मस्जिदें इस्लाम धर्म के पवित्र स्थल हैं, जहां लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और समाज में शांति व भाईचारे को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। हालांकि, कुछ अवसरों पर इन पवित्र स्थलों का दुरुपयोग भीड़ को भड़काने, हिंसा फैलाने और समाज में वैमनस्य पैदा करने के लिए किया गया है। यह प्रवृत्ति इस्लाम की मूल भावना और समाज की एकता के लिए गंभीर खतरा है।
भारत में मस्जिदों का दुरुपयोग: प्रमुख घटनाएं दिल्ली दंगे (2020): नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के दौरान, कुछ मस्जिदों से लाउडस्पीकर के जरिए भीड़ को उकसाने का आरोप लगा। इसके परिणामस्वरूप 50 से अधिक लोगों की मौत हुई और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई। कानपुर हिंसा (2022): विवादित टिप्पणी के बाद, मस्जिदों से प्रदर्शनकारियों को उकसाने की घटनाएं सामने आईं, जिससे हिंसक झड़पें हुईं। मुरादाबाद (1980): ईद के मौके पर मस्जिद से भड़काऊ भाषणों ने बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया, जिसमें कई लोगों की जान गई। हैदराबाद (2013): चारमीनार के पास स्थित एक मस्जिद से भड़काऊ संदेशों के चलते सांप्रदायिक तनाव बढ़ा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मस्जिदों का दुरुपयोग मध्य पूर्व: कई आतंकवादी संगठनों ने मस्जिदों का उपयोग युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और हिंसा फैलाने के लिए किया। यूरोप: फ्रांस और जर्मनी में कुछ मस्जिदों से कट्टरपंथी विचारधाराओं का प्रचार किया गया। अफ्रीका: नाइजीरिया में बोको हराम और सोमालिया में अल-शबाब जैसे संगठनों ने मस्जिदों को अपने एजेंडे का साधन बनाया।
क्या यह इस्लाम की मूल भावना से मेल खाता है? इस्लाम शांति, सहिष्णुता और भाईचारे का धर्म है। कुरान और हदीस हिंसा और उपद्रव को सख्ती से हराम बताते हैं। कुरान (5:32): “जिसने किसी निर्दोष की हत्या की, उसने पूरी मानवता को मारा।” हदीस: पैगंबर मोहम्मद ने कहा, “सबसे अच्छा मुस्लिम वह है, जिसके हाथ और ज़ुबान से किसी को नुकसान न पहुंचे।”
मस्जिदों का दुरुपयोग इन शिक्षाओं के खिलाफ है। ऐसा करने वाले इस्लाम और मानवता दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका 1. सख्त निगरानी: मस्जिदों की गतिविधियों, विशेष रूप से लाउडस्पीकर और भाषणों पर निगरानी सुनिश्चित की जाए। 2. तत्काल कार्रवाई: हिंसा भड़काने की किसी भी सूचना पर तुरंत हस्तक्षेप किया जाए। 3. कानूनी प्रावधान: मस्जिदों का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। भड़काऊ भाषण देने वाले धर्मगुरुओं पर मुकदमा दर्ज किया जाए। 4. सामुदायिक संवाद: पुलिस और प्रशासन को स्थानीय समुदाय और धर्मगुरुओं से संवाद स्थापित कर शांति सुनिश्चित करनी चाहिए।
सरकार को उठाने वाले कदम कड़े कानून: धार्मिक स्थलों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाएं। धर्मगुरुओं का प्रशिक्षण: इमामों को इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं और शांति के महत्व पर प्रशिक्षित किया जाए। सामुदायिक जागरूकता: जनता को यह समझाया जाए कि मस्जिदों का उद्देश्य इबादत और भाईचारे को बढ़ावा देना है, न कि हिंसा का माध्यम बनना।
समाज और धर्मगुरुओं के लिए संदेश मस्जिदें शांति और सहिष्णुता का प्रतीक हैं। उनकी पवित्रता बनाए रखना हर मुस्लिम की जिम्मेदारी है। धर्मगुरुओं को चाहिए कि वे कट्टरपंथ को प्रोत्साहित करने के बजाय इस्लाम के शांति और सद्भाव के संदेश को फैलाएं।
भारत और विश्व में मस्जिदों का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या है, जो समाज और धर्म दोनों के लिए हानिकारक है। सरकार, पुलिस और समाज को मिलकर इस प्रवृत्ति पर रोक लगानी होगी। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि मस्जिदें केवल इबादत और भाईचारे के प्रतीक बनें, न कि हिंसा और वैमनस्य के माध्यम। सख्त कानून, पुलिस की सक्रियता, और सामुदायिक जागरूकता के जरिए इस समस्या का समाधान संभव है।
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