बेंगलुरु की 22 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ़्तारी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले युवाओं के बीच डर का माहौल पैदा कर दिया है.
दिशा रवि ‘फ़्राइडे फ़ॉर फ़्यूचर’ नामक मुहिम की संस्थापक हैं. उन्हें दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने शनिवार की शाम बेंगलुरु से गिरफ़्तार किया. ग्रेटा थनबर्ग के किसानों के समर्थन में ट्वीट करने के बाद दर्ज हुए मामले में यह पहली गिरफ़्तारी है.
बेंगलुरु की एक जानी-मानी कार्यकर्ता तारा कृष्णास्वामी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “हमने पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई अभियानों के सिलसिले में एक-दूसरे से बात की है. लेकिन मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानती हूँ. हाँ, लेकिन मैंने ये हमेशा नोटिस किया कि वे कभी भी क़ानून का उल्लंघन नहीं करती हैं. एक बार भी नहीं.”
दिल्ली पुलिस ने दिशा रवि को दिल्ली की एक अदालत में पेश करते हुए कहा है कि “दिशा रवि टूलकिट गूगल डॉक्यूमेंट की एडिटर हैं और इस डॉक्यूमेंट को बनाने और इसे प्रसारित करने में उनकी मुख्य भूमिका है.”
पुलिस ने अपने बयान में कहा है कि “इस सिलसिले में उन्होंने खालिस्तान समर्थक ‘पोएटिक जस्टिस फ़ांउडेशन’ के साथ मिलकर भारतीय राज्य के प्रति वैमनस्य फैलाने का काम किया और उन्होंने ही ग्रेटा थनबर्ग के साथ यह टूलकिट शेयर किया था.”
दिशा रवि की ईमानदारी और उनकी प्रतिबद्धता का उनके साथ काम करने वाले हमेशा ज़िक्र करते हैं.
तारा कृष्णास्वामी कहती हैं, “सिर्फ़ इतना ही नहीं. सभी संगठन दायरे में रहकर ही काम करते हैं. इसमें भी वो पूरी तरह सहयोग करती हैं और हमेशा शांतिपूर्ण रहती हैं.”
एक अन्य कार्यकर्ता ने अपना नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी से कहा, “वो एक मज़ाकिया और नासमझ लड़की है. वो अक्सर आयोजनों में देर से आती है. हम हमेशा उसकी इस आदत से चिढ़ जाते हैं, लेकिन कभी कुछ नहीं कहते क्योंकि वो जो करती है, उसे लेकर उनमें बहुत जुनून रहता है.”
“दिशा ने कभी कोई क़ानून नहीं तोड़ा. हमारे ‘पेड़ बचाओ’ आंदोलन में उन्होंने ही पुलिस को इस बारे में सूचना दी और अधिकारियों के अनुमति वाले हस्ताक्षर लिए. दिशा ने हमेशा पूरी वफ़ादारी से क़ानूनी ढाँचे के भीतर रहकर काम किया है.”
बीबीसी ने इस बारे में कई युवा कार्यकर्ताओं से बात करने की कोशिश की, लेकिन ज़्यादातर ने या तो इस मसले पर बोलने से मना कर दिया या कॉल नहीं उठाया.
एक और पर्यावरण कार्यकर्ता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि “लोग डरे हुए हैं, इसलिए शांत हो गए हैं.”
एक अन्य कार्यकर्ता याद करते हैं कि कैसे आंतकवाद रोधी क़ानून (यूएपीए) लगाये जाने के ख़तरे ने युवाओं को डरा दिया था और जून 2020 में ‘फ़्राइडे फ़ॉर फ़्यूचर’ को बंद करना पड़ा था. केंद्र सरकार की ओर से लॉकडाउन के दौरान लाये गए इनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) के विरोध में अभियान चलाने की वजह से इसे बंद करना पड़ा था.
दिशा रवि ने तब एक वेबसाइट www.autoreportafrica.com से कहा था, “भारत में लोग जन-विरोधी क़ानूनों का लगातार शिकार बन रहे हैं. हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहाँ असहमति की आवाज़ को दबाया जा रहा है. ‘फ़्राइडे फ़ॉर फ़्यूचर, इंडिया’ से जुड़े लोगों पर आतंकवादी का ठप्पा लगाया जा रहा है, क्योंकि वो इनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) के ड्राफ़्ट का विरोध कर रहे हैं. मुनाफ़े को लोगों की ज़िंदगी के ऊपर तरजीह देने वाली सरकार यह तय कर रही है कि साफ़ हवा, साफ़ पानी और जीने लायक पृथ्वी की माँग करना एक आतंकवादी गतिविधि है.”
आरोप
दिशा पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत राजद्रोह, समाज में समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने और आपराधिक षड्यंत्र के मामले दर्ज किए गए हैं.
दिशा ने ‘फ़्राइडे फ़ॉर फ़्यूचर’ की शुरुआत तब की थी, जब 2018 में ग्रेटा थनबर्ग ने अपने पर्यावरण बचाओ अभियान से दुनिया भर में हलचल मचा दी थी.
वे विरोध-प्रदर्शनों से ज़्यादा झीलों को साफ़ करने और पेड़ों को कटने से रोकने को लेकर सक्रिय रहती हैं.
एक अन्य पर्यावरण कार्यकर्ता मुकुंद गौडा बीबीसी से कहते हैं, “वो अब तक एक स्टूडेंड ही हैं. उन्होंने एक वर्कशॉप में एक प्रज़ेंटेशन से सभी सीनियर्स को चौंका दिया था. हर कोई कह रहा था कि इतनी कम उम्र में ये लड़की एक सुरक्षित ग्रह की शानदार ढंग से वकालत कर रही है.”
एक और कार्यकर्ता हैं, जो अपना नाम ज़ाहिर करने को लेकर सशंकित हैं.
वे कहते हैं, “वो छात्रों और दूसरे लोगों से हर शुक्रवार को बात करती हैं और उन्हें पर्यावरण को लेकर जागरूक करती हैं. उनमें जानवरों को लेकर बहुत दया भाव है. उनके बारे में कई ऐसी सकारात्मक बातें हैं, जिनके बारे में लोग बात कर सकते हैं, लेकिन उनकी गिरफ़्तारी के बाद सब सकते में हैं.”
Arrest of 21 yr old Disha Ravi is an unprecedented attack on Democracy. Supporting our farmers is not a crime.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 15, 2021
कृष्णास्वामी इस बात को लेकर सहमत हैं कि युवाओं के मन में डर पैदा हो गया है.
वे कहती हैं, “हाँ, मैं भी डरी हुई हूँ. हम सभी चीजों को शांतिपूर्ण तरीक़े से रखने के लिए सब कुछ करते हैं. हम बिना पुलिस को सूचित किए कुछ नहीं करते. यह बहुत त्रासदीपूर्ण है कि युवाओं को इस तरह से निशाना बनाया जा रहा है.”
सवाल
सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित वकील रेबेका जॉन एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखती हैं, “पाटियाला हाउस कोर्ट के ड्यूटी मजिस्ट्रेट के इस फ़ैसले से बहुत दुखी हूँ कि उन्होंने एक युवा महिला को बिना यह निश्चित किए कि उनका वकील उपलब्ध है कि नहीं, पाँच दिन की रिमांड पर पुलिस हिरासत में भेज दिया. मजिस्ट्रेटों को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद-22 का पालन हो. अगर सुनवाई के वक़्त अभियुक्त का वकील मौजूद नहीं है, तब मजिस्ट्रेट को वकील के आने का इंतज़ार करना चाहिए या फिर विकल्प के तौर पर उसे क़ानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए. क्या केस डायरी और मेमो की जाँच हुई थी? क्या मजिस्ट्रेट ने स्पेशल सेल से पूछा कि क्यों उन्हें बेंगलुरु से सीधे यहाँ कोर्ट में बिना बेंगलुरु कोर्ट के ट्रांज़िट रिमांड के पेश किया जा रहा है? यह सब न्यायिक कर्तव्यों को लेकर चौंकाने वाली बातें हैं.”
"Shocking abdication of judicial duties"- Senior Adv Rebecca Mammen John comments on #DishaRavi remand. pic.twitter.com/F22OieHaA4
— Manu Sebastian (@manuvichar) February 14, 2021
कृष्णास्वामी कहती हैं, “अगर सरकार यह मानती है कि कुछ ग़लत हुआ है, तो पहले पुलिस स्टेशन में उनसे पूछताछ करती. उन्हें कोर्ट में पेश करने के लिए सीधे दिल्ली क्यों ले जाना चाहिए था? ऐसा लगता है कि टेक्नॉलॉजी को लेकर जानकारी के अभाव की वजह से इस मामले में भ्रम पैदा हो गया है.”
कृष्णास्वामी के मुताबिक़, टूलकिट और कुछ नहीं बल्कि एक दस्तावेज़ है जिसका इस्तेमाल राजनीतिक दल और कॉरपोरेट्स भी करते हैं, ताकि आपस में सहयोग और समन्वय बनाया जा सके. इसका इस्तेमाल किसी के ख़िलाफ़ नहीं किया जाता है.
कृष्णास्वामी कहती हैं, “किसी भी गूगल डॉक्यूमेंट तक कोई भी पहुँच सकता है और उसे एडिट कर सकता है. और आपको इस बारे में कोई आइडिया नहीं होता कि इसे पहले किसने एडिट किया है. यह एक डिजिटल दुनिया है. ईमानदारी से कहूँ तो पुराने लोग इस देश को चला रहे हैं और उन्हें सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर कोई जानकारी नहीं है.”
दिशा रवि एक स्टार्ट-अप के लिए काम करती हैं जो वीगन दूध का प्रमोशन करता है.
कंपनी के एक कंस्लटेंट ने अपना नाम नहीं ज़ाहिर करने की इच्छा के साथ बताया कि “वो अपने परिवार की अकेली कमाने वाली सदस्य हैं. वो अपने माँ-बाप की अकेली बच्ची हैं. वो बहुत छोटी थीं तब से उनके परिवार को जानते हैं. उनके पिता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और उनकी माँ एक गृहणी हैं. उन्होंने कुछ दिन पहले मुझसे सुबह 7 से 9 और शाम में 7 से 9 के बीच कोई काम होने को लेकर पूछा था.”
एक और कार्यकर्ता नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, “ये काफ़ी निराशाजनक है. ये सभी बच्चें हैं जो पेड़ और पर्यावरण को बचाना चाहते हैं. उन्हें राष्ट्रद्रोही कह कर उन्हें डराया जा रहा है.”साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी.
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