मुंबई। महाराष्ट्र में शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न को लेकर लंबे समय से चल रही तनातनी पर विराम लग गया है। उद्धव गुट को बड़ा झटका लगा है। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न धनुष-बाण देने का फैसला किया है।
शुक्रवार को भारत के चुनाव आयोग ने कहा, पार्टी का नाम “शिवसेना” और प्रतीक “धनुष और तीर” एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा। आयोग ने पाया कि शिवसेना पार्टी का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है। बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक मंडली के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करने के लिए इसे विकृत कर दिया गया है। इस तरह की पार्टी संरचना विश्वास को प्रेरित करने में विफल रहती है।
ECI ने शिवसेना को आईना दिखाया
ECI ने कहा, “2018 में संशोधित शिवसेना का संविधान चुनाव आयोग को नहीं दिया गया। संशोधन के बाद 1999 के पार्टी संविधान में लोकतांत्रिक मानदंडों को पेश करने के कार्य को पूर्ववत कर दिया था। आयोग के आग्रह पर स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना के संविधान में संशोधन किए थे।” शिवसेना के मूल संविधान के अलोकतांत्रिक मानदंडों को रेखांकित करते हुए चुनाव आयोग ने सख्त लहजे में कहा, 1999 में आयोग ने इसे स्वीकार नहीं किया था। इसे गुप्त तरीके से वापस लाया गया है, जिससे पार्टी एक जागीर के समान हो गई है।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों की राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर भी टिप्पणी की। ECI ने कहा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी एक ऐसा निकाय है जिसका ‘निर्वाचिन’ आम तौर पर ‘नियुक्त’ की गई प्रतिनिधि सभा के माध्यम से होता है। आयोग ने वर्ष 1999 में बाला साहेब को आजीवन सेना का नेता बनाए जाने पर मसौदा संशोधनों का जिक्र कर शिवसेना से कहा, “संक्षेप में कहें तो, पार्टी संविधान में अध्यक्ष द्वारा निर्वाचक मंडल (Electoral College) को नामांकित करने की परिकल्पना की गई है, उन्हें ही पार्टी अध्यक्ष चुनना है। इसलिए, वर्तमान विवाद के मामले को निर्धारित करने के लिए ”पार्टी संविधान की परीक्षा” पर कोई भी भरोसा अलोकतांत्रिक होगा और पार्टियों में इस तरह की प्रथाओं को फैलाने में भी मददगार साबित होगा।
प्रतिद्वंद्वी समूहों के सभी विकल्पों को दबाने के प्रयास
चुनाव आयोग ने कहा कि शिवसेना का 2018 का संविधान, असहमति के उपाय/तरीके के महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रतिद्वंद्वी समूहों के सभी विकल्पों को दबा देता है। इससे एक ही व्यक्ति को विभिन्न संगठनात्मक नियुक्तियां करने की व्यापक शक्तियां मिलती हैं।
शिंदे और उद्धव ठाकरे के पास कितना ‘जनाधार’?
आयोग ने एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे की लड़ाई का नंबर गेम भी स्पष्ट किया। ECI के अनुसार “शिंदे गुट का समर्थन करने वाले 40 विधायकों ने कुल 47,82440 वोटों में से 36,57327 वोट हासिल किए। इस आधार पर महाराष्ट्र विधानसभा में संख्याबल पर आयोग ने कहा, यह वोट प्रतिशत शिवसेना के 55 विजयी विधायकों के पक्ष में डाले गए वोटों का कुल 76 प्रतिशत है। लोक सभा में शिवसेना के 19 सांसद हैं। ECI के अनुसार जिन 15 विधायकों के समर्थन का उद्धव ठाकरे गुट ने दावा किया उन्हें 25113 वोट मिले। जीतने वाले 55 विधायकों के पक्ष में पड़े वोटों का ये 23.5 फीसदी है।
लोक सभा में उद्धव गुट का जनाधार
आयोग ने लोक सभा और राज्य सभा में शिवसेना सांसदों की संख्या के बारे में कहा, “लोकसभा चुनाव 2019 में 18 सांसदों के पक्ष में कुल 1,02,45143 वोट पड़े। शिंदे गुट का समर्थन करने वाले 13 सांसदों को 74,88,634 वोट हासिल हुए। यानी कुल वोटों का 73 प्रतिशत। उद्धव ठाकरे गुट के समर्थन वाले 5 सांसदों को 27,56,509 वोट मिले, जो केवल 27 प्रतिशत वोट हैं। यह भी रोचक है कि छह सांसदों के समर्थन का दावा करने वाला उद्धव गुट केवल 4 हलफनामे दायर कर सका।
लोक सभा में शिंदे गुट को अधिक वोट
आयोग ने कहा, लोकसभा चुनाव 2019 में हारने वाले उम्मीदवारों सहित शिवसेना को कुल 1,25,89064 वोट मिले। इस आधार पर भी शिंदे गुट का समर्थन करने वाले 13 सांसदों के वोट शेयर 59 प्रतिशत हैं, जबकि उद्धव ठाकरे गुट का समर्थन करने वाले 5 सांसदों को केवल 22 प्रतिशत वोट मिले हैं।
तीन महीने पहले ECI का अंतरिम आदेश
बता दें कि पिछले महीने, महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले दोनों गुटों ने शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न पर नियंत्रण के अपने दावों के समर्थन में अपने लिखित बयान चुनाव आयोग को सौंपे थे। पिछले साल नवंबर में अंधेरी पूर्व विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के लिए ECI शिवसेना के इलेक्शन सिंबल- धनुष और तीर को फ्रीज कर दिया एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना को ‘दो तलवारें और ढाल का प्रतीक’ आवंटित किया था। उद्धव ठाकरे गुट को ‘ज्वलंत मशाल’ (मशाल) चुनाव चिह्न दिया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट में हारे थे उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के इलेक्शन सिंबल- तीर-कमान को फ्रीज करने के फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। हालांकि, अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी। चुनाव आयोग ने अंधेरी पूर्व सीट पर उपचुनावों के समय अंतरिम आदेश में कहा, दोनों समूहों में से किसी को भी “शिवसेना” के लिए आरक्षित प्रतीक “धनुष और तीर” का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
शिंदे ने कहा- यह लोकतंत्र की जीत है
चुनाव आयोग के फैसले पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा- यह हमारे कार्यकर्ताओं, सांसदों, विधायकों, जनप्रतिनिधियों और लाखों शिवसैनिकों सहित बालासाहेब और आनंद दीघे की विचारधाराओं की जीत है। यह लोकतंत्र की जीत है। उन्होंने कहा- यह देश बाबासाहेब अंबेडकर की ओर से तैयार किए गए संविधान पर चलता है। हमने उस संविधान के आधार पर अपनी सरकार बनाई। चुनाव आयोग का आज जो आदेश आया है, वह मेरिट के आधार पर है। मैं चुनाव आयोग का आभार व्यक्त करता हूं।
उद्धव बोले- सरकार की दादागीरी चल रही
उद्धव ठाकरे ने फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा- देश में लोकतंत्र खत्म हो गया है। पार्टी किसकी है, ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय करेंगे तो संगठन का क्या मतलब रह जाएगा। चुनाव आयोग का फैसला लोकतंत्र के लिए घातक है। हमारी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। देश में सरकार की दादागीरी चल रही है। हिम्मत है तो चुनाव मैदान में आइये, चुनाव लड़िए। वहां जनता बताएगी कि कौन असली है और कौन नकली।
संजय राउत ने कहा- देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा
चुनाव आयोग के फैसले पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने ट्वीट किया- इसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी। देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। कहा गया था कि नतीजा हमारे पक्ष में होगा, लेकिन अब एक चमत्कार हो गया है। लड़ते रहो। ऊपर से नीचे तक करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया है। हमें फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जनता हमारे साथ है। हम जनता के दरबार में नया चिह्न लेकर जाएंगे और फिर से शिवसेना खड़ी करके दिखाएंगे, ये लोकतंत्र की हत्या है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- चुनाव आयोग अपना काम करे
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने शिवसेना पर शिंदे गुट के दावे को लेकर चुनाव आयोग की कार्यवाही पर लगी रोक हटा दी थी। कोर्ट ने पिछले साल 27 सितंबर को अपने आदेश में कहा था कि आयोग शिवसेना के चुनाव चिह्न पर फैसला कर सकता है।
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