि सरकार ये घोषणा कर दे कि किसी व्यक्ति की जो भी संपत्ति है, इस सब को राष्ट्रीय संपदा घोषित कर दिया जाए लेकिन इसके बाद हस्ताक्षर करने वाले लोगों के बीच ही विवाद हो गया।
जब ये बात सामने आई तो जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि जो इसमें लिखा गया है वो उन्हें मंजूर नहीं है। इसके बाद कुछ धाराओं में बदलाव कर दिया गया। बदलने के बाद कहा गया कि सरकार को ज्यादा से ज्यादा गरीबों की मदद करने के उपाय करने चाहिए और कहा गया कि इमर्जेंसी की तरह पैसा इकट्ठा किया जाए।
चार्टर में कहा गया है कि मजदूर जो वापस गए हैं उन्हें सरकार के खर्चे पर वापस लाया जाए। वहीं कोविड-19 में जो फ्रंटलाइन पर लोग काम कर रहे हैं उन्हें सारी सुविधाएं दी जाएं।
पीडीएस के तहत अनाज, तेल और चीनी भी लोगों को दी जाए लेकिन सरकार को इतना संसाधन इकट्ठा करने और बांटने में काफी समय लगेगा। इससे बेहतर ये होगा कि लोगों के हाथों में पैसा दिया जाए। वहीं जिन लोगों की नौकरी गई है और वो ईपीएफओ में पंजीकृत हैं उन्हें आने वाले 6 महीने के लिए तनख्वाह दी जाए। जो पेंशनधारी हैं उन्हें 2 हजार रुपए महीना दिया जाए और जो छोटे स्तर पर काम करते हैं उन्हें अपना काम फिर से शुरू करने के लिए 10 हजार रुपए दिए जाएं।
इसमें कहा गया कि 3 महीने तक किसी से ब्याज न लिया जाए लेकिन बैंक के पास अगर ब्याज नहीं आएगा तो वो डूब जाएंगे। इस चार्टर में जिन अर्थशास्त्रियों ने हस्ताक्षर किए हैं वो सभी वामपंथी चिंतन वाले हैं लेकिन चार्टर में कई बातें महत्वपूर्ण और जरूरी हैं।
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