प्रतिबंधित सिंगल यूज़ प्लास्टिक और पॉलिथीन के खिलाफ गाज़ियाबाद के नगर आयुक्त दिनेश चंद्र की सख्ती जग जाहिर है। जब से वे गाज़ियाबाद में आए हैं, शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब उन्होंने या उनकी टीम ने किसी दुकानदार का चालान नहीं काटा हो। चालान की राशि 25 हज़ार रुपए से शुरू होकर कई लाख रुपए तक पहुँच जाती है।
पॉलिथीन की थैलियों और प्रतिबंधित प्लास्टिक सामग्री के प्रति नगर आयुक्त की नाराजगी इस हद तक है कि जब वे चालान काटने पर आते हैं तो यह तक नहीं देखते कि दुकानदार भारत सरकार द्वारा अनुमोदित री-साइकिल्ड प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहा है या नहीं, मानो उन्हें और उनकी टीम को तो बस भारी भरकम चालान करने से मतलब है।
लेकिन, रविवार को नगर आयुक्त की सारी सख्ती उस समय हवा हो गई जब खुद नगर निगम एक पार्षद प्रतिबंधित प्लास्टिक का प्रयोग करते हुए पाए गए। हालांकि नगर आयुक्त 10 हज़ार रुपए का चालान करने पर अड़े रहे मगर पार्षद की दादागिरी के सामने उनकी एक न चली और उन्हें मात्र 100 रुपए के जुर्माने से ही संतोष करना पड़ा।
दरअसल नगर आयुक्त दिनेश चन्द्र रविवार को पूर्वांचल भवन के भूमि पूजन समारोह में भाग लेने पहुंचे। यह समारोह निगम पार्षद पिंटू सिंह द्वारा आयोजित था। नगर आयुक्त ने पाया कि यहाँ हवन सामग्री पॉलिथीन की थैलीयों में रखी हुई थी। बार-बार समझाने के बावजूद भी जब पार्षद ने पॉलिथीन की थैलियाँ नहीं हटाईं तो नगर आयुक्त ने चालान काटने की धमकी दी। चालान की रकम 10 हज़ार रुपए से शुरू हुई मगर भारी जन विरोध को देखते हुए उन्हें मात्र 100 रुपए के चालान से ही संतोष करना पड़ा।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि कोई जन प्रतिनिधि दोषी हो या फिर जनता विरोध पर उतर आए तो क्या जुर्माने की रकम घटाई जा सकती है? अगर हाँ तो यही मापदंड उस दुकानदार पर भी क्यों नहीं लागू होते हैं जिसका हजारों रुपए का चालान काटा जाता है? कहीं नगर आयुक्त यह तो संकेत नहीं दे रहे हैं कि यदि भारी जुर्माने से बचना हो तो दुकानदार भीड़ बुला कर विरोध शुरू कर दें?
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