महाकुंभ 2025 का आयोजन इस बार प्रयागराज में हो रहा है। लाखों श्रद्धालु संगम नगरी में पवित्र स्नान करने और आध्यात्मिक शांति की तलाश में जुटेंगे। इसी दौरान त्रिवेणी संगम के किनारे स्थित अक्षय वट भी श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह वट वृक्ष अपनी धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है।
अक्षय वट का पौराणिक महत्व
अक्षय वट को हिंदू धर्म में पवित्रता और अनंत शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान इस वृक्ष के दर्शन मात्र से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और वह जीवन-मरण के बंधनों से मुक्त हो सकता है। इस वृक्ष को त्रिदेवों—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—की कृपा का स्थल माना गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान प्रयागराज पहुंचे, तो उन्होंने इसी वट वृक्ष के नीचे विश्राम किया। इस वृक्ष का संबंध महाभारत और अन्य पुराणों में भी मिलता है। ऋषि मार्कंडेय ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी, और इसे जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की तपस्थली के रूप में भी पूजा जाता है। जैन अनुयायी इसे “तपोवन” या “ऋषभदेव तपस्थली” के नाम से जानते हैं।
जल प्रलय और अक्षय वट की अमर कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब सृष्टि के आरंभ में जल प्रलय हुआ और पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, तब केवल यह अक्षय वट वृक्ष ही सुरक्षित बचा रहा। उस समय भगवान बाल रूप में इस वट के एक पत्ते पर निवास कर सृष्टि का अवलोकन कर रहे थे। इस घटना को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और आध्यात्मिक रूप में देखा जाता है, जिससे अक्षय वट की महिमा और भी बढ़ जाती है।
महाकुंभ और अक्षय वट
महाकुंभ के दौरान श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद अक्षय वट के दर्शन और परिक्रमा करना अनिवार्य मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे उन्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। महाकुंभ के दौरान इस वृक्ष का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह स्थान अनंत आस्था और दिव्यता का प्रतीक है।
अक्षय वट और ऋषि-मुनियों का तपस्थल
इस पवित्र वृक्ष के नीचे कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की, जिससे यह स्थान और भी पवित्र बन गया। मान्यता है कि यहां ध्यान और साधना करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस वृक्ष की जड़ें और छत्र उन श्रद्धालुओं के लिए आशीर्वाद के समान हैं, जो अपनी भक्ति और तप से जीवन के बंधनों से मुक्ति की कामना करते हैं।
लोक आस्था का केंद्र
प्रयागराज के अक्षय वट को लोक आस्था का केंद्र माना जाता है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु न केवल अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं, बल्कि इसे भगवान का साक्षात स्वरूप मानते हुए इसकी परिक्रमा भी करते हैं।
अक्षय वट न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। महाकुंभ 2025 के दौरान यह वृक्ष तीर्थयात्रियों के लिए एक विशेष आकर्षण होगा। इसके दर्शन और पूजा-अर्चना के माध्यम से श्रद्धालु अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
अक्षय वट के साथ महाकुंभ का संगम न केवल आस्था की अनुभूति कराता है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और पौराणिक परंपराओं को भी सजीव करता है। यह वृक्ष मानव जीवन को ईश्वर और प्रकृति के साथ जोड़ने का अद्वितीय माध्यम है।
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