सुप्रीम कोर्ट:- निजी संपत्ति विवाद में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है, जिसमें अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों पर अपना नियंत्रण नहीं कर सकती, जब तक कि इसका संबंध सार्वजनिक हित से न हो। इस फैसले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ जजों की बेंच ने 8-1 के बहुमत से यह कहा कि संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत निजी संपत्तियां ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों’ का हिस्सा नहीं बन सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया कि सरकारी अधिकारियों को किसी निजी संपत्ति को “सार्वजनिक भलाई” के नाम पर अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है, जब तक कि वह संपत्ति स्पष्ट रूप से सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जरूरी न हो। अदालत ने 1978 के कृष्णा अय्यर फैसले को पलटते हुए कहा कि समाजवादी आर्थिक विचारधारा के तहत सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति माना जाना अब ‘विकसित’ समाज के लिए उपयुक्त नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य केवल उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित में हैं और जो पहले से ही समुदाय के पास हैं। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति मानने की पुरानी धारा अब सामयिक नहीं है और न ही इसका समर्थन किया जा सकता है।
यह निर्णय विशेष रूप से 1990 के दशक से भारत के वैश्वीकरण और बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव को ध्यान में रखते हुए आया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि निजी संपत्तियां अब “समाजवादी” विचारधारा के तहत नहीं, बल्कि संविधान और नागरिक अधिकारों के अनुरूप मानी जाएंगी।
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