लेप्टोस्पायरोसिस एक ऐसी बीमारी है, जो हमारे आसपास या हमारे घर में मौजूद जानवरों के कारण फैलती है। इतना ही नहीं, यह बीमारी जानवरों से मनुष्यों में स्थानांतरित हो जाती है। इस बैक्टीरिया से संक्रमित जानवर के मूत्र द्वारा प्रदूषित जल के संपर्क में आने से आप लेप्टोस्पायरा बैक्टीरिया की चपेट में आ सकते हैं। बरसात के मौसम में इस बीमारी का खतरा और अधिक बढ़ जाता है।
दरअसल, मानसून के समय जल भराव के कारण यह संक्रमण पानी में मिलकर उसे दूषित कर देता है और इसी वजह से मानसून में लेप्टोस्पायरोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है। एक सर्वे के मुताबिक, भारत में लेप्टोस्पायरोसिस के करीबन पांच हजार मामले प्रति वर्ष आते हैं, जिनमें मरने वालों का आंकड़ा 10-15 प्रतिशत है।
क्या हैं कारण
लेप्टोस्पायरोसिस लेप्टोस्पायर नामक जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होता है, जो संक्रमित जानवरों के मूत्र में पाया जाता है और संक्रमण जानवरों से मनुष्य तक फैल सकता है। आमतौर पर यह चूहे, गिलहरी, भैंस, घोड़े, भेड़, बकरी, सूअर और कुत्ते द्वारा फैलता है।
क्या हैं लक्षण
तेज बुखार जो आम तौर पर 100.4-104 डिग्री फारेनहाइट के बीच होता है, अचानक सिरदर्द और ठंड लगना, मतली और उल्टी, विशेष रूप से पिंडली की मांसपेशियों और पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना, कंजक्टिवाइटिस (आंखों में जलन और लाल होना)।
गंभीर समस्याओं में शामिल हैं
मेनिनजाइटिस-दिमागी बुखार, अत्यधिक थकान, बहरापन, सांस लेने में परेशानी।
क्या है बचाव
जूते, दस्ताने, चश्मा, एप्रॉन, मास्क आदि पहनें।
वॉटरप्रूफ ड्रेसिंग के साथ त्वचा के घावों को कवर करें।
बारिश में पूल, तालाबों, नदियां के पास जाने से बचें।
दूषित पानी में जाने या तैराकी करने से बचने की कोशिश करें।
गंदे पानी से स्नान न करें।
घावों को धोएं और इनकी नियमित रूप से सफाई करें।
बीमार या मृत जानवरों को छूने से बचें।
स्वच्छ पानी का इस्तेमाल करें।
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