भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की फ्रांस में शुरू हुई न्यायिक जांच की इनसाइड स्टोरी का पहला हिस्सा आप पढ़ चुके हैं। इसमें आपने खोजी पत्रकार यॉन फिलिपीन से भास्कर की बातचीत पढ़ी। आज हम आपके लिए लाए हैं इस इनसाइड स्टोरी का दूसरा हिस्सा। यॉन की राफेल डील में करप्शन के बारे में छपी छह रिपोर्ट के आधार पर ही फ्रांस में भ्रष्टाचार और वित्तीय अपराधों के खिलाफ काम करने वाले NGO ‘शेरपा’ ने फ्रांस की सार्वजनिक अभियोजन सेवा (पीएनएफ) से इस सौदे में भ्रष्टाचार की शिकायत की है।
फ्रांस की सरकारी जांच एजेंसी (PNF) ने ‘शेरपा’ के सभी आरोपों को स्वीकार करते हुए 14 जून को जांच शुरू कर दी है। दैनिक भास्कर ने इस पूरे मसले को विस्तार से समझने के लिए शिकायत करने वाले NGO ‘शेरपा’ की लिटिगेशन अधिकारी शॉनेज मंसूस से भी बात की। पढ़िए, पूरी बातचीत…
सवाल: ‘शेरपा’ ने इस रक्षा सौदे के खिलाफ फ्रांस की भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी में शिकायत क्यों की?
जवाब: 2018 में हमें भारत में राफेल डील के संबंध में कानूनी कार्रवाई शुरू होने के बारे में पता चला था। हमने भी इस मसले पर जानकारी जुटानी शुरू की तो हमें पता चला कि संदेह करने के ठोस कारण हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। इसमें फ्रांस की कंपनी शामिल थी और ये संवेदनशील मामला रक्षा सौदे से जुड़ा था। हमने तय किया कि भारत में सिविल सोसाइटी और पत्रकार इस मामले को जिस तरह उठा रहे हैं, उसी तरह इसे फ्रांस में भी उठाया जाए। भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में दो पक्ष होते हैं। हमने फ्रांस वाले पक्ष पर फोकस किया।
सवाल: फ्रांस में न्यायपालिका ने राफेल डील में भ्रष्टाचार की जांच शुरू कर दी है। हम यहां किस तरह के भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं? क्या ये राजनीतिक प्रभाव के गलत इस्तेमाल का भी मामला है?
जवाब: हम ठोस रूप से अब कोई आरोप नहीं लगा सकते हैं, क्योंकि अब सब कुछ जज के सामने है। लेकिन, हमने इस सौदे के इर्द-गिर्द हुए लेन-देन में शक के कारणों को रेखांकित किया है। हमने उन लोगों की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं जो डील को प्रभावित कर सकने वाले लोगों और अधिकारियों के करीब थे। हमें लगता है कि जांच शुरू करने के लिए ये पर्याप्त कारण हैं।
सवाल: इस जांच के केंद्र में कौन होगा? आपको क्या लगता है कौन-कौन जज के सामने पेश हो सकता है?
जवाब: हमें लगता है कि इस डील में शामिल सभी लोग जज के समक्ष बुलाए जाएंगे और उनकी जिम्मेदारी तय की जाएगी। हम सिर्फ लोगों पर ही फोकस नहीं कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि कंपनी की जिम्मेदारी भी तय की जाए। कंपनी की भूमिका और उसकी पूरी संरचना संदेह के घेरे में है। हम ‘शेरपा’ में ये देखते हैं कि भ्रष्टाचार कई बार सिस्टम का हिस्सा होता है। इसमें सिर्फ लोग शामिल नहीं होते बल्कि सिस्टम और कंपनियां भी शामिल होती हैं। दसॉ के मध्यस्थ के कमीशन और अनिल अंबानी की रिलायंस एविएशन को फायदा पहुंचाने की बात हमारी शिकायत में है। हम चाहते हैं कि जांच के दायरे में ये कंपनियां भी हों।
सवाल: भ्रष्टाचार के इस मामले की जांच फ्रांस के राष्ट्रीय हितों को भी प्रभावित कर सकती है। इस पर आप क्या कहेंगी?
जवाब: हम यहां रक्षा सौदे की बात कर रहे हैं। इसमें शामिल कंपनी दसॉ फ्रांस की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है। हम जानते हैं कि इस तरह के बड़े रक्षा सौदे राजनीतिक एजेंडे से भी प्रभावित होते हैं। राफेल सौदे में भी यही हुआ है। ये समझौता फ्रांस की सरकार और भारत की सरकार के बीच हुआ है। इस बात को खारिज करने का कोई कारण नहीं है कि ऐसे मामलों में राष्ट्रीय हित भी दांव पर होते हैं, लेकिन राष्ट्रीय हितों की आड़ में किसी आपराधिक गलती को ढंका नहीं जा सकता है।
सवाल: इस जांच का फ्रांस के भविष्य के रक्षा सौदों पर क्या असर हो सकता है?
जवाब: हम उम्मीद करते हैं कि ये पूरा मामला, जो 2018 में हमारी पहली शिकायत से शुरू हुआ था और अब जांच तक पहुंचा है, इसका फैसला फ्रांस में भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए स्थापित तंत्र की नाकामियों को भी सामने लाएगा। रक्षा सौदे के बारे में सार्वजनिक तौर पर बहुत जानकारियां उपलब्ध नहीं होती हैं। हमें लगता है कि इस मामले से भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत तंत्र की जरूरत पर भी बात होगी।
सवाल: क्या आपको लगता है कि इस जांच से राफेल जेट भी सवालों के घेरे में आ गया है?
जवाब: मैं नहीं जानती कि इस सवाल का जवाब कैसे दिया जाए, लेकिन इस मामले का मुख्य बिंदु यही है कि इस डील में जो हुआ है, उसमें भ्रष्टाचार के संदेह के ठोस कारण हैं। हमें लगता है कि इसकी अभी तक जांच न हो पाने के कारण राजनीतिक हैं। हम ये नहीं समझ पा रहे हैं कि अब तक इसकी कोई जांच क्यों नहीं हुई थी।
सवाल: क्या आपको लगता है कि इसमें सरकारें शामिल हैं और जनता के सामने पूरा सच नहीं आ सकेगा?
जवाब: संभवतः पूरा सच सामने नहीं आएगा। जब हमने ये शुरू किया तब हम जानते थे कि हर जिम्मेदारी को तय नहीं किया जा सकेगा, लेकिन अधिक पारदर्शिता लाने की मांग बढ़ रही है। हमने देखा है कि फ्रांस में स्कैंडल में फंसे राजनेताओं के खिलाफ मुकदमे चले हैं। हम जानते हैं कि जांच का रास्ता मुश्किल है, लेकिन हमें उम्मीद है कि इसमें नतीजा निकलेगा। अभी तक हमें अच्छे संकेत मिल रहे हैं।
सवाल: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसकी जांच शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। क्या आपको लगता है कि भारत में भी इस मामले की जांच होनी चाहिए?
जवाब: ये मेरे लिए जटिल सवाल है, क्योंकि मैं भारत की कानून व्यवस्था को अच्छे से नहीं समझती हूं। मैं अभी भारत की न्याय व्यवस्था पर अपनी राय जाहिर नहीं करूंगी।
सवाल: आपको भारत में अपने सहयोगियों और सूत्रों से किस तरह का सहयोग मिला?
जवाब: फ्रांस में इस मामले को मजबूत करने में हमें भारत के कार्यकर्ताओं का भरपूर सहयोग मिला है। भारत में वो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसे ही काम कर रहे थे, जैसे हम फ्रांस में। ये अच्छी बात थी कि भारत के लोगों ने भी राष्ट्रीय हितों से आगे बढ़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ सबूत जुटाए और भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश की। हम अपने भारतीय साथियों का नाम नहीं लेंगे, क्योंकि हम उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
सवाल: ‘शेरपा’ इस मामले की 2018 में जांच शुरू करवाने में नाकाम रही थी। इस बार कामयाबी कैसे मिली?
जवाब: फ्रांस की न्यायिक व्यवस्था में हमारा पहला कदम था सिर्फ शिकायत करना ताकि ये मामला वित्तीय अभियोजक के समक्ष उठ सके। हमने विस्तृत शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें भ्रष्टाचार के संदेह से जुड़े पर्याप्त दस्तावेज थे। हमने ये भी बताया था कि हम किन बिंदुओं पर जांच चाहते हैं।
जाहिर तौर पर फ्रांस की न्याय व्यवस्था में सार्वजनिक अभियोजक राजनीतिक सत्ता के प्रभाव में रहे हैं। तमाम सबूतों के बावजूद उन्होंने जांच शुरू न करने का फैसला किया। राफेल सौदे पर रोशनी डालने का ये हमारा पहला प्रयास था। इसके बाद हमने फिर से शिकायत की, इस बार हम स्वतंत्र जज नियुक्त कराने में कामयाब रहे।
सवाल: आपको क्या लगता है, इस मामले में चार्जशीट कब तक दायर हो सकती है, मामले को अंजाम तक पहुंचने में कितना वक्त लग सकता है?
जवाब: कितना समय लगेगा ये अनुमान लगाना मुश्किल है। हमें लगता है कि इसमें कई साल लग सकते हैं, कम से कम एक साल तो लगेगा ही। इस मामले के कई पक्ष हैं। फ्रांस को भारत से भी सहयोग की जरूरत होगी। हम ये जानते हैं कि ये मामला कुछ सप्ताह या महीनों में समाप्त नहीं होगा, लेकिन न्यायिक जांच शुरू होना अपने आप में अच्छी खबर है। हम आशा करते हैं कि भारत जांच में सहयोग करेगा।
सवाल: क्या भारतीय भी फ्रांस की अदालत में पेश हो सकते हैं?
जवाब: हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं। हमारे लिए ये अनुमान लगाना मुश्किल है। कुछ रणनीतिक कारणों से हमारी शिकायत एक्स (नाम नहीं लिया) के खिलाफ थी, क्योंकि हम चाहते हैं कि इस मामले में जज सबकी जिम्मेदारी तय करे। उन लोगों की भी जिनके बारे में हम बहुत पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाए। हमें विश्वास है कि जज सभी जिम्मेदार लोगों को बुलाएंगे।
सवाल: कई बार गैर सरकारी संगठनों पर निहित स्वार्थों के तहत एजेंडा चलाने के आरोप भी लगते हैं। इस पर आप क्या कहेंगी?
जवाब: हमें लगता है कि ये बेहद कमजोर तर्क है। यदि राजनीतिक कारणों से भी भ्रष्टाचार उजागर किया जा रहा है तो ये होना चाहिए। शेरपा की शिकायत में कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। हम सिर्फ एक ही संदेश देना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई मजबूत हो।
सवाल: यदि भ्रष्टाचार हुआ है तो कहीं न कहीं भारत के लोगों के टैक्स का पैसा गया है। भारत के लोगों से आप क्या कहना चाहेंगी?
जवाब: मैं सबसे पहले भारत के लोगों का शुक्रिया करना चाहती हूं। राफेल सौदे की ये जांच भारत के लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। भारत में इस सौदे के इर्द-गिर्द कानूनी सवाल उठाए गए हैं, उससे हमें मजबूती मिली है।
साभार-दैनिक भास्कर
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