गाजियाबाद:- 29 नवंबर: गाजियाबाद जिला अदालत में पिछले महीने हुए लाठीचार्ज की घटना के बाद से अधिवक्ताओं का विरोध लगातार जारी है। शुक्रवार को एक महीने बाद भी कचहरी परिसर में हड़ताल की लहर बरकरार रही, और अधिवक्ताओं ने इसे काले दिवस के रूप में मनाया। इस दिन, उन्होंने काले पट्टी बांधकर विरोध जताया और कचहरी से कलक्ट्रेट परिसर तक मानव श्रृंखला बनाकर पुलिस और जिला जज के खिलाफ अपना आक्रोश व्यक्त किया।
कचहरी में विरोध प्रदर्शन
शुक्रवार की सुबह करीब 11 बजे, अधिवक्ता बार सभागार में एकत्र हुए, जहां उन्होंने 29 अक्टूबर को जिला जज से हुए विवाद के बाद पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज पर विरोध व्यक्त किया। इस घटना के बाद से अधिवक्ता लगातार अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। बैठक के बाद, सभी अधिवक्ता कचहरी परिसर से बाहर निकलकर कलक्ट्रेट की ओर बढ़े, जहां उन्होंने पुलिस और जिला जज के खिलाफ नारेबाजी की और विरोध प्रदर्शन किया।
इस दौरान, एक गुट कचहरी के मुख्य गेट की ओर बढ़ा, लेकिन वहां ताला देखकर वे उसे खोलने की कोशिश करने लगे। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने उन्हें समझाया और वे वहां से वापस लौट आए। इसके बाद, कोई भी अधिवक्ता न्यायालय परिसर के अंदर प्रवेश नहीं कर सका।
अधिवक्ताओं की प्रमुख मांगें
गाजियाबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, दीपक शर्मा ने बताया कि अधिवक्ता अपनी पांच प्रमुख मांगों को लेकर एकजुट हैं:
1. जिला जज का निलंबन: अधिवक्ताओं का आरोप है कि जिला जज की वजह से विवाद उत्पन्न हुआ था, जिसके बाद लाठीचार्ज किया गया।
2. एफआईआर की वापसी: अधिवक्ताओं ने मांग की है कि पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को वापस लिया जाए।
3. अधिवक्ताओं के लिए सुरक्षा कानून: वे एक ‘एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट’ बनाने की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
4. मुआवजा: लाठीचार्ज में घायल हुए अधिवक्ताओं को मुआवजा दिया जाए।
5. दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई: पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, जिन्होंने लाठीचार्ज किया।
संघर्ष समिति का गठन
दीपक शर्मा ने कहा कि जब तक इन पांचों मांगों को पूरा नहीं किया जाता, तब तक कचहरी में हड़ताल जारी रहेगी। इसके लिए गाजियाबाद बार एसोसिएशन ने एक संघर्ष समिति का गठन किया है, जिसमें 51 अधिवक्ता शामिल हैं। यह समिति प्रतिदिन आंदोलन की रणनीति तय करेगी और आंदोलन को और तेज करेगी।
विरोध का असर वादकारियों पर
अधिवक्ताओं की हड़ताल का असर सीधा तौर पर वादकारियों पर पड़ रहा है। अदालत में लंबित मामलों की सुनवाई प्रभावित हो रही है, जिससे वादकारी परेशान हो रहे हैं। कई महत्वपूर्ण मामलों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है, और लोग अपने अधिकारों के लिए कचहरी में दर-दर भटक रहे हैं।
हड़ताल का उद्देश्य और भविष्य की राह
अधिवक्ताओं का यह आंदोलन केवल अपने हक के लिए नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था की सुरक्षा और सम्मान के लिए भी है। गाजियाबाद के अधिवक्ता यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भविष्य में किसी भी वकील के साथ ऐसी दुर्व्यवहार की घटना न हो। उनका मानना है कि अदालतों में काम करने वाले हर व्यक्ति को सम्मान मिलना चाहिए, और यदि किसी ने अनुशासनहीनता की है, तो उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
अधिवक्ताओं के इस आंदोलन में समय के साथ और तेज़ी आ सकती है। यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तो वे और अधिक उग्र रूप से प्रदर्शन करने का इरादा रखते हैं। फिलहाल, गाजियाबाद की अदालतों में सुनवाई न होने से वादकारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन अधिवक्ता समुदाय का कहना है कि जब तक न्याय नहीं मिलता, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
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