24 मार्च को लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद चार सप्ताह में फुटकर और थोक खाद्य पदार्थों के दामों में कम से कम 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है। मुंबई स्थित इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान (आईजीआईडीआर) ने अपने अध्ययन में यह पाया है। अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ‘शहरी खाद्य बाजार और भारत में लॉकडाउन’ शीर्षक अध्ययन को आईजीआईडीआर की एसोसिएट प्रोफेसर सुधा नारायणन और आईजीआईडीआर के रिसर्च एसोसिएट श्री साहा ने तैयार किया है।
इस अध्ययन में देश भर के 114 शहरों में खाद्य पदार्थों के फुटकर और थोक दामों के सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि टमाटर के लिए औसत कीमत 28 फीसदी, आलू के लिए 15 फीसदी, कई किस्मों के दालों के लिए 6 फीसदी से ज्यादा और ज्यादातर खाद्य तेलों के लिए 3.5 फीसदी से ज्यादा दामों में बढ़ोतरी देखी गई।
अध्ययन में कहा गया, ‘आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही और लेनदेन की अनुमति देने वाले दिशानिर्देशों के बावजूद, ऐसा प्रतीत होता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां और नौकरशाही ने खाद्य सुरक्षा बनाए रखने से अधिक लॉकडाउन को लागू कराने के विशेषाधिकार पर जोर दिया है।
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लॉकडाउन के बाद खुदरा खाद्य पदार्थों की कीमतों में हो रही वृद्धि ने 2020 के शुरुआत से हो रही कमी के ट्रेंड को बदल दिया है। कई मैक्रोइकोनॉमिस्टों ने कहा है कि मंदी के रुझान के कारण कीमतें कम होंगी, लेकिन आईजीआईडीआर का कहना है, ऐसा हो सकता है कि खाद्य पदार्थों के दामों में कमी उनमें बढ़ोतरी के बाद हो।
नारायणन ने कहा, ‘कीमतों में इस वृद्धि का मुख्य कारण आपूर्ति की कमी होना और परिवहन की अड़चनें हैं। रेस्टोरेंट से मांग में कमी आने के कारण आपूर्ति में कमी आई और बढ़ोतरी इसलिए हुई क्योंकि घरों में लोग घबराहट में खरीददारी कर रहे हैं और जमाखोरी कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘पुष्टि करने के लिए हमने खुदरा विक्रेताओं से पूछा और उन्होंने मुख्य चिंताओं के रूप में आपूर्ति की कमी और परिवहन अवरोधों की ओर इशारा किया।’
टमाटर जैसे जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के दामों में सबसे अधिक बढ़ोतरी देखी गई, जिसका खुदरा विक्रेताओं के पास उतना स्टॉक नहीं था. चावल और आटे के दामों में मामूली बढ़ोतरी देखी गई जबकि गेहूं के दामों में कमी आ गई। वहीं, छोटे शहर सबसे अधिक प्रभावित हुए क्योंकि वहां अत्यधिक महंगाई देखी गई।
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमाओं को सील करने के कारण कई बागवानी (फल और सब्जियां) किसानों को भारी नुकसान हुआ और अगले चक्र में इन वस्तुओं की पैदावार में कमी रहने की संभावना है, जिससे भविष्य में उनकी कीमतों में वृद्धि होगी।
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