बोरवेल में दब रही मासूमों की चीखें, जिम्मेदार कौन ?

हरियाणा। हरियाणा के करनाल जिले में कई महीनों से खुले हुए 50 फुट गहरे बोरवेल में गिरी पांच साल की बच्ची के शव को 18 घंटे के ऑपरेशन के बाद सोमवार को राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) ने बाहर निकाला। पुलिस ने बताया कि शिवानी रविवार को घरौंडा ब्लॉक के हरि सिंह पुरा गांव में अपने घर के पास खेल रही थी। इसी दौरान अपराह्न तीन बजे वह बोरवेल में गिर गई थी। परिजनों ने रात करीब नौ बजे जिला प्रशासन को इस घटना की जानकारी दी। एक अधिकारी ने बताया कि बोरवेल में गिरी बच्ची को निकाले जाने के तुरंत बाद करनाल के कल्पना चावला सरकारी मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, लेकिन उसे मृत घोषित कर दिया गया।

बोरवेल बच्ची के घर के पास ही था, जोकि कई महीनों से खुला पड़ा हुआ था। इससे पहले मंगलवार को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में बोरवेल में फंसे एक दो वर्षीय लड़के के शव को 80 घंटे से अधिक बचाव प्रयासों के बाद बाहर निकाला गया था। इसके अलावा इस साल की शुरुआत में पंजाब के संगरूर जिले में 150 फुट गहरे बोरवेल से एक दो साल के बच्चे को छह दिनों की मशक्कत के बाद मृत अवस्था में निकाला गया था।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही का खामियाजा मासूमों को भुगतना पड़ेगा? बार-बार होते ऐसे दर्दनाक हादसों के बावजूद देश में बोरवेल और ट्यूबवेल के गड्ढे आखिर कब तक इसी प्रकार खुले छोड़े जाते रहेंगे। हर बार ऐसी हृदयविदारक घटनाओं से सबक सीखने की बातें दोहराई तो जाती हैं, लेकिन जब ऐसी घटनाएं सामने आती हैं तो पता चलता है कि न तो आमजन ने और ना ही प्रशासन ने इन घटनाओं से सबक सीखा।

क्या है नियम 

बोरवेल में बच्चों के गिरने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 में ऐसे हादसों पर संज्ञान लिया था और दिशा निर्देश भी जारी किए थे। इसके बाद 2013 में सर्वोच्च अदालत ने बोरवेल से जुड़े कई दिशा निर्देशों में सुधार करते हुए नए दिशा निर्देश जारी किए, जिनके अनुसार गांवों में बोरवेल की खुदाई सरपंच और कृषि विभाग के अधिकारियों की निगरानी में करानी अनिवार्य है जबकि शहरों में यह कार्य भूजल विभाग, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम इंजीनियर की देखरेख में होना जरूरी है। इसके अलावा बोरवेल खोदने वाली एजेंसी का रजिस्ट्रेशन होना भी अनिर्वाय है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार बोरवेल खुदवाने के कम से कम 15 दिन पहले जिलाधिकारी, भूजल विभाग, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है।

बोरवेल की खुदाई से पहले उस जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाना और उसके खतरे के बारे में लोगों को सचेत किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा गड्ढों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढकना अनिवार्य है। लेकिन इसके बावजूद सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा बिना सुरक्षा मानकों का पालन किये गड्ढे खोदना और खुदाई के बाद उन्हें खुला छोड़ देने का सिलसिला आज भी जारी है। अदालती दिशानिर्देशॉन के उलंघन पर दंड का भी प्रावधान है, लेकिन ना तो ऐसी घटनाओं के पीछे का कारण पता लगाया जाता है और ना ही इन घटनाओं के जिम्मेदार दोषी को दण्डित किया ह्जता है।  इसके न केवल सरकार बल्कि समाज को भी ऐसी लापरवाही को बरतने से चेतना होगा ताकि ऐसी घटनाएँ दुबारा ना हों।

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