देव उठनी एकादशी आज, जानिए तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र

गाज़ियाबाद। कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी और शालीग्राम विवाह करवाया जाता है। ये परंपरा ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार मनाई जाती है। इसमें तुलसी को माता लक्ष्मी और शालीग्राम को भगवान विष्णु का रूप मानकर विवाह करवाया जाता है। तुलसी-शालीग्राम विवाह करवाने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी प्रसन्न् होते हैं। इसके साथ ही जिन लोगों के घर में लड़की नहीं है उन्हें कन्यादान करने का पुण्य भी मिल जाता है।

गोधूलि बेला यानी संध्या का समय। पहले जब गायें शाम को जंगल से वापस लौटती थीं तो उसे गोधूलि बेला कहा जाता था। गाय में ही लक्ष्मीजी का वास माना जाता है। इस समय को लक्ष्मीजी का समय भी कहा जाता है। इसलिए इस काल में विवाह और अन्य मांगलिक कार्य किए जाते हैं। 8 नवंबर को गोधूलि बेला में यानी शाम 5 से 5:30 के बीच तुलसी विवाह करना श्रेष्ठ है। वहीं इस बात का ध्यान रखें कि सूर्यास्त के बाद तुलसी विवाह नहीं करना चाहिए।

भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी के विवाह की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया।। लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।। एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंमेता।।

तुलसी और शालग्राम विवाह की विधि

  1. तुलसी के पौधे को सूर्यास्त के पहले ही आंगन या छत पर रख लें।
  2. शुभ मुहूर्त में पौधे के उपर मंडप बनाएं।
  3. एक थाली में शुद्ध जल, चंदन, कुमकुम, फूल, हल्दी, अबीर, गुलाल, चावल, कलावा और अन्य पूजा की सामग्री रखें।
  4. पूजा से पहले तुलसी के गमले में शालग्राम जी का आवाहन कर के शालग्राम को गमले में स्थापित कर दें।
  5. पहले भगवान शालग्राम की पूजा करें। शालग्राम पर शुद्ध जल, चंदन, कलावा, वस्त्र, अबीर, गुलाल और फूल चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शालग्राम को नैवेद्य के लिए मिठाई और अन्य चीजें चढ़ाएं।
  6. इसके बाद तुलसी जी की पूजा करें।
  7. तुलसी देवी पर पूजा और सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
  8. इसके बाद धूप-दीप दिखाकर नेवैद्य लगाएं।
  9. फिर कपूर से आरती करें और 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
  10. तुलसी पर चढ़ाया गया सुहाग का सामान और अन्य चीजें अगले दिन किसी सुहागिन को दान कर देना चाहिए।

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