सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में निवारक हिरासत को कठोर उपाय करार देते हुए नगालैंड में मादक पदार्थ मामले में हिरासत में लिए गए दो व्यक्तियों के खिलाफ जारी आदेश को सुरक्षा मानकों के अभाव में रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत की पीठ ने स्पष्ट किया कि निवारक हिरासत का आदेश विवेकाधिकार के बिना नहीं दिया जा सकता।
गौहाटी हाईकोर्ट का आदेश रद्द
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने नगालैंड सरकार द्वारा जारी हिरासत आदेश को अवैध ठहराया। अदालत ने कहा कि बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के ऐसे आदेशों को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाईकोर्ट के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया, जिसमें अशरफ हुसैन चौधरी और उनकी पत्नी अडालिउ चावांग की हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी।
निवारक हिरासत: कठोर लेकिन संवैधानिक प्रक्रिया आवश्यक
पीठ ने स्पष्ट किया कि निवारक हिरासत एक कठोर कदम है, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को, बिना किसी दंडात्मक कानून के तहत दोषी ठहराए, एक निश्चित अवधि के लिए हिरासत में रखा जा सकता है ताकि संभावित आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके। हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 22(3)(बी) के तहत इस प्रक्रिया को मान्यता प्राप्त है, लेकिन इसके लिए कड़े नियमों का पालन किया जाना आवश्यक है।
संसद द्वारा पारित कानून और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
1988 के नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम की धारा 3(1) के तहत तस्करी की रोकथाम के लिए निवारक हिरासत का प्रावधान किया गया है। यह कानून संसद द्वारा पारित किया गया था ताकि मादक पदार्थों और साइकोट्रोपिक पदार्थों की अवैध तस्करी पर नियंत्रण रखा जा सके। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के क्रियान्वयन में सावधानी बरतने की जरूरत पर बल दिया और नगालैंड सरकार के गृह विभाग के विशेष सचिव द्वारा 30 मई 2024 को जारी किए गए हिरासत आदेशों को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का संदेश
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निवारक हिरासत को लागू करने में विधि सम्मत प्रक्रियाओं और सुरक्षा उपायों का पालन अनिवार्य है। यह फैसला नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति विधि सम्मत प्रक्रियाओं के बिना अन्यायपूर्ण रूप से हिरासत में न लिया जाए।
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