सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपपत्र और कार्यवाही को रद्द करने की मांग खारिज किए जाने के बाद, उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत राज खान के खिलाफ चल रहे मामले की समीक्षा करने पर सहमति जताई है। यह मामले की सुनवाई अब जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ द्वारा की जाएगी।
खान की कानूनी टीम ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यूपी गैंगस्टर्स एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर की वैधता को चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और दरअसल एक पुरानी एफआईआर का विस्तारित रूप हैं, जो पुलिस शक्तियों के अनुचित उपयोग और कानूनी प्रक्रियाओं में गंभीर त्रुटियों को उजागर करता है। याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि आरोप व्यक्तिगत द्वेष से प्रेरित हैं, विशेष रूप से तब जब खान ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के खिलाफ वित्तीय गड़बड़ियों को लेकर शिकायत की थी।
कानूनी टीम का कहना है कि खान को उनके व्हिसलब्लोअर प्रयासों के कारण प्रतिशोध का शिकार बनाया जा रहा है। उनका यह भी आरोप है कि आरोपपत्र और कार्यवाही की शुरुआत जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण है, जिसका उद्देश्य केवल व्यक्तिगत रंजिश के कारण बदला लेना है।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि खान का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, और उन्हें गैंगस्टर एक्ट के तहत आरोपित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि वह आरोपपत्र को रद्द करे और संबंधित कार्यवाही को स्थगित करे, क्योंकि इसे खान के खिलाफ वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए सवालों को दबाने का एक प्रयास माना जा रहा है। खान की कानूनी टीम का मानना है कि हाईकोर्ट ने यह पहचानने में गलती की है कि खान एक निर्दोष नागरिक हैं, जिन्होंने केवल वक्फ प्रशासन में हो रहे धोखाधड़ी और दुरुपयोग के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई थी।
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