देश के 70% प्लंबर है ओडिशा के केन्द्रपाड़ा जिले से, कई साल में कमाते हैं ₹30 लाख

ओडिशा का केंद्रपाड़ा जिला यूं तो भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के लिए प्रसिद्ध है, जहां विश्वभर से लोग ऑलिव रिडले कछुए देखने आते हैं, लेकिन यहां के प्लंबर भी इस जगह की खास पहचान बन गए हैं। देश के 70% प्लंबर यहीं से आते हैं। यह पेशा इन्हें 30 लाख रुपए सालाना तक की कमाई दे रहा है। यहां हर दूसरे घर में एक प्लंबर है।

जिले के पट्टामुंडाई स्थित स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ प्लंबिंग टेक्नोलॉजी के प्रिंसिपल निहार रंजन पटनायक बताते हैं कि यह स्किल यहां के लोगों ने 1930 से सीखनी शुरू कर दी थी। तब कोलकाता में दो ब्रिटिश कंपनियों को प्लंबरों की जरूरत थी। केंद्रपाड़ा के कुछ युवकों को वहां नौकरी मिल गई। फिर देश के बंटवारे के वक्त जब कोलकाता के अधिकांश प्लंबर पाकिस्तान चले गए तो केंद्रपाड़ा के प्लंबरों के लिए यह एक मौका बन गया। बड़ी संख्या में लोग यह काम सीखने लगे। कोलकाता से यह लोग देश के दूसरे हिस्सों में भी पहुंचे। पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही काम सीखते और करते रहे। 1970 के दशक में खाड़ी देशों तक जाने लगे। आज गल्फ में इनमें से कुछ की कमाई 50 हजार से 2.5 लाख रु. महीना तक पहुंच रही है। यही वजह है कि मात्र 50 हजार की आबादी वाले पट्टामुंडाई में 14 बैंकों की ब्रांच है।

प्लंबिंग और कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले पट्टामुंडाई के नरेंद्र राउत कहते हैं कि प्लंबिंग के ठेके भले ही बड़ी कंपनियां लेती हों, लेकिन इनका अधिकांश पेटी कॉन्ट्रैक्ट पट्टामुंडाई के ही किसी ठेकेदार को मिलता है। यहां के लोगों ने प्लंबिंग में इतना नाम बनाया है कि कटक के सरकारी प्लंबिंग टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट को 2010 में यहां शिफ्ट कर दिया गया। हर साल 96 बच्चे पासआउट हो रहे हैं। ट्रेंड हाेने की वजह से इन्हें फाइव स्टार होटल्स, सरकारी दफ्तरों, विदेशी दूतावासों में हाथों-हाथ नौकरियां मिल रही हैं।

केन्द्रपाड़ा में प्लंबिंग का इतिहास

 

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