भारत एक ऐसा देश है जहां लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया का विशेष महत्व है। यहां हर पांच साल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव होते हैं, और इन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से आयोजित किया जाता है। लेकिन क्या यह चुनावी प्रक्रिया और अधिक सुव्यवस्थित, समर्पित और आर्थिक रूप से प्रभावी बनाई जा सकती है? इस सवाल का जवाब है – “एक देश, एक चुनाव”।
प्रस्ताव और उद्देश्य भारत सरकार ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया है। इस पहल का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और न्यूनतम संसाधनों के साथ पूरा करना है। ‘एक देश, एक चुनाव’ योजना के तहत, सरकार ने एक ही दिन में सभी चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा है ताकि प्रशासनिक कार्यों में दक्षता और चुनाव व्यय में कटौती की जा सके।
विधेयक का महत्व इस प्रस्तावित विधेयक में अनुच्छेद 82(ए) को शामिल करने का प्रस्ताव है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव अनिवार्य करता है। इसके अतिरिक्त, इसमें अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), 172 और 327 में संशोधन की बात कही गई है। ये संशोधन एक साथ चुनाव कराने की प्रणाली को और अधिक सुव्यवस्थित बनाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 12 दिसंबर को इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी। इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास भेजा जाएगा, जहां इस पर विस्तृत विचार-विमर्श होगा। इस योजना के सफलतापूर्वक लागू होने पर, भारत में चुनाव की तैयारी और प्रशासन में नई दक्षता की उम्मीद की जा सकती है।
विपक्षी प्रतिक्रियाएं और आलोचना हालांकि सरकार इस कदम को लोकतांत्रिक सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही है, कई विपक्षी दलों जैसे राहुल गांधी, ममता बनर्जी और एमके स्टालिन ने इस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है। उनका तर्क है कि यह विधेयक “लोकतंत्र विरोधी” है और इसका उद्देश्य भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करना है। उनका आरोप है कि सरकार इस बिल को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नष्ट करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग कर रही है। वे इसे भारत की विविधता और संघीयता की भावना के खिलाफ मानते हैं।
संविधान संशोधन और दो चरणों में योजना केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ योजना को दो चरणों में लागू करने की योजना बनाई है। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे, जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव (जैसे पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव) आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर होंगे। इस योजना का मुख्य उद्देश्य चुनावी प्रक्रियाओं में व्याप्त अराजकता को समाप्त करना और चुनावों के दौरान संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है।
इस संबंध में एक अधिकारी ने सोमवार को कहा कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी को समिति की अध्यक्षता मिलेगी और इसके कई सदस्य इसमें शामिल होंगे। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति के सदस्य रहे गृह मंत्री अमित शाह इस विधेयक के दौरान निचले सदन में उपस्थित रह सकते हैं। इस उच्चस्तरीय समिति की अनुशंसा के आधार पर यह विधेयक लाया जा रहा है।
संविधानिक संशोधनों और उनके प्रभाव इस विधेयक को लागू करने के लिए तीन संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। पहला संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सुविधा प्रदान करता है। इसमें अनुच्छेद 82ए में बदलाव का प्रस्ताव है, जिसमें एक निर्धारित तिथि और कार्यकाल समाप्ति की शर्तें शामिल हैं। दूसरा संविधान संशोधन विधेयक कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा इस संशोधन को अनुमोदित करना अनिवार्य करता है। यह स्थानीय निकाय चुनावों के लिए भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों के बीच सहयोग को भी अनिवार्य करता है।
तीसरा विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों – पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू कश्मीर – के चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ एकीकृत करने का प्रयास करता है। ये संशोधन लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक ही दिन कराने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
समय-सीमा और भविष्य की योजनाएं विधेयक के लागू होने की समय-सीमा 2029 में आगामी लोकसभा चुनावों के बाद निर्धारित की गई है, और 2034 में एक साथ चुनाव शुरू होने की उम्मीद है। लोकसभा का कार्यकाल नियत तिथि से पांच वर्षों तक निर्धारित होगा। इसके बाद, निर्वाचित राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा। अगर किसी राज्य विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल पांच साल से पहले भंग हो जाता है, तो उस कार्यकाल के शेष समय के लिए मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे।
इस योजना के सफलतापूर्वक लागू होने से भारत की चुनावी प्रक्रिया में एक नया युग आएगा, जिससे चुनावों की अधिकतम तैयारी, प्रशासनिक दक्षता और लागत में कमी की उम्मीद की जा रही है। ‘एक देश, एक चुनाव’ योजना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने, प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने और चुनावी खर्चों में कमी लाने का एक बड़ा कदम है। यह विधेयक न केवल चुनावी प्रक्रिया में बदलाव करेगा बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को और भी अधिक सक्षम और जवाबदेह बनाएगा।
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