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कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने कई परिवारों को पूरी तरह उजाड़ दिया है. कई परिवार ऐसे हैं, जिनमें महिलाओं ने अपना साथी खो दिया है. इनमें से कई महिलाएं तीस-चालीस साल की उम्र की हैं. इससे पहले वे काम के लिए कभी घर से बाहर नहीं निकली थीं. ज्यादातर गृहिणियां रही हैं. अब उनके सामने आर्थिक दिक्कतें हैं. सामने अनिश्चित भविष्य है.
महामारी में अपने पतियों को खो चुकीं ये महिलाएँ ऐसी व्यवस्था का हिस्सा रही हैं जहाँ वे घर से बाहर के सारे कामों के लिए पति पर निर्भर रही हैं. उनके पास न तो कोई प्रोफेशनल डिग्री है और न घर से बाहर निकलकर काम करने का अनुभव. इनमें से बहुतों के लिए दोबारा शादी का भी विकल्प भी आसान नहीं है.
बीबीसी न्यूज़ ने हाल ही में अपने पति को खो चुकीं 32 साल की महिला रेणु से बात की. रेणु के पति की 25 अप्रैल को कोविड से मौत हो गई थी. रेणु की जिंदगी इन दिनों जिस दौर से गुजर रही है, उसके बारे में उन्होंने खुलकर बताया.
“जिस भी दिन मैं उन्हें याद करती हूं, उनकी सफेद टी-शर्ट पहन लेती हूँ. मुझे मालूम है यह टी-शर्ट हमेशा नहीं रहेगी. मेरा मतलब है कि हर चीज एक न एक दिन खत्म हो जाती है. शादी जिंदगी भर का साथ होता है लेकिन आधी जिंदगी के सफ़र में उसने भी साथ छोड़ दिया.
उनके बगैर बिस्तर पर जाना अजीब लगता है. उठते ही अजनबीपन का अहसास होता है और फिर रोने के लिए कोई खाली कोना खोजने लगती हूँ. नौ साल की मेरी बेटी तब तक जगी रहती है, जब तक मैं सो न जाऊँ. उसकी उम्र सिर्फ नौ साल है लेकिन मुझे लगता है कि मौत आपको जल्दी बड़ा कर देती है.
एक दिन मैंने उसे ऊपर सीढ़ियों पर बैठ कर रोते देखा. वह अपने पिता की तस्वीर सीने में दबाए सुबक रही थी. मैंने उसके पास जाकर कहा कि अगर वह रोएगी तो मेरा दिमाग कैसे ठीक रहेगा और मैं कैसे परिवार की देखभाल करूँगी. उसने कहा, मैं अब कभी नहीं रोऊँगी. उसने भी मुझसे इस बात का वादा लिया कि मैं भी नहीं रोऊँगी. अब हम दोनों इस वादे को निभाने की कोशिश करते हैं.
मेरा बेटा चार साल का है. उसे लगता है कि पापा अस्पताल गए हैं और जल्द ही लौट आएँगे. जिस दिन वह इस दुनिया से गए वो मुझे अच्छी तरह याद है. उनके फेफड़े खराब हो गए थे. उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि वे कोविड के शिकार हैं. लेकिन जिस दिन वे उन्हें अस्पताल ले गए उन्होंने सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की. डॉक्टरों ने देखकर बताया कि वह कोविड पॉजिटिव हैं.
अस्पताल में ऑक्सीजन के ज्यादा सिलेंडर नहीं थे इसलिए मेरे सास-ससुर से कहा कि उन्हें घर ले जाएं. उनके दोस्तों की मदद से कुछ सिलेंडरों का इंतजाम किया गया.
जिंदगी एक पल में बिखर जाती है
उस दोपहर को वे सो गए. 25 अप्रैल का दिन था. कुछ दोस्त मिलने आए थे. मैंने सास-ससुर और बच्चों को दूर रहने के लिए कह रखा था. सिर्फ मैं उनके साथ थी. शाम को उन्होंने कहा, बच्चों को पास ले आओ.
उन्होंने मुझे इशारे से दूरी बनाए रखने के लिए. फिर दोनों बच्चों की ओर देख कर मुस्कुरा दिए. मैंने कहा आपको कुछ नहीं होगा. उन्होंने कहा कि तुम साथ हो तो इससे भी छुटकारा मिल ही जाएगा.
रात के साढ़े दस बजे रहे थे. हम लोग उनका ऑक्सीजन सिलेंडर बदल ही रह थे कि उनके दोस्त और हमारे पड़ोसी ने ऑक्सीमीटर की रीडिंग देखी तो लेवल जीरो पर पहुंच चुका था. नब्ज गिर चुकी थी.
उनके दोस्त संदीप ने सीपीआर किया. वे मेडिकल प्रोफेशनल हैं. उन्होंने अस्पताल के डॉक्टर का बताया, एक इंजेक्शन भी लगाया गया लेकिन मेरे पति का दिल थम चुका था. वो दूसरी दुनिया में जा चुके थे. ऐसे ही चले गए. सिर्फ 37 साल के थे.
जिंदगी एक पल में बदल जाती है. यह सच बात है.
मुझे उनका किचन में काम करना याद आता है. लॉकडाउन के दौरान हम साथ-साथ किचन में कुछ-न-कुछ बनाते थे. वे गूगल पर जाकर कोई रेसिपी खोजते. मैं सब्जियां काटती थी और वे रेसिपी के मुताबिक खाना तैयार करते. अब मुझे कौन कहेगा कि ये बनाओ, वो बनाओ.
जब मेरी शादी हुई
सबसे ज्यादा मैं भविष्य को लेकर डरी हुई हूँ. मुझे अपने बच्चों का सोचकर डर लग रहा है. प्यार के बगैर आगे की जिंदगी गुजारने को लेकर डरी हुई हूँ. मैं हमेशा एक प्रोफेशनल मेक-अप आर्टिस्ट बनना चाहती थी. दसवीं क्लास के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी थी.
मैंने ज्यादा पढ़ाई नहीं की. मैं पुरानी दिल्ली में पली-बढ़ी. मेरी मां गृहिणी थीं. पिताजी रेलवे में नौकरी करते थे. मैं और मेरे जुड़वें भाई का जन्म एक पुराने घर में हुआ था. मैं भाई-बहनों में सबसे बड़ी हूँ. बाद में मेरी माँ की और दो संतानें हुईं. मुझे पहनना-ओढ़ना पसंद था और मेकअप को लेकर तो दीवानगी थी.
छठी क्लास में ही मैंने चाची की लिपस्टिक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. वह गुस्सा होती थीं लेकिन मैं उसकी परवाह नहीं करती. मेरी बुआ का लक्ष्मीनगर में एक पार्लर था. मैं अक्सर वहां जाकर उन्हें काम करते हुई देखती.
मैं युवा थी लेकिन शादी के लिए अपनी पसंद का लड़का नहीं ढूँढ पाई. मेरी उम्र 20 साल थी, जब मैं अपने पति से मिली. यह 2009 का समय था. मेरी मुलाकात पहली बार उनसे तब हुई जब वह अपने माता-पिता के साथ मेरे घर आए. हमारी अरैंज्ड मैरिज थी.
मेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और वह चाहते थे कि मेरी जल्द से जल्द शादी हो जाए. फिल्मों में जैसा दिखाया जाता है ठीक उसी तरह मैं स्नैक्स और चाय की ट्रे लेकर उन लोगों के सामने गई. उसी वक्त पहली बार मैंने उन्हें देखा. फिर हमें एक कमरे में भेज दिया ताकि हम बात कर शादी का फैसला ले सकें.
मैंने उन्हें बताया कि मुझे ड्रेसअप करना अच्छा लगता है. मैं मेकअप लगाना पसंद करती हूँ. उन्होंने मुझसे कहा उनके परिवार को इससे कोई ऐतराज नहीं होगा. वह हंसते रहे. कहने लगे, मैंने तुम्हें पहले ही पसंद कर लिया है.
फिर मैं वहां चली आई, जहां हमारे परिवार के लोग बैठे हुए थे. मैंने उन्हें कह दिया कि मुझे लड़का पसंद है. मुझे याद है कि मुझे उनकी मुस्कुराहट भा गई थी. लगता है कि शादी का फैसला लेने में इस मुस्कुराहट की भी भूमिका थी. एक साल बाद 19 नवंबर 2010 को हमारी शादी हो गई.
‘अब मैं बहुत अकेली हो गई हूँ’
कुछ महीनों बाद मैं पहली बार गर्भवती हुई लेकिन उस वक्त मैं माँ नहीं बनना चाहती थी. यह बहुत जल्दी था लेकिन मेरे पति ने कहा कि हमें बच्चे को दुनिया में आने देना चाहिए. मैंने बेटी को जन्म दिया. उन्हें बेटी से बेहद प्यार था.
2013 में मैंने मेकअप का कोर्स किया. मुझे लगभग नौकरी मिल ही गई थी लेकिन बेटी छोटी थी इसलिए घर पर रहने का फैसला किया. लेकिन मैंने फ्रीलांस काम करना शुरू किया और हर महीने 20 से 25 हजार रुपये कमाने लगी. 2016 में बेटा पैदा हुआ.
पिछले साल अप्रैल में मेरे पास ब्राइडल मेकअप की 20 बुकिंग थी. मेरे पास अच्छा पैसा कमाने का मौका था लेकिन तभी लॉकडाउन लग गया. एक साल तक मेरे पास काम नहीं था. जो पैसे कमाए थे, उन्हें खर्च कर दिया था. मैंने ज्वैलरी खरीद ली थी. कुछ गिफ्ट खरीदे थे. जूते और गाउन खरीदे थे.
यह सब देखकर मेरे पति अक्सर परेशान भी हो जाते थे और कहते थे कि जिंदगी और मौत की कोई गारंटी नहीं है. लेकिन जब आप युवा होते हैं और आपके पैसा होता है तो आप मौत के बारे में नहीं सोचते हैं.
उनका आखिरी गिफ़्ट
फरवरी में हम रजौरी गार्डन के एक मॉल में गए थे. परिवार में एक शादी थी. हम उसके लिए खरीदारी करने गए थे. उस दौरान मुझे एक डमी पर पहनाया गया पिंक गाउन दिख गया. डिस्पले विंडो में देखते ही मैं उसे पसंद कर बैठी. मुझे लगा कि करीब 4000 रुपये का होगा. उस वक्त मेरे पास इतने ही पैसे थे. लेकिन जब शो-रूम के अंदर पहुंच कर दाम पूछा तो पता चला कि आठ हजार रुपए का है.
मैंने पति से कहा कि गाउन खरीदना पैसे की बर्बादी होगी क्योंकि हर दिन तो कोई इसे पहनेगा नहीं. मैंने बच्चों के लिए सामान खरीदा और लौट आई. अगली शाम जब पति घर लौटे तो उनके हाथ में एक पैकेट था.
उन्होंने इसे मुझे खोलने के लिए कहा. उस पैकेट में वो गाउन था. जब मैंने उन्हें वॉलेट दिलवाया तो वह खीझ गए. उन्होंने कहा यह तो फिजूलखर्ची है. मैंने याद दिलाया कि कैसे उन्होंने मुझे गाउन दिलवाया था. यह गाउन उनका आखिरी गिफ्ट था. और वह वॉलेट मेरी ओर से उन्हें दिया गया आखिरी गिफ्ट.
कुछ दिनों बाद मैं अपने पति का सब कुछ दान कर दूँगी. यह रिवाज है. लेकिन कुछ चीजें अपने पास रख लूँगी. जैसे ये वॉलेट, जिसे मैंने इसी साल मार्च में खरीदा था. मैंने गोवा जाने के लिए पैसे बचाए थे. वो होते थे शायद हम इस अप्रैल में गोवा जाते. मुझे लगता है कि मैं यह बात उनको बताती. मेरी हमेशा से समंदर देखने ख्वाहिश थी. गोवा जाकर जिस तरह से दूसरे जोड़े फोटो खिंचवाते हैं वैसा ही हम भी खिंचवाते. वह मेरे सहयात्री थे. मुझे अब उनकी बहुत याद आती है.
अब मुझे कौन इन जगहों पर ले जाएगा. मैं बहुत अकेली हो गई हूँ.
नौकरी की तलाश
उनको गए एक महीने से ज्यादा हो चुका है. मेरे ससुर को कुछ पेंशन मिलती है. शायद चार हजार रुपये के आसपास. मेरी बेटी एक प्राइवेट स्कूल में जाती है, जिसकी फीस 2100 रुपये महीना है. बचत खत्म हो गई है और हमारे लिए अब जिंदगी चलाना मुश्किल होता जा रहा है. मेरे देवर एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. उनकी कमाई इतनी नहीं कि वह पूरे परिवार की देखभाल कर सकें.
मैं नौकरी खोज रही हूँ. मैंने कुछ फॉर्म भरे थे और मुझे ‘चाइल्ड सर्वाइवल इंडिया’ से जवाब भी मिला है. उन्होंने मुझे नौकरी तलाशने में मदद करने का वादा किया है. कोविड की वजह से फ्री-लांसिंग से भी लंबे समय तक काम नहीं चलाया जा सकता. मुझे अपने बच्चों का डर लगता है. मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे पढ़ें. वे अपना अच्छा करियर बनाएं. मैं तो अपनी जिंदगी किसी तरह जी लूंगी. लेकिन मेरे सामने बहुत अकेलापन होगा.
हर कोई आगे बढ़ जाता है. अब हर कोई अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गया है और मैं अकेले इस कमरे में बैठी हूँ. ऐसा लगता है आसपास कुछ भी नहीं है. सिर्फ घना कोहरा है. अब यहां से जिंदगी में कोई आगे कैसे बढ़े?
जब भी मैं अकेली होती हूं, उनके बारे में सोचने लगती हूं. फोन पर उनके साथ के वीडियो देखती हूं. उनकी चीजें मेरे आसपास फैली हुई हैं. कभी-कभी लगता है कि वह बस लौटने वाले हैं. लेकिन यह अहसास बस कुछ पलों का होता है. हो सकता है यह किसी बुरे सपने की तरह मेरे पास आता हो.
वह अपने बटुए में मेरी, बच्चों और अपने माता-पिता की फोटो रखते थे. उसी वॉलेट में जिसे मैंने बतौर गिफ्ट दिया था. यही साथ-साथ बिताई हमारी जिंदगी थी. हमारे अपने सपने थे. हमारे कुछ डर भी थे. अब मैं अकेली हूं . अब मुझे वे वादे निभाने हैं, जो मैंने किए थे. अब मेरे पास अलग-अलग यादें रह गई हैं.
उनका नाम अमित था. मुझे उनका नाम पसंद था. छोटा और सुंदर.
दोबारा शादी करने की दुविधा
कई लोग कह रहे हैं कि दोबारा शादी कर लो. लेकिन मुझे अपने बच्चों की चिंता है. अगर शादी कर ली और मेरे बच्चों ने अपने नए पिता को नहीं अपनाया तो क्या होगा? मेरी बेटी अपने पिता से बहुत प्यार करती थी. वह जल्दी उठ जाते थे और बेटी को लेकर टहलने निकल जाया करते थे. कभी बेटी को डांटती थी तो परेशान हो जाते थे. बेटी पर जान छिड़कते थे वह. वह बेटी को पायलट बनाना चाहते थे.
अभी शादी की बात बहुत जल्दबाजी होगी. लेकिन अगर मैंने शादी का फैसला किया तो मेरे सास-ससुर इसका विरोध नहीं करेंगे. लेकिन मैं शादी कर यहां से चली गई तो उनकी देखभाल कौन करेगा?
मैंने अपने पति से वादा किया था कि मैं उनके माता-पिता के साथ ही रहूँगी. मेरे एक दोस्त ने कॉल करके मुझसे कहा था कि वह मुझसे शादी करना चाहता है लेकिन मैंने कहा कि अभी मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ. मैं उसे एक साल से ज्यादा वक्त से जानती हूँ . मेरे पति भी उसे जानते थे.
मुझे भी नहीं मालूम कि उसके माँ-बाप दो बच्चों वाली विधवा महिला को बहू के तौर पर स्वीकार करेंगे या नहीं. मेरे दोस्त का कहना है कि उसके मां-बाप प्रगतिशील विचारों के हैं लेकिन अगर शादी के बाद उसने मेरे बच्चों को खुश नहीं रखा तो क्या होगा?
मेरे मना करने के बाद अब वह मुझसे ज्यादा बात नहीं करता. मैंने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया है. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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