नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसीपीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा ‘नए संविधान’ पर लिखे गए लेख पर विवाद गहराता जा रहा है। विपक्ष लगातार सरकार पर निशाना साध रहा है।
68 साल के बिबेक देबरॉय ने साल 2017 में आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख की भूमिका संभाली। इसे पहले जब पांच सदस्यीय पैनल का गठन हुआ था तो वह नीति आयोग के सदस्य थे। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता, गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड और नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च सहित कई संस्थानों में पढ़ाया है। वह कई सम्मानित संस्थाओं का हिस्सा रहे हैं। पीएम-ईएसी वेबसाइट के अनुसार उन्होंने पश्चिम बंगाल के नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में पढ़ाई की। इसके अलावा प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ट्रिनिटी कॉलेज (कैम्ब्रिज) में पढ़ाई की है।
निभा चुके हैं यह भूमिकाएं
इससे पहले भी देबरॉय विभिन्न सरकारी पैनलों के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के लिए कंसल्टेंसी की भूमिका निभाई थी। वह पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव भी रहे हैं। उनके पिछले पदों में राजीव गांधी फाउंडेशन में राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी स्टडीज के निदेशक के रूप में भी कार्य करना शामिल है। देबरॉय ने कई किताबें, पेपर्स, मशहूर लेख भी लिखे हैं। इसके अलावा वह देश के नामी आर्थिक अखबारों में भी लगातार छपते रहे हैं। उन्होंने भारतीय रेलवे के पुनर्गठन पर समिति की भी अध्यक्षता की, जिसने रेल बजट खत्म करने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट की सिफारिशों पर कार्रवाई करते हुए, केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 से रेल बजट को आम बजट के साथ विलय कर दिया।
बता दें, यह लेख 77वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रकाशित हुआ था। इसमें देबरॉय ने कहा था कि हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देने की जरूरत है। इसी को लेकर विपक्ष भड़क उठा। उसने आरोप लगाया था कि सरकार ने संविधान को खत्म करने का बिगुल फूंक दिया है, जिसके प्रमुख शिल्पी डॉ. अंबेडकर थे। देबरॉय ने अपने लेख में लिखा था, हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इस अर्थ में यह एक औपनिवेशिक विरासत भी है। 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग द्वारा एक रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं की तरह यहां और दूसरे बदलाव से काम नहीं चलेगा। हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है?
उन्होंने कहा था कि हम जो बहस करते हैं, वह संविधान से शुरू और खत्म होती है। कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों का अब क्या मतलब है: समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता। हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा।’
परिषद का देबरॉय के लेख से किनारा
ऐसे में बढ़ते विवाद को थामने के लिए अब प्रधानमंत्री की ईएसी ने लेख से खुद को अलग कर लिया है। उसका कहना है कि जो भी लिखा गया, वो बिबेक देबरॉय के व्यक्तिगत विचार थे। इसका परिषद और सरकार से कोई लेना देना नहीं है। हालांकि, परिषद ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह किस आर्टिकल के बारे में बात कर रहे।
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