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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के रहने वाले भरत सिंह राणा महज 8वीं पास हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से कम उम्र में ही वे खेती करने लगे। पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाले सभी उत्पाद वे अपने खेत में उगाने लगे, लेकिन आमदनी अच्छी नहीं हो रही थी। इसके बाद उन्होंने फलों की बागवानी शुरू की। इससे प्रोडक्शन तो बढ़िया होने लगा, लेकिन वे मार्केटिंग नहीं कर पा रहे थे। जिसके चलते ज्यादातर प्रोडक्ट खराब हो जा रहे थे।
इसके बाद भरत ने अपने प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग करना शुरू कर दिया। आज वे खुबानी का तेल, जूस, अचार, मशरूम पाउडर, पहाड़ी चाय सहित एक दर्जन से अधिक प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग देशभर में कर रहे हैं। इससे वे सालाना 20 लाख रुपए टर्नओवर जेनरेट कर रहे हैं।
प्रोडक्शन तो हो रहा था लेकिन मार्केट नहीं मिल पा रहा था
50 साल के भरत सिंह कहते हैं कि पहाड़ी इलाके में प्रोडक्शन तो हो जाता है, लेकिन उसके लिए मार्केट नहीं मिल पाता है। जब तक दूसरे राज्यों में उसे पहुंचाते हैं, प्रोडक्ट खराब होने लगता है। कई बार अगर किसी कारण ट्रांसपोर्ट की गाड़ी नहीं जा पाई तो और अधिक मुसीबत होती है। वे बताते हैं कि इसको लेकर मैं लंबे समय से परेशान था। कई बार प्रयोग किए, नए-नए प्लांट्स लगाए लेकिन हर बार मार्केटिंग हमारी राह में रोड़ा बन रही थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इससे कैसे निपटा जाए।
एक एक्सपर्ट के जरिए मिला फूड प्रोसेसिंग का आइडिया
इसी बीच उनके गांव में डॉ. महेंद्र सिंह कुंवर का आना हुआ। वे हिमालय रिसर्च सेंटर के सचिव थे। उन्होंने भरत को बताया कि वे अपने प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग करें। इससे प्रोडक्ट भी बर्बाद होने से बचेगा और वैल्यू एडिशन भी हो जाएगा।
भरत सिंह को यह आइडिया अच्छा लगा। उन्होंने उनके साथ रहकर काम तो सीख लिया, लेकिन खुद के लिए प्रोसेसिंग यूनिट नहीं लगा सके। क्योंकि उसके लिए तब उनके पास पैसे नहीं थे। इसके बाद भी उन्होंने पीछे मुड़ने की बजाय कोशिश जारी रखी। छोटे लेवल पर उन्होंने प्रोसेसिंग का काम शुरू किया। धीरे-धीरे पैसे इकट्ठा करते गए। जब कुछ पैसे हो गए तो 2010 में उन्होंने खुद की प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की।
धीरे-धीरे बढ़ता गया कारवां
भरत सिंह कहते हैं कि पहली बार प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में करीब ढाई लाख रुपए खर्च हुए थे। इसके बाद जैसे-जैसे हमारे पास पैसे होते गए हम मशीनें और प्रोडक्ट बढ़ाते गए। अभी हम 10 हेक्टेयर जमीन पर खेती कर रहे हैं। जिसमें एप्पल के बाग, खुबानी और दलहन की फसलें हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपने घर पर मशरूम का भी सेटअप लगाया है।
भरत प्रोडक्शन के साथ ही खुबानी से तेल, अचार और पल्प जैसे प्रोडक्ट बना रहे हैं। जबकि मशरूम से उसका पाउडर, अचार, चटनी और जैम बनाते हैं। इसके साथ ही वे पहाड़ी चाय और दालों का भी कारोबार करते हैं।
भरत सिंह के साथ अब उनके बेटे जगमोहन राणा भी काम कर रहे हैं। जगमोहन ने 2018 में बीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद कहीं नौकरी के लिए अप्लाई नहीं किया। वे अपने पिता के साथ खेती में ही उतर आए। अभी वे मार्केटिंग और प्रोसेसिंग का काम देखते हैं।
क्या है मार्केटिंग मॉडल?
भरत सिंह कहते हैं कि हमने करीब 1500 किसानों का नेटवर्क तैयार किया। ये सभी किसान अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन करते हैं। जब इनके प्रोडक्ट नहीं बिकते हैं, तो हम उनसे उनका प्रोडक्ट खरीद लेते हैं और खुद के प्लेटफॉर्म के जरिए बेचते हैं। शुरुआत में भरत सिंह लोकल मार्केट में ही प्रोडक्ट की सप्लाई करते थे। वे स्टॉल लगाकर भी अपने प्रोडक्ट बेचते थे, लेकिन जब प्रोडक्शन बढ़ गया तो उन्होंने ऑनलाइन टेक्नोलॉजी का सहारा लिया। वे सोशल मीडिया के जरिए मार्केटिंग करने लगे।
वे कहते हैं कि लॉकडाउन में जब लोकल मार्केट में प्रोडक्ट की खपत कम होने लगी तो हमने सोशल मीडिया के जरिए दूसरे राज्यों के लोगों तक पहुंचने की कोशिश की। आज हमारे पास मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, यूपी सहित कई राज्यों से ऑर्डर आते हैं। जगमोहन कहते हैं कि हमने यमुना वैली नाम से सोशल मीडिया पर पेज बनाया है। वहां हमारा फोन नंबर भी दर्ज है। ज्यादातर लोग फोन के माध्यम से ही ऑर्डर मंगाते हैं। कुछ लोग वॉट्सऐप के जरिए भी प्रोडक्ट की डिमांड करते हैं।
कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?
भरत सिंह एक दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। इनमें से खुबानी का तेल और हर्बल चाय की सबसे ज्यादा बिक्री होती है। इस चाय को बनाने के लिए वे पहाड़ों पर उगने वाले मेडिसिनल प्लांट का इस्तेमाल करते हैं। वे लेमन ग्रास, तेज पत्ता, तुलसी, स्टीविया, रोजमेरी और गुलाब के पत्ते का उपयोग करते हैं। उनका दावा है कि ये चाय हमारी इम्यूनिटी और हेल्थ के लिए फायदेमंद होती है। वे हर साल करीब एक टन चाय का प्रोडक्शन करते हैं।
जबकि खुबानी का तेल बनाने के लिए सबसे पहले फलों से बीज निकाले जाते हैं। इसके बाद इनकी सफाई करके धूप में सुखाया जाता है। ताकि बीजों से नमी निकल जाए। इसके बाद कोल्हू में डालकर, इनका तेल निकाला जाता है। पहली बार में जो तेल मिलता है, उसमें कुछ अशुद्धियां होती हैं। इसे दूर करने के लिए, तेल का कई लेवल पर फिल्टर किया जाता है। इसके बाद इसे बोतल में पैक करके वे मार्केट में भेजते हैं। साभार-दैनिक भास्कर
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