नई दिल्ली। रसोई में व्यंजनों की रंगत निखारने वाली हल्दी से अब मलाशय (कोलोरेक्टल) कैंसर का सटीक इलाज होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने इस पर शोध करने में सफलता पाई है।
शोध के निष्कर्ष कार्बोहाइड्रेट पॉलीमर नामक जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के शोध प्रमुख सहायक प्रो. डॉ. गरिमा अग्रवाल ने आईआईटी मंडी के विद्यार्थी डॉ. अंकुर सूद और आस्था गुप्ता के साथ मिलकर इस शोध पर काम किया है। मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल, वॉर्सेस्टर, संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रोफेसर रो. नील सिल्वरमैन इस शोधपत्र के सह लेखक हैं। शोधपत्र में जिक्र किया है कि इस कैंसर से दुनिया में मृत्यु दर बढ़ी है। भारत में पुरुषों में यह तीसरा सबसे आम कैंसर है, जबकि पूरी दुनिया में महिलाओं को होने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है।
विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, भारत सरकार के प्रोजेक्ट के तहत किए इस अनुसंधान में शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक पॉलीमर (हल्दी के करक्यूमिन) पर आधारित ऐसा स्मार्ट नैनो पार्टिकल्स तैयार किया, जिसे कैंसर की रोकथाम के लिए बनी दवाओं में मिलाकर उस दवा को और अधिक प्रभावशाली बनाया जाएगा। ये पार्टिकल्स कैंसर ग्रस्त हिस्से में उन टिश्यू पर ही दवा पहुंचाएंगे, जिनसे कैंसर पनपता है। ऐसे में कैंसर रोधी दवाओं के साथ कैंसर रोधी प्रक्रिया के इस तालमेल से कैंसर के इलाज का अधिक कारगर रास्ता मिलेगा।
इस तरह काम करेगा सिस्टम
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि डिजाइन किया सिस्टम पानी में अलग-अलग घुलनशील दवाओं का सपोर्ट करने में सक्षम होना चाहिए। इसके लिए हमने बायोडिग्रेडेबल (हल्दी) से नैनो पार्टिकल विकसित करने का सरल तरीका अपनाते हुए चिटोसन का उपयोग किया, जो डाइसल्फाइड रसायन के संयोजन में प्राकृतिक रूप से प्राप्त पॉलीमर है। शोधकर्ताओं ने डिजाइन किए सिस्टम की कैंसर कोशिका मारक क्षमता का सफल परीक्षण चूहों पर इन विट्रो विधि से किया।
क्या है कोलेरेक्टल कैंसर
कोलोरेक्टल कैंसर कोलन या मलाशय में होता है। इसे कोलन कैंसर या रेक्टल कैंसर भी कहते हैं। अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर कोलन या मलाशय की आंतरिक परत पर वृद्धि से शुरू होता है। इस वृद्धि को पॉलीप्स कहा जाता है। इनमें से कई पॉलीप्स कैंसर का रूप ले लेते हैं। यह पॉलीप के प्रकार पर निर्भर करता है।
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