नई दिल्ली। हलाल प्रमाणित उत्पादों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई है। याचिका में शीर्ष अदालत से हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंध लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की है। वहीं, याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि किसी के धार्मिक विश्वास को किसी अन्य पर थोपना धर्मनिर्पेक्षता के खिलाफ है। वकील विभोर आनंद ने एड्वोकेट रवि कुमार तोमर के जरिए यह याचिका दायर हुई है।
याचिकाकर्ता ने हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और जमियत उलेमा-ए-हिं हलाल ट्रस्ट समेत संबंधित अधिकारियों की तरफ से हलाल प्रमाणित किए गए प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश देने की मांग की है। याचिका में अपील की गई है कि अदालत इस संबंध में हलाल प्रोडक्ट से जुड़े संबंधित अधिकरणों को निर्देश जारी करे ताकि भारत में इसका व्यापार बंद हो सके। याचिका में बताया गया है कि हलाल सर्टिफिकेशन की व्यवस्था पहली बार 1974 में लागू की गई। 1974 से पहले हलास प्रमाणीकरण की व्यवस्था नहीं थी।
इसके साथ यह भी बताया गया है कि 1974 से 1993 तक हलाल सर्टिफिकेशन सिर्फ मीट प्रोडक्ट के लिए दिया जाता था। लेकिन बाद में इसमें कई और उत्पादों को शामिल किया गया। खास बात है कि याचिका में 1974 से जारी किए गए सर्टिफिकेट्स को शून्य करने की मांग की गई है। साथ ही याचिका में पूरे भारत से हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स वापस लेने की मांग की है।
याचिकाकर्ता ने कहा, ‘…देश के 85 फीसदी नागरिकों के लिए अनुच्छेद 14, 21 के तहत दिए गए अधिकारों को लागू करने के लिए याचिकाकर्ता की तरफ से यह याचिका दायर की जा रही है। क्योंकि इन अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। यह देखा गया है कि 15 फीसदी आबादी के लिए बाकी 85 प्रतिशत लोगों को उनके इच्छा के खिलाफ हलाल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।’
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