नई दिल्ली। देशद्रोह कानून पर लॉ कमीशन (विधि आयोग) ने अपनी रिपोर्ट गुरुवार को केंद्र सरकार को सौंप दी है। उसका कहना है कि देशद्रोह से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है। हालांकि, रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि प्रावधान के उपयोग को लेकर ज्यादा स्पष्टता के लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।
कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाले आयोग ने कहा कि सेक्शन 124A में बदलाव करना चाहिए। इसे लेकर हमें सुप्रीम कोर्ट की ओर से केदारनाथ केस में दिए गए 1962 के फैसले का ध्यान रखा होगा। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि फ्री स्पीच से लोगों को रोकने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति की ऐसी आदत है, जो हिंसा भड़का सकता है तो फिर उसके खिलाफ ऐसी कार्रवाई एहतियात के तौर पर की जा सकती है।
आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि देशद्रोह कानून के तहत तीन साल से लेकर अधिकतम उम्रकैद की सजा तक का प्रावधान है। इसमें बदलाव किया जा सकता है औैर सजा को 7 साल तक कर सकते हैं। आईपीसी की धारा 124A के तहत आरोपी को गैर-जमानती वॉरंट के साथ अरेस्ट किया जा सकता है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर 3 साल से लेकर अधिकतम उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। हालांकि इस कानून को लेकर अकसर ऐक्टिविस्ट्स से लेकर कानून के जानकार तक सवाल उठाते रहे हैं।
विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि देशद्रोह कानून के जरिए ऐंटी-नेशनल तत्वों और उपद्रवी लोगों पर नियंत्रण करने में मदद मिलती है। आयोग ने कहा कि यदि देशद्रोह कानून नहीं होगा तो फिर सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने के मामलों में अलग-अलग कानूनों के तहत ऐक्शन होगा। उन कानूनों के खिलाफ तो और भी कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे देशों ने सेक्शन 124A हटा दिया है। इसलिए हम भी ऐसा नहीं कर सकते। भारत की स्थितियां अलग हैं और हमें उस हकीकत को समझना होगा।
मानसून सत्र में पेश किया जा सकता प्रस्ताव
केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में एक प्रस्ताव भी लाया जा सकता है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बीती एक मई को भी इसके बारे में जानकारी दी थी। सरकार का कहना है कि 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया आखिरी चरण में है। इसे मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है और इसमें बदलाव को लेकर सरकार प्रस्ताव लेकर आने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून किया था स्थगित
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल मई के महीने में देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था। तब राज्य सरकारों से कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से इस कानून को लेकर जांच पूरी होने तक इस प्रावधान के तहत सभी लंबित कार्यवाही में जांच जारी न रखें। जो केस लंबित हैं, उन पर यथास्थिति बनाई जाए।
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