एलईडी घोटाला मामला – निगम ने किया ब्लैकलिस्टेड फार्म को भुगतान, पार्षद ने की जांच की मांग

गाजियाबाद नगर निगम में हुए तथाकथित एलईडी लाइट घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। इस बार भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने संबंधित फर्म को भुगतान के लिए एक उच्च अधिकारी द्वारा दबाव बनाए जाने की भूमिका की जांच मुख्यमंत्री से की है। उन्होंने फर्म को ब्लैकलिस्ट किए जाने के बावजूद निगम द्वारा भुगतान किए जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए इसके विजिलेंस जांच की मांग की है।

भाजपा के वरिष्ठ पार्षद राजेंद्र त्यागी ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि इस प्रकरण में जून महीने में फर्म व्हाईट प्लाकार्ड टेक्नालजी प्रा. लि को 3.37 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। इस फर्म को तीन साल पहले नगर निगम द्वारा लगाई गई करीब 50 हजार लाइटों को बदलने का ठेका दिया गया था। कंपनी ने उस समय दावा किया था कि इन लाइटों लगाने से नगर निगम को पचास प्रतिशत विद्युत बिल की बचत होगी। इसके अलावा कंपनी ने सभी लाइटों के रखरखाव की भी जिम्मेदारी ली गई थी। इस मामले में पार्षदों की शिकायत के बाद जांच बैठा दी गई।

जांच में सभी पहलुओं पर कंपनी का घपला पकड़ा गया। कंपनी ने दावा किया था कि उसने पूरे शहर उसे 50214 एलईडी लाइटें बदली गई हैं। कागजों में कंपनी ने 48113 लाइटें बदलना दिखाया। क्षेत्रीय प्रकाश निरीक्षकों के सत्यापन के बाद पता चला कि कंपनी ने शहर में केवल 42966 लाइटों को बदला है। बाकी लाइटें नहीं बदली गई। स्टोर में पुरानी बदली गई सिर्फ 35 हजार लाइटें ही मिली। फर्म की कारगुजारी उजागर होने के बाद नगर निगम कार्यकारिणी ने फर्म को ब्लैकलिस्ट करने की सिफारिश की और उसके भुगतान पर रोक लगाने को कहा गया।

राजेंद्र त्यागी का कहना है कि इसी बीच विभाग के प्रमुख सचिव स्तर के एक अधिकारी के दबाव में फर्म के कुल किए गए काम करीब 4 करोड़ 81 लाख रुपये के 70 फीसदी यानि 3 करोड़ 37 लाख रुपये भुगतान करने की सिफारिश की गई। इस मुद्दे पर जून में निगम बोर्ड बैठक में एक सुर से कंपनी का भुगतान रोकने की सिफारिश की गई। फिर भी फर्म को करीब साढ़े तीन करोड़ का भुगतान कर दिया गया। उन्होंने प्रकरण को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष भेजा है। साथ ही इस पूरे प्रकरण की विजीलेंस जांच की मांग की है।

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