बिहार के युवाओं में चाय बेचने का क्रेज़ बढ़ा है, चाय के व्यापार से कई युवाओं ने करोड़ों की संपत्ति बना ली है। ग्रेजुएट चाय वाली की कामयाबी कहानी से तो लगभग सभी लोग वाकिफ हो चुके हैं। आज हम आपको बिहार के ही एक युवा अर्पित राज के संघर्ष की कहानी से रूबरू करवाने जा रहे हैं। BBA और मार्केटिंग से MBA करने वाले अर्पित राज ने अच्छी खासी नौकरी से किनारा कर चाय के व्यापार किया। आज की तारीख में पूरे देश भर में उनके कई स्टॉल्स हैं। जिनके ज़रिए वह हर साल करोड़ो रुपये की कमाई कर रहे हैं।
साल 2015 में 24 साल के अर्पित राज हॉस्पिटैलिटी में बीबीए की पढ़ाई कर रहे थे। इस दौरान अर्पित दोस्तों के साथ अक्सर अच्छे खाने की तलाश में शिलांग की सड़कों पर घूमते थे। व्यस्त पाठ्यक्रम के साथ पढ़ाई का बोझ रहता था। देर रात तक ही छुट्टी मिल पाती थी। तब तक शहर में अंधेरा हो जाता था। घूमने की परमिशन नहीं मिलती थी। उन्हें लगा कि जब आधी रात उन्हें खाने-पीने की तलब लगती है तो उनके जैसे और भी लोग जरूर होंगे। इसी आइडिया के साथ ‘चाय सेठ’ वेंचर की शुरुआत हुई थी। शिलांग में कॉलेज के बाहर चाय की टपरी से इसकी बुनियाद पड़ी थी। देखते ही देखते यह देश में तेजी से बढ़ती चाय फ्रेंचाइजी में तब्दील हो गई। देशभर में ‘चाय सेठ’ के 27 आउटलेट हैं।
अर्पित और उनके दोस्तों ने हॉस्टल के कमरे से टिफिन डिलीवरी सर्विस शुरू की। यह विशेष रूप से देर रात खाने-पीने के इच्छुक लोगों के लिए थी। जल्द ही ये लड़के फ्लैट में शिफ्ट हो गए। उन्होंने ऑर्डर पूरा करने के लिए कुक भी रख लिया था। उन्होंने एक स्थानीय बंगाली महिला को काम पर रखा था। वह स्नैक्स, आलू पराठे, गोभी पराठे जैसी चीजें तैयार करती थीं। वे इन्हें डिलीवर करने के लिए अपने स्कूटर पर जाते थे। ऑर्डर को 30 मिनट के भीतर डिलीवर करने का प्रॉमिस किया जाता था।
चाय शुरू करने का आइडिया कैसे आया?
इस दौरान अर्पित को एक बात का एहसास हो चुका था। वह यह था कि खाना लोगों को जोड़ता है। अपने कॉलेज में उन्होंने देखा कि कैसे लोग अक्सर अपनी संस्कृति के भोजन की तलाश करते थे। ऐसे में जब अर्पित और उनके दोस्तों ने कैंपस के बाहर फूड स्टॉल शुरू करने के बारे में सोचा तो रोमांच के साथ उन्हें कमियां भी नजर आ रही थीं। इसमें सबसे बड़ी चुनौती तमाम तरह के व्यंजनों को पूरा करने की थी। लिहाजा, अलग-अलग तरह के व्यंजनों में परफेक्शन के बजाय उन्होंने ऐसे आइटम पर फोकस किया जो सभी को साथ ला सके। यह थी चाय।
आइडिया काम कर गया। शिलांग के मौसम के कारण लोग अक्सर टपरी में आते थे। जल्द ही अर्पित और उनके दोस्तों को अच्छा रिटर्न मिलना शुरू हो गया। 100 वर्ग फुट में पांच दोस्त चाय सर्व करते थे। 2018 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया। लगभग उसी समय एक स्थानीय समूह ने उन्हें टपरी बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। पूर्वोत्तर में नियमों के कारण कारोबार चलाने के लिए उन्हें स्थानीय लोगों को पार्टनर बनाना था। इस तरह उन्हें अपना काम समेटना पड़ा। हालांकि, इससे उन्हें काफी ज्ञान और अनुभव मिल चुका था।
दोस्तों ने पुराने आइडिया पर फिर किया काम
फिर अर्पित दिल्ली लौट आए। एक स्टार्टअप के साथ काम करना शुरू किया। यहां उन्होंने डेढ़ साल तक काम किया। हालांकि, उनका दिल अभी भी अपने कॉलेज वेंचर में लगा हुआ था। इसके बारे में उन्होंने अपने दो दोस्तों के साथ चर्चा की। इनमें से एक सीए और दूसरा सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम शुरू करने वाला था। अर्पित ने दोनों को आश्वस्त किया कि चाय टपरी के आइडिया को कारोबार में बढ़ाया जा सकता है।
तीनों ने मिलकर दिल्ली में दोबारा बिजनेस शुरू किया। उन्हें शानदार रेस्पॉन्स मिला। 2020 में कोविड ने कुछ चुनौतियां पैदा कीं। लेकिन, धीरे-धीरे चीजें सामान्य हो गईं। आज ‘चाय सेठ’ में 25 अलग-अलग तरह की चाय मिलती हैं। इनमें दालचीनी चाय, बटरस्कॉच चाय, काली मिर्च चाय शामिल हैं। इसके देशभर में 27 आउटलेट हैं।
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