अगर कोई हाउजिंग प्रॉजेक्ट समय पर पूरा नहीं होता है और बायर पजेशन नहीं लेना चाहता तो बिल्डर इसके लिए दबाव नहीं बना सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमिशन (NCDRC) की इस बात पर मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बायर अपना रिफंड भी मांग सकता है।
दरअसल पुणे के एक बिल्डर के मामले में NCDRC के आदेश को बरकरार रखते हुए जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस विनीत सरन की बेंच ने कहा, ‘मान लेते हैं कि मकान अब पजेशन के लिए तैयार है लेकिन पांच साल की देरी हो चुकी है। अब खरीदार पर पजेशन के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि पांच साल कम नहीं होते हैं। इसलिए बिल्डर को ब्याज के साथ जमा की गई राशि वापस करनी चाहिए। आयोग के इस फैसले को गलत नहीं ठहराया जा सकता है।’
नवभारत टाइम्स के अनुसार रविवार को NCDRC ने अपने आदेश में कहा था कि अगर हाउजिंग प्रॉजेक्ट में देरी हो गई है तो खरीदार को पजेशन लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है और बायर रिफंड भी मांग सकता है। गुड़गांव के एक मामले में यह आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पुणे के मारवेल सेल्वा रिज स्टेट के मामले में यही आदेश दिया है। कंपनी ने श्रीहरि गोखले को जुलाई 2012 में एक विला बेचा था और दिसंबर 2014 तक पजेशन देने का वादा किया था। गोखले ने 2016 में NCDRC से 13.4 करोड़ रुपये के रिफंड के लिए अपील की।
बिल्डर ने एनसीडीआरसी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसमें 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ 8.14 करोड़ रुपये का मूलधन चुकाने की बात कही गई थी। सुनवाई के दौरान बिल्डर की तरफ से कहा गया कि विला बनकर तैयार है और 21 दिन में इसका सर्टिफिकेट जारी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस विला को गोखले नहीं लेना चाहते और इसे किसी और को भी तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक पूरी तरह से आदेश लागू नहीं हो जाता।
व्हाट्सएप के माध्यम से हमारी खबरें प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad
Discussion about this post