पढ़िए बीबीसी न्यूज़ हिंदीकी ये खबर….
फ़्रांस में प्रकाशित एक ख़ुला ख़त काफ़ी चर्चाएँ बटोर रहा है. इस पर 1.30 लाख लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं और यह ख़त चेतावनी दे रहा है कि देश में गृह युद्ध का ख़तरा है.
यह संदेश फ़्रांस की एक दक्षिणपंथी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसमें फ़्रांस सरकार पर कट्टरपंथी मुसलमानों को ‘रियायत’ देने का आरोप लगाया गया है.
पत्र में लिखा है, “यह हमारे देश के जीवित रहने के लिए है.” इसके साथ ही कहा गया है कि यह पत्र अनाम जवानों ने लिखा है और जनसमर्थन की अपील की है.
फ़्रांस सरकार ने इस पत्र की निंदा की है. पिछले महीने भी एक ऐसा ही पत्र सामने आया था.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार, गृह मंत्री गेराल्ड डार्मानिन ने नए पत्र को ‘कच्ची पैंतरेबाज़ी’ बताया है और इस पर हस्ताक्षर करने वाले अज्ञात लोगों को कहा है कि उनमें ‘साहस’ की कमी है.
पिछले महीने सरकार को अर्द्ध-सेवानिवृत्त जनरलों ने पत्र लिखा था जिसके बाद सैन्य बलों की कार्यभारी मंत्री फ़्लोरेंस पार्ले ने कहा था कि उनको नियम तोड़ने के लिए सज़ा दी जाएगी.
दरअसल, सेना के सेवारत और रिज़र्व सदस्यों को धर्म और राजनीति पर सार्वजनिक राय देने पर मनाही है.
विपक्ष ने पत्र का किया समर्थन
हालांकि, धुर-दक्षिणपंथी नेता और अगले साल होने वाली राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवार मेरिन ले पेन ने अप्रैल में 1,000 जवानों और महिलाओं के समर्थन से प्रकाशित हुए पत्र को सही बताया था.
नया पत्र वेला हेक्चुएल नामक पत्रिका में रविवार शाम को प्रकाशित हुआ था. इस पर हस्ताक्षर करने वाले असली लोगों की पहचान सेना के सक्रिय सदस्यों के तौर पर बताई गई है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है.
इस पत्र के लेखकों ने ख़ुद को सेना की युवा पीढ़ी का हिस्सा बताते हुए कहा है कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान, माली और सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक में अपनी सेवाएँ दी हैं या वे घरेलू आतंक-रोधी अभियानों में शामिल रहे हैं.
वे लिखते हैं, “उन्होंने कट्टर इस्लाम को ख़त्म करने के लिए अपनी चमड़ी दी और आप हमारी धरती पर रियायत दे रहे हो.”
पुराने पत्र का जवाब बताया जा रहा
इसमें लिखा है, “क्या वे आपके लिए इसलिए लड़े थे कि आप फ़्रांस को एक असफल राष्ट्र बना दें?”
“अगर गृह युद्ध छिड़ता है तो सेना अपनी ज़मीन पर व्यवस्था बनाएगी.”
“कोई भी ऐसी भयानक स्थिति नहीं चाहता है. हमारे बुज़ुर्ग भी हमसे ज़्यादा नहीं चाहते. लेकिन हाँ, फ़्रांस में गृह युद्ध धीरे-धीरे तैयार हो रहा है और आप उसे अच्छे से जानते हो.”
फ़्रांस ने हाल ही में एक विवादित बिल का प्रस्ताव दिया था जिसको राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘कट्टर इस्लाम से अलगाववाद’ बताया था.
हालांकि, फ़्रांस और विदेश में कुछ आलोचकों ने सरकार पर ग़लत तरीक़े से इस्लाम को निशाना बनाने का आरोप लगाया था.
विशेषज्ञ क्या कहते हैं
पेरिस में बीबीसी संवाददाता ह्यूग स्कोफ़ील्ड कहते हैं कि नया प्रकाशित पत्र गुमनाम लोगों ने लिखा है, यह बता पाना असंभव है कि इसके लेखक सैन्य बलों में किस पद पर हैं, ऑनलाइन याचिकाओं में किसी को अपना नाम नहीं देना होता है इसलिए इसको किसी भी बात का पक्का सबूत नहीं माना जा सकता है.
ह्यूग कहते हैं, “बहरहाल फ़्रांस के लिए इस तरह का निराशावाद बैरकों-कमरों और अफ़सरों के मैस में आम बात है.”
“कई फ़्रांस के नागरिक हिंसा, ड्रग्स और कट्टर इस्लाम को लेकर चिंतित हैं, जहाँ तक जवानों की बात है तो वे क़ानून और व्यवस्था और प्राधिकरण से बहुत क़रीबी से जुड़ा महसूस करते हैं और अपने नज़रिए को साझा करते हैं.”
“लेकिन जनता में जाना और सेना और राजनीति के बीच की सीमारेखा को मिटा देना विवादास्पद है. इस मुद्दे पर सैन्य बलों के कई लोग पत्र के लेखकों से असहमत हैं.”
“विघटन और गृह युद्ध की चेतावानी जैसे विश्लेषण शायद बहुत साझा भी किए जाएँगे लेकिन राजनेताओं को रोकने के लिए कुछ ‘करने’ के लिए कहना, शीर्ष अफ़सर इसे कभी माफ़ नहीं करेंगे.”
साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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