विजय लक्ष्मी (दाएं) पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। करीब 20 साल तक उन्होंने अलग-अलग कंपनियों में काम भी किया है। अब गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी तैयार कर रही हैं।
आज की पॉजिटिव खबर में बात विशाखापट्टनम की रहने वाली विजय लक्ष्मी की। विजय लक्ष्मी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। करीब 20 साल उन्होंने अलग-अलग मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया। पिछ्ले दो साल से वे नौकरी छोड़कर खुद का स्टार्टअप चला रही हैं। वे गन्ने के वेस्ट से इकोफ्रेंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स तैयार कर मार्केट में सप्लाई कर रही हैं। हर महीने 200 से ज्यादा ऑर्डर उनके पास आ रहे हैं। कई बड़े होटलों में भी उनके प्रोडक्ट्स जाते हैं। इससे वे अच्छा-खासा मुनाफा कमा रही हैं।
कैसे मिला आइडिया?
53 साल की विजय लक्ष्मी कहती हैं कि नौकरी के दौरान अक्सर मैं प्लास्टिक वेस्ट के ऑल्टरनेट प्लान के बारे में सोचते रहती थी। इससे रिलेटेड टॉपिक्स पर रिसर्च पेपर्स पढ़ती रहती थी। तब मुझे जानकारी मिली कि हमारे पास ऐसे कई नैचुरल वेस्ट हैं जिन्हें प्रोसेस कर क्रॉकरी प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं। कई लोग इस तरह के काम भी कर रहे हैं। हालांकि उनकी संख्या काफी कम है। इसके बाद मैंने तय किया कि मैं भी नैचुरल वेस्ट से क्रॉकरी तैयार करूंगी, भले ही छोटे लेवल पर क्यों न हो।
विजय लक्ष्मी ने चार-पांच साल तक इस प्रोसेस और क्रॉकरी के बिजनेस को समझा। इससे जुड़े लोगों से जानकारी हासिल की। फिर जब उन्हें लगा कि अब वे खुद के लेवल पर कुछ काम शुरू कर सकती हैं तो दिसंबर 2018 में उन्होंने अपना स्टार्टअप लॉन्च किया।
मार्केटिंग के लिए क्या तरीका अपनाया?
प्रोडक्ट तैयार होने के बाद शुरुआत में विजय लक्ष्मी ने अपने रिश्तेदारों और आसपास के लोगों को इस क्रॉकरी के बारे में बताया और उन्हें यूज करने की सलाह दी। लोगों ने ट्रायल बेसिस पर उनके प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया। ज्यादातर लोगों को विजय लक्ष्मी का काम पसंद आया और वे उनका प्रोडक्ट खरीदने लगे। बाद में उन्होंने सोशल मीडिया का भी सहारा लिया और अपने प्रोडक्ट का प्रमोशन किया। इससे भी ग्राहकों की संख्या बढ़ी। अभी सौ से ज्यादा उनके रेगुलर कस्टमर्स हैं। इसके साथ ही कई बड़ी कंपनियों और होटलों के लिए भी वे प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं। शादियों और त्योहारों के सीजन में उनके प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ जाती है। इसके साथ ही वे अलग-अलग एक्सपो में भी अपने प्रोडक्ट्स का स्टॉल लगाती हैं। यहां से भी अच्छी-खासी संख्या में लोग खरीदारी करते हैं।
लोकल मैन्युफैक्चरर से भी किया है टाइअप
विजय लक्ष्मी अभी गन्ने के वेस्ट से बनी इकोफ्रेंडली कटोरी, कप, प्लेट, क्रॉकरी और पैकिंग बॉक्स जैसी चीजों का बिजनेस कर रही हैं। वे बताती हैं कि मैं ये प्रोडक्ट लोकल लेवल पर उन लोगों से भी खरीदती हूं, जो ऐसे प्रोडक्ट तैयार करते हैं। ऐसे कई लोकल मैन्युफैक्चरर से मैंने टाइअप किया है। जो मेरी डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट तैयार करते हैं। इससे उन्हें भी फायदा होता है और उन किसानों को भी, जिनसे वे गन्ने का वेस्ट खरीदते हैं।
विजय लक्ष्मी बताती हैं कि ये प्रोडक्ट पूरी तरह से बॉयोडिग्रेडेबल हैं जो कचरे में फेंके जाने पर 90 दिनों के भीतर गल जाते हैं। अगर कोई जानवर इसे खाए तो भी उसके हेल्थ पर गलत असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह नुकसानदायक नहीं है। हम वैसे भी खेतों से निकलने वाली पराली में से ही जानवरों के लिए चारा तैयार करते हैं। इसके साथ ही हम इसे माइक्रोवेव या फ्रिज में भी रख सकते हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
लोगों की डिमांड के मुताबिक तैयार करवाती हैं प्रोडक्ट
विजय लक्ष्मी बताती हैं कि हम कस्टमाइज क्रॉकरी बनाते हैं। कई ग्राहक हमसे अपनी जरूरत के मुताबिक प्रोडक्ट की डिमांड करते हैं। जैसे किसी को प्लेट राउंड रखना होता है तो किसी को स्क्वायर तो किसी को अपनी सुविधा के मुताबिक शेप चाहिए होता है। उसी हिसाब से मैं लोकल मैन्युफैक्चरर को ऑर्डर देती हूं। फिर हमारे पास क्रॉकरी बनकर आती हैं और हम उसे संबंधित ग्राहक के पास भेजते हैं। वो बताती हैं कि अब तक मैं कई बड़े इवेंट्स के लिए क्रॉकरी तैयार कर चुकी हूं।
आगे खुद की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की योजना
लॉकडाउन के दौरान विजय लक्ष्मी के कारोबार पर थोड़ा बुरा असर पड़ा। करीब एक साल तक सबकुछ ठप रहा, लेकिन एक फायदा यह भी हुआ कि अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है, लोग नैचुरल प्रोडक्ट्स की डिमांड करने लगे हैं। वे बताती हैं कि धीरे-धीरे ही सही, उनके प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ रही है। आगे उनकी कोशिश है कि वह अपनी खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाएं। जब वो खुद मैन्युफैक्चरर होंगी, तो प्रोडक्ट्स की कीमत कम पड़ेगी और उन्हें बचत भी ज्यादा होगी।
गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी कैसे बनाएं?
गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी बनाने के लिए सबसे पहले गन्ने से निकलने वाले छाले और उसकी पत्तियों को धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद उसे टुकडों में करके पानी में घोल दिया जाता है। जब गन्ने का वेस्ट पानी में घुलने के बाद लुगदी का रूप ले लेता हैं, तब उसे अच्छी तरह से मिला लिया जाता है। फिर मशीन की सहायता से उसे मनपसंद आकार में ढाल लिया जाता है। इस तरह क्रॉकरी का निर्माण होता है। देश में कई संस्थानों में इसकी ट्रेनिंग भी दी जाती है। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इसके बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है।
विजय लक्ष्मी कहती हैं कि पर्यावरण के लिए लोगों को इस तरह के इनोवेशन से जुड़ना चाहिए। भारत में ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा गन्ने का प्रोडक्शन होता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में गन्ना भरपूर होता है। हर साल इससे निकलने वाले हजारों टन वेस्ट या तो जला दिए जाते हैं या फेंक दिए जाते हैं। इसी तरह धान की पराली भी बड़ी चुनौती है। अगर सही तरीके से इनका वेस्ट मैनेजमेंट किया जाए तो कमाई के साथ-साथ पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है।साभार-दैनिक भास्कर
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