सुप्रीम कोर्ट में केरल की अलप्पुझा निवासी एक मुस्लिम महिला साफिया पी.एम. ने याचिका दायर कर यह आग्रह किया है कि उसे शरीयत कानून में विश्वास नहीं है और वह चाहती है कि उस पर भारतीय धर्मनिरपेक्ष उत्तराधिकार कानून लागू हो। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है।
याचिका की मुख्य बातें याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि: 1. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर नागरिक को धर्म को मानने या न मानने की स्वतंत्रता है। याचिकाकर्ता ने इस अधिकार का हवाला देते हुए अदालत से मांग की है कि उसे इस्लाम का पालन करने के लिए बाध्य न किया जाए। 2. धर्मनिरपेक्ष कानून लागू करने की अपील: महिला ने कहा कि शरीयत कानून उसकी स्वतंत्रता और अधिकारों को बाधित करता है। उसे धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत अपने पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार मिलना चाहिए। 3. इस्लाम से आधिकारिक अलगाव: महिला का कहना है कि वह इस्लाम को नहीं मानती, लेकिन उसने अब तक औपचारिक रूप से धर्म नहीं छोड़ा है। इस कारण उसे संपत्ति और अन्य अधिकारों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन करना पड़ता है।
केंद्र सरकार का पक्ष केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि यह याचिका एक महत्वपूर्ण और रोचक सवाल उठाती है। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता का कहना है कि शरीयत कानून में उनकी आस्था नहीं है और वह इसे पिछड़ा हुआ मानती हैं। सॉलिसिटर जनरल ने हलफनामा दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय मांगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
न्यायालय की प्रतिक्रिया सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मामला आस्था और धर्म की स्वतंत्रता से जुड़ा है। पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह याचिकाकर्ता के दावों पर विस्तृत जवाब दाखिल करे।
महिला की आपत्ति और शरीयत कानून पर सवाल याचिकाकर्ता ने कहा कि शरीयत कानून का पालन करने से वह अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित हो जाती हैं। शरीयत के तहत, यदि कोई व्यक्ति इस्लाम में आस्था नहीं रखता है, तो उसे संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता। उन्होंने अदालत से यह अपील की है कि जो व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ को नहीं मानता, उस पर धर्मनिरपेक्ष कानून लागू होना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा था। तब से मामले पर कोई ठोस निर्णय नहीं आया था। अब अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिसमें केंद्र सरकार अपना जवाब प्रस्तुत करेगी।
महत्व और संभावित प्रभाव यह याचिका धार्मिक स्वतंत्रता और भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के बीच संतुलन पर चर्चा को जन्म दे सकती है। यह मामला महिलाओं के अधिकारों और धार्मिक कानूनों के सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
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