नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक गर्भवती महिला द्वारा एबॉर्शन की अनुमति पर एम्स को मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया। महिला ने अपने 27 हफ्ते के भ्रूण को कमजोर सेहत व जीवित बचने की कम संभावना को देखते हुए गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी है। कुछ अपवादों को छोड़कर 24 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करना देश में गैर कानूनी है।
अधिवक्ता स्नेहा मुखर्जी और सुरभि शुक्ला के माध्यम से दायर याचिका में 33 वर्षीय महिला ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) कानून के तहत अदालत से अपने गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी है। याचिका के मुताबिक डॉक्टरों ने महिला को बताया है कि भ्रूण की स्थिति गंभीर है और बच्चे के जीवित रहने की संभावना 50 प्रतिशत से भी कम है। उसकी स्थिति बेहद खराब है, जन्म के बाद भी उसका हृदय बंद होने की आशंका है।
गर्भवती महिला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत इसे टर्मिनेट करना चाहती है लेकिन अधिकारी अनुमति नहीं दे रहे। गर्भपात को असुरक्षित बना कर महिला की जान को खतरे में डाला जा रहा है। यह भारत में मातृत्व मृत्यु दर खराब होने की भी वजह है।
याचिका में कहा गया है कि एमटीपी कानून के तहत 24 हफ्ते बाद गर्भपात न करवा पाने के अधिनियम के अतार्किक नियम से महिला की मानसिक स्थिति बिगड़ रही है। महिला को काफी मानसिक और शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ा है। इस साल सितंबर में गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) कानून, 2021 लागू किया गया था। इसके तहत बलात्कार पीड़िताओं, दुराचार की शिकार और दिव्यांग, नाबालिगों, अन्य कमजोर महिलाओं सहित विशेष श्रेणियों की महिलाओं के लिए गर्भ की ऊपरी सीमा को 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ाने का प्रावधान करता है।
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