गाजियाबाद। नगर निगम के अफसरों पर महापौर ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। मेयर आशा शर्मा ने कहा है कि निगम अफसरों ने सीएनजी वाहनों की खरीद अधिकृत डीलर्स से करने की बजाय अपनी चहेती फर्मों से की है। डेढ़ माह में ही वाहन खराब हो गए हैं। वाहन खरीदने वाले अधिशासी अभियंता पर प्रकाश विभाग की एक फाइल में नगर आयुक्त के हस्ताक्षर के बाद भी छेड़छाड़ करने का आरोप है।
यह दूसरा मौका है जब महापौर आशा शर्मा ने निगम के किसी अफसर के खिलाफ सीधा मोर्चा खोला है। इससे पहले वह उद्यान विभाग के अधिकारी पर पौधों और गमलों की खरीद में घोटाला करने का आरोप लगा चुकी हैं। महापौर ने अब नगर आयुक्त महेंद्र सिंह तंवर को पत्र भेजा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि निगम के प्रकाश विभाग में तैनात अधिशासी अभियंता मनोज प्रभात के अनियमितताओं के कई मामले सामने आ चुके हैं। निगम में ब्लैक लिस्ट हो चुकी फर्म व्हाइट प्लाकार्ड उनकी वजह से 9.5 करोड़ रुपये का भुगतान जबरन ले चुकी है। उन्होंने पत्र में प्रकाश विभाग के अधिशासी अभियंता को तत्काल उनकी मूल तैनाती अलीगढ़ नगर निगम के लिए रिलीव करने के निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि अधिशासी अभियंता की अनियमितताओं की वजह से न केवल नगर निगम की बदनामी हो रही है, बल्कि आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
पहला आरोप : अधिशासी अभियंता ने एक नामचीन कंपनी के नाम से नकली एलईडी ड्राइवर शिव कंस्ट्रक्शन नाम की फर्म से खरीदे और चालान बिल व्हाइट प्लाकार्ड कंपनी का लगाया गया। यह एलईडी ड्राइवर स्टोर में न रिसीव कराकर अधिशासी अभियंता मनोज प्रभात ने अपने कार्यालय में एक आउटसोर्स पर तैनात कर्मचारी से रिसीव कराए। नकली एलईडी ड्राइवर खरीदे गए और बिल असली कंपनी के नाम का बनाया गया।
दूसरा आरोप : अधिशासी अभियंता ने सीएनजी टेंपो एमके कंस्ट्रक्शन फर्म से खरीदे, जबकि यह वाहन कंपनी के अधिकृत डीलर से खरीदे जाने चाहिए थे। टेंपो की बॉडी का वजन ज्यादा है और चेसिस हल्का। इसकी वजह से टेंपो का बैलेंस नहीं बन पा रहा है। इनकी गुणवत्ता खराब हैं।
तीसरा आरोप : अधिशासी अभियंता ने सीएनजी टिपर (कूड़ा उठाने वाले वाहन) भी कंपनी के अधिकृत डीलर की बजाय नेचर ग्रीन नाम की फर्म से खरीद लिए गए। यह वाहन बिना चले ही डेढ़ माह बाद खराब हो गए। नगर निगम ने उन्हें अपने खर्च पर रिपेयर कराए। कंपनी को यह वाहन वापस दिए जाने चाहिए थे या वारंटी के तहत उन्हें कंपनी को ठीक कराकर देने चाहिए थे। निगम अफसरों ने एक साल पुराने वाहन खरीदे, जो कम रेट में मिलते हैं। यह वाहन बिना वारंटी के खरीदे गए, जबकि नगर निगम ने नए वाहनों की रकम का भुगतान किया। इसमें बड़ी धांधली की गई।
चौथा आरोप : प्रकाश विभाग में ब्लैक लिस्ट फर्म नेचर ग्रीन से एलिवेटर (स्ट्रीट लाइट ठीक करने के लिए हाइड्रोलिक वाहन) खरीदे गए। एक दिन कार्य करते वक्त इस एलिवेटर की ट्रॉली टूट जाने के कारण एक कर्मचारी गिर गया था, उसे गंभीर चोटें लगी थीं। कर्मचारी ज्यादा ऊंचाई से गिर जाता तो उसकी मौत हो सकती थी।
पांचवां आरोप : प्रकाश विभाग में एक फाइल 9 फीसदी कम दरों पर स्वीकृत कराई गई। इसमें नगर आयुक्त, वरिष्ठ प्रकाश प्रभारी, लेखाधिकारी और अवर अभियंता के हस्ताक्षर थे। इसके बाद अधिशासी अभियंता ने 9 फीसदी की जगह उस पर कटिंग कर 19 फीसदी कर दिया और तीसरी बार में 19 को 10 फीसदी कर दिया गया। मेयर का कहना है कि नगर आयुक्त के हस्ताक्षर के बाद फाइल पर कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है।
छठा आरोप : व्हाइट प्लाकार्ड नाम की फर्म ने कांट्रेक्ट लेकर न तो शर्तों के अनुसार एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाई और न ही अर्थिंग समेत अन्य कार्य किए। इसके बाद कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया गया और एफआईआर भी दर्ज कराई गई। इसके बाद भी अधिशासी अभियंता ने फर्म को संतोषजनक कार्य करने और 56 हजार लाइटें लगाने का संतुष्टि पत्र बिना मेयर और नगरायुक्त को जानकारी दिए जारी कर दिया। इसके बाद शासन ने कंपनी को 9.5 करोड़ का भुगतान किया।
नगर आयुक्त महेंद्र सिंह तंवर ने कहा कि महापौर की ओर से भेजा गया पत्र मिला है, लगाए गए आरोपों की जांच कराई जाएगी। आरोप सही पाए गए तो शासन को पत्र भेजकर कार्रवाई की संस्तुति की जाएगी। साभार-अमर उजाला
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