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भारत जो कि सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश है, उसके सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक वैक्सीन की घरेलू माँग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए उनका कहना है कि वे साल के अंत तक वैक्सीन का निर्यात नहीं कर पायेंगे.
कोरोना महामारी की स्थिति को देखते हुए भारत की सरकार टीकाकरण अभियान को तेज़ करना चाहती है जिसके लिए उत्पादन को बढ़ाने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं.
भारत सरकार का लक्ष्य है कि अगस्त से दिसंबर 2021 के बीच कम से कम दो सौ करोड़ वैक्सीन डोज़ तैयार की जायें.
भारत के पास कौन सी वैक्सीन हैं?
भारत के पास फ़िलहाल तीन वैक्सीन हैं जिन्हें इस्तेमाल किये जाने की आधिकारिक मंज़ूरी मिल चुकी है.
इनमें से दो वैक्सीन भारत में ही बनी हैं. एक है कोविशील्ड और दूसरी है कोवैक्सीन.
तीसरी वैक्सीन जिसे हाल ही में इस्तेमाल की मंज़ूरी मिली है, वो है रूस की ‘स्पूतनिक-वी’ जिसे बाक़ी दोनों से ज़्यादा प्रभावशाली बताया जा रहा है.
कोविशील्ड वैक्सीन का उत्पादन पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा किया जा रहा है. इस वैक्सीन का लाइसेंस एस्ट्राजेनेका नामक दवा कंपनी के पास है.
वहीं, भारतीय कंपनी भारत बायोटेक ने आईसीएमआर की मदद से कोवैक्सीन तैयार की है, जिसका उत्पादन भी भारत में हो रहा है.
भारत सरकार का कहना है कि पिछले सप्ताह तक उन्हें दोनों वैक्सीन को मिलाकर 35 करोड़ से ज़्यादा डोज़ मिल चुकी हैं, लेकिन सभी डोज़ अब तक डिलीवर नहीं हो पायी हैं.
बताया गया है कि रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी भी जल्द ही भारत के टीकाकरण केंद्रों पर उपलब्ध होगी. इस वैक्सीन को इसी वर्ष अप्रैल में इस्तेमाल की मंज़ूरी मिली थी.
इसी महीने की शुरुआत में भारत को स्पूतनिक-वी की दो लाख से अधिक डोज़ प्राप्त हुई थीं और वैक्सीन का उत्पादन करने वाली कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने भारत में इसकी पहली डोज़ लगवाकर इस वैक्सीन के प्रयोग की आधिकारिक शुरुआत भी की थी.
भारत कितनी तेज़ी से वैक्सीन बना सकता है?
भारत सरकार का वैक्सीन उत्पादन का लक्ष्य बहुत ही बड़ा है. सरकार चाहती है कि इस साल की अंतिम तिमाही तक कोविड वैक्सीन की कम से कम दो सौ करोड़ डोज़ तैयार की जायें.
भारत 130 करोड़ से ज़्यादा की आबादी का देश है और पूरी आबादी को टीका लगाने के लिए भारत को अभी लंबा सफ़र तय करना है.
दुनिया भर में अब तक तैयार हुईं कोरोना की आठ में से तीन वैक्सीन जो भारत में बनायी जा रही हैं, उन्हें ही इस्तेमाल की मंज़ूरी मिली है. इनके अलावा दो वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के शुरुआती चरण में हैं और तीन वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के अंतिम चरणों में हैं.
सार्वजनिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “हम उन टीकों का मुँह नहीं देख सकते जिन्हें अब तक मंज़ूरी भी नहीं मिली है. हमें सारा ज़ोर अब तक मंज़ूर हुईं वैक्सीनों के उत्पादन पर लगाना चाहिए. हमें देखना होगा कि हम कैसे इन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मात्रा में बना पायें.”
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया का अनुमान है कि वो 75 करोड़ कोविशील्ड तैयार करेगा. 20 करोड़ डोज़ कोवैक्स की आ सकती हैं जो नोवावैक्स की स्थानीय संस्करण है और इसे इस्तेमाल की मंज़ूरी मिलना अभी बाक़ी है.
भारत बायोटेक भी दो तरह की वैक्सीन बना रहा है, जिनमें से कोवैक्सीन की 55 करोड़ डोज़ और दूसरी वैक्सीन की 10 करोड़ डोज़ वो तैयार करेगा. भारत बायोटेक की दूसरी वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल की शुरुआती स्टेज में है.
इसी साल अप्रैल में भारत सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया को 40 करोड़ डॉलर और भारत बायोटेक को 21 करोड़ डॉलर देने का वादा किया था ताकि वो अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा सकें.
पिछले सप्ताह ही दोनों कंपनियों ने भारत सरकार से ये कहा कि वो अगस्त महीने तक अपनी उत्पादन क्षमता को काफ़ी बढ़ा लेंगे. सीरम इंस्टीट्यूट का कहना है कि वो अगस्त आते-आते हर महीने दस करोड़ डोज़ बनाने लगेगा. वहीं भारत बायोटेक ने कहा है कि वो अगस्त तक, प्रति माह लगभग आठ करोड़ डोज़ बनाने लगेगा.
हालांकि, टीकाकरण को लेकर भारत सरकार का जो लक्ष्य है, उसे पूरा करने के लिए इतना उत्पादन भी कम पड़ सकता है.
मोदी सरकार का कहना है कि वो कुछ अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं से भी बात कर रही है, जैसे फ़ाइज़र, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन, ताकि भारत में और वैक्सीन उपलब्ध हो सकें.
लेकिन ज़्यादातर विदेशी वैक्सीन निर्माताओं ने कहा है कि वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर वो अक्तूबर तक ही बात कर पायेंगे. यानी इन दवा कंपनियों से भारत को कितनी वैक्सीन? कब तक मिल पायेगी? इन सवालों का जवाब मिलने में अभी थोड़ा समय है.
भारतीय वैक्सीन निर्माता कच्चे माल की कमी का भी सामना कर रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस साल की शुरुआत में अमेरिका में डिफ़ेंस प्रोडक्शन एक्ट (डीपीए) लागू कर दिया था ताकि अमेरिकी वैक्सीन निर्माताओं को कच्चा माल पहले मिलना सुनिश्चित किया जा सके.
लेकिन पिछले महीने, जब भारत में कोरोना का प्रकोप तेज़ी से बढ़ा, तब अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि वो भारत में कोविशील्ड वैक्सीन के उत्पादन के लिए ‘कुछ विशेष तरह के कच्चे माल’ की आपूर्ति करेगा.
लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया का कहना है कि उसके पास अब भी उस कच्चे माल की कमी है, जो उसे अमेरिका से मिलता है.
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की राय है कि वैक्सीन के उत्पादन में लगने वाले सामान की आपूर्ति अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है.
जानकारों का यह भी कहना है कि इस (फ़ार्मा) क्षेत्र में, विशेष रूप से किसी नये उत्पादक का बहुत बड़ी मदद कर पाना संभव नहीं है, वो भी ऐसी स्थिति में जब इसकी माँग बहुत है.
कितनी तेज़ी से वैक्सीन दी जा रही?
जनवरी के दूसरे सप्ताह में भारत सरकार ने देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत की थी.
केंद्र सरकार के मुताबिक़, अब तक भारत में 19 करोड़ से ज़्यादा वैक्सीन डोज़ दी जा चुकी हैं.
अप्रैल महीने की शुरुआत में सरकार हर रोज़ 35 लाख से अधिक डोज़ दे पा रही थी, लेकिन तब से यह आँकड़ा लगातार गिरा है, जो अब घटकर 16 लाख प्रतिदिन के क़रीब रह गया है.
जानकार बताते हैं कि इस दर (16 लाख प्रतिदिन) से पूरी आबादी को कोरोना का टीका लगाने में भारत को चार साल लगेंगे.
इस बीच, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने ये भी कहा कि उन्हें वैक्सीन की किल्लत के कारण 18-44 वर्ष के लोगों के टीकाकरण को फ़िलहाल रोकना पड़ेगा.
इस पूरी स्थिति को देखते हुए, भारत सरकार ने मार्च में कोरोना वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगा दी थी.
बताया गया है कि कम संख्या में वैक्सीन दान करने और ग्लोबल वैक्सीन शेयरिंग स्कीम ‘कोवैक्स’ को कम मात्रा में वैक्सीन देने की सरकार ने अनुमति दी है. इनके अलावा, फ़िलहाल ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही कि भारत बड़ी मात्रा में कोरोना वैक्सीन के निर्यात को मंज़ूरी देगा.
द सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने भी यह स्पष्ट कहा है कि वो कम से कम इस साल के अंत तक कोरोना वैक्सीन का निर्यात शुरू नहीं करेगा. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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