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आम आदमी पार्टी सरकार ने 1000 लो फ्लोर बसें खरीदने के लिए दो कंपनियों के साथ अनुबंध किया था लेकिन इस प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप लग रहे थे। दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने परिवहन विभाग के सतर्कता निदेशक को इस संबंध में पत्र लिखा था
नई दिल्ली। दिल्ली में एक हजार लो फ्लोर बसों की खरीद में कथित अनियमितता का मामला सीबीआइ को सौंपा गया। अब सीबीआइ इस मामले की जांच करेगी।
बता दें कि आम आदमी पार्टी सरकार ने 1000 लो फ्लोर बसें खरीदने के लिए दो कंपनियों के साथ अनुबंध किया था, लेकिन इस प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप लग रहे थे। दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने परिवहन विभाग के सतर्कता निदेशक को इस संबंध में पत्र लिखा था, लेकिन एक माह बाद भी जवाब नहीं मिला। अब इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने को इजाजत दे दी गई है।
इससे पहले भाजपा ने आरोप लगया था कि बसों की कीमत से ज्यादा खर्च इनके तीन साल के रखरखाव पर किया जाएगा। जबकि, खरीद की शर्तों के मुताबिक तीन साल तक इन बसों के रखरखाव की जिम्मेदारी आपूर्तिकर्ता कंपनियों की ही होनी चाहिए। विजेंद्र गुप्ता व अन्य भाजपा विधायकों ने मार्च में इसकी शिकायत एसीबी से की थी। उनका आरोप है कि टेंडर की शर्तों को नजरअंदाज कर बसों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों को रखरखाव के लिए प्रत्येक वर्ष 350 करोड़ रुपये भुगतान करने का फैसला किया गया है। जबकि, तीन साल की वारंटी की अवधि में यह भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।
भाजपा ने दो माह पूर्व 21 जून 2021 को लो फ्लोर बस खरीद मामले की सीबीआइ से जांच कराने की मांग की थी। भाजपा नेताओं का कहना है कि लो फ्लोर बसों की खरीद प्रक्रिया में अनियमितता हुई है। इसके लिए दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत और दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के प्रबंध निदेशक जिम्मेदार हैं। दोनों को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार इस मामले को दबाना चाह रही है इसलिए दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एबीसी) को जांच की अनुमति नहीं दे रही है। इस मामले की शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग से की जाएगी।
इससे पहले दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा था कि दिल्ली में आज 15 हजार बसों की जरूरत है, लेकिन पिछले छह सालों में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार एक भी बस नहीं खरीद सकी है। इस समय दिल्ली की सड़कों पर चल रही डीटीसी बसों की आयु सितंबर तक पूरी हो जाएगी। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार इन बसों को सितंबर के बाद सड़कों पर नहीं उतारा जा सकेगा। बसों की कमी दूर करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। पारदर्शी तरीके से बसों की खरीद करने की जरूरत है। साभार-दैनिक भास्कर
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