नई दिल्ली। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को कन्याओं को भोजन करने की परंपरा है। क्या आप जानते हैं कन्या पूजन के लिए अष्टमी तिथि ही क्यों इतना महत्वपूर्ण माना गया है। हालांकि कुछ लोग अष्टमी की बजाय नवमी पर कन्या पूजन के बाद उन्हें भोजन कराते हैं। आइए जानते हैं अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने का महत्व और इसके नियम क्या हैं।
अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने के नियम
नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है। यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है। इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है। हालांकि नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है, लेकिन अष्टमी और नवमी को अवश्य ही पूजा की जाती है। 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है।
कन्या पूजन की विधि
एक दिन पूर्व ही कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं। अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाएं। सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर स्वच्छ पानी से धोएं। उसके बाद कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुंकुम लगाएं। फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।
कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की आयु 2 वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए। इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। इनके साथ एक बालक को बिठाने का भी प्रावधान है। इस बालक को भैरो बाबा के रूप में कन्याओं के बीच बैठाया जाता है।
दुर्गाष्टमी का शुभ मुहूर्त
5 अक्टूबर सुबह 09:53 बजे से अष्टमी आरम्भ
6 अक्टूबर सुबह 10:56 बजे अष्टमी समाप्त
संध्या पूजा मुहूर्त- सुबह 10:30 बजे से 11:18 बजे तक
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