भारत के टॉप हवाई अड्डे होंगे एंटी ड्रोन टेक्नोलॉजी से लैस

नई दिल्ली। 14 सितंबर को सऊदी अरब में दो अहम ऑयल प्लान्ट्स पर ड्रोन्स हमले के बाद सवाल उठता है कि क्या भारत अपने नागरिक हवाई अड्डों को ऐसे ड्रोन हमलों से बचाने में सक्षम है? इसका जवाब है भारत के नागरिक हवाई अड्डों को सुरक्षित बनाने के लिए ब्लू प्रिंट एडवांस स्टेज में है। सूत्रों ने बताया कि आईआईटी बॉम्बे से पढ़े चार लोगों की कंपनी ‘आइडियाफॉर्ज’ को सीआईएसएफ ने इस साल के अंत तक समाधान के लिए सामने आने को कहा है।

सूत्र -IIT बॉम्बे से पढ़े शख्स, कंपनी आइडियाफोर्ज को सीआईएसएफ ने इस साल के अंत तक समाधान के साथ सामने आने को कहा है। इंटेलिजेंस इनपुट्स के मुताबिक जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन भारत में हवाई अड्डों समेत भारतीय ठिकानों पर हमले के लिए ड्रोन्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसी स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में बीते तीन महीने से कई तरह के फील्ड ट्रॉयल चल रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक आइडियाफॉर्ज ने डीआरडीओ के साथ मिलकर स्वदेशी ड्रोन ‘नेत्रा’ विकसित किया है। सीआईएसएफ ने आइडियाफॉर्ज को अधिकृत करने से पहले एंटी ड्रोन मेकर्स के लिए कई पश्चिमी और भारतीय कंपनियों से बात की लेकिन उनके फील्ड रिजल्ट संतुष्ट करने वाले नहीं रहे। इन कंपनियों को दो मानदंडों को पार करना था।

पहला, ‘सिस्टम विद व्हाइट लिस्टिंग’- ‘ये अपने ड्रोन को बिना नुकसान पहुंचाए शत्रु के ड्रोन पर हमला करता है। साथ ही परिसर में मौजूद अपने किसी विमान को भी कोई क्षति नहीं पहुंचाता।’ दूसरे मानदंड में कम्युनिकेशन सिस्टम को कोई नुकसान पहुंचाएं बिना टास्क को अंजाम देना होता है।

सूत्रों के मुताबिक इस्राइल, जर्मनी और भारत की कुछ कंपनियों ने फील्ड टेस्ट दिए। लेकिन उनका प्रदर्शन दावे के अनुरूप नहीं रहा। ऐसी स्थिति में सीआईएसएफ ने स्वदेशी ड्रोन ‘नेत्रा’ बनाने वाली  कंपनी आइडियाफॉर्ज को साथ लिया। कंपनी के सीईओ अंकित मेहता ने सिंगापुर से फोन पर बताया- ‘फिलहाल कोई घरेलू विकसित एंटी ड्रोन सोल्यूशन नहीं है।

उन्होंने बताया कि एंटी ड्रोन जीपीएस और कम्युनिकेशन की जैमिंग टैक्नीक है। हम सिस्टम की अतिरिक्तता को कम करने के लिए काम कर रहे हैं।’ सूत्रों के मुताबिक ये कंपनी एक पश्चिमी पार्टनर के साथ एमओयू साइन करने के लिए एडवांस्ड स्टेज में है। इस साल के अंत तक या उससे पहले ही ब्लू प्रिंट आ जाएगा।

आइडियाफॉर्ज कंपनी सेंट्रल ऑर्म्ड पुलिस फोर्स (सीएपीएफ) और इंडियन डिफेंस को 700 ड्रोन पहले ही उपलब्ध करा चुकी है। सिक्योरिटी ग्रिड से जुड़े सूत्रों के मुताबिक एंटी ड्रोन टेक्नोलॉजी को बारीकी से परखा जा रहा है। इसके लिए ‘सॉफ्ट किल’ और ‘हार्ड किल’ जैसे अलग अलग स्तर होते हैं।

बुनियादी स्तर पर ‘सॉफ्ट किल’ में डिटेक्शन और मॉनिटरिंग होती है। इसके जरिए खास तौर पर यूएवी से जुड़े डेटा जैसे रफ्तार, दूरी और वक्त जेनेरेट करने वाली टेक्नोलॉजी होती है। एडवांस्ड स्टेज ‘सॉफ्ट किल’ में ऐसी  टेक्नोलॉजी जरूरी होती है जो ड्रोन और उसके कंट्रोलर के बीच सिग्नल को बाधित कर देती है। साथ ही एयरफ्राफ्ट को ड्रोन को इंटरसेप्ट करने में सहयोग देती है।

वहीं ‘हॉर्ड किल’ स्तर में प्रोजेक्टाइल्स को निष्क्रिय या नष्ट करने की क्षमता होती है। इसके लिए नेट्स, बुलेट्स (या शॉटगन पैलेट), मोर्टार राउंड या मिसाइल का सहारा लिया जाता है। एडवांस्ड स्टेज में ‘हॉर्ड किल’ में लेज़र, मैग्नेटिक्स या अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।

ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन (BCAS)  के पास देश के 135 हवाई अड्डों की सुरक्षा के लिए गैजेट्स और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का अधिकार है। एंटी ड्रोन टेक्नोलॉजी को शुरू में मेट्रो शहरों और जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील एयरपोर्ट्स पर लाया जाएगा।

2003 से ये विदित है कि आतंकी संगठन लश्कर हमलों के लिए यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन), ड्रोन्स और छोटे ग्लाइडर्स के इस्तेमाल के मंसूबे पाले हुए हैं। सूत्रों ने बताया कि लश्कर और जैश, दोनों की तरफ से आईईडी के प्लेटफॉर्म के लिए कॉमर्शियल तौर पर उपलब्ध ड्रोन्स हासिल करने की कोशिशें होती रही हैं।

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