अंतरिक्ष (Space) में पृथ्वी (Earth) की कक्षा में बहुत सारे सैटेलाइट (Satellite) प्रक्षेपित करने की तैयारी हो रही है. लेकिन इससे बहुत सारी समस्याओं और चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी जिनसे निपटना होगा.
पिछले कुछ सालों में अंतरिक्ष (Space) में कृत्रिम उपग्रहों (Artificial Satellite) की संख्या तेजी से बढ़ रही है. ये छोटे और सस्ते तो हुए ही हैं. उन्हें अंतरिक्ष सही जगह पर भेजना भी आसान और सस्ता हो गया था. कुछ सैटेलाइट तो केवल एक ही ग्राम के हैं. इससे ज्यादा से ज्यादा देश और अंतरिक्ष एजेंसियां (space agencies) अब अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेज सकते हैं. अब सैटेलाइट ऑपरेटर सैंकड़ों से हजारों की संख्या में सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा (Earth Orbit) में भेजने की तैयारी कर रहे हैं. इससे अंतरिक्ष में कचरा (Space Debris) बढ़ने और अन्य समस्याएं पैदा होने का खतरा बढ़ गया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
एक सैटेलाइट (Satellite) की जगह छोटे सैटेलाइट का विशाल समूह (Mega- constellation) पूरे ग्रह को एक बारे में घेर सकता है. चाहे नागरिक उपयोग हो या सैन्य उपयोग, निजी ऑपरेटर ज्यादा संख्या में छोटे सैटेलाइट समूहों का उपयोग वैश्विक कवरेज (global Coverage) के लिए करना चाहते हैं. ये सैटालाइट समूह मौसम की निगरानी से लेकर इंटरनेट ब्रॉडबैंड कनेक्शन प्रदान करने का काम करते हैं. पूरी पृथ्वी पर ऐसी सेवाएं देने के लिए बहुत ज्यादा संख्या में ऐसे सैटेलाइट की जरूरत होती है. इतना ही नहीं इन सैटेलाइट को पृथ्वी (Earth) के जितना संभव हो उतना नजदीक होना होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इस तरह से सैटेलाइट (Satellite) भेजना बहुत सारी समस्याओं और चुनौतियों को पैदा करेगा, इसमें अंतरिक्ष में कचरा (Space Debris) बढ़ने के साथ आकाशीय दृश्य में बाधा पड़ना जैसी समस्याएं प्रमुख हैं. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष शासन (space Governance) की भी जरूरत होगी. फिलहाल अंतरिक्ष में तीन हजार सक्रिय सैटेलाइट हैं और आने वाले सालों में ये तेजी से बढ़ने वाला है. यूरोपीयन कमीशन (European Commission) भी बड़ी संख्या में अपने सैटेलाइट बढ़ाने वाला है. इससे और बहुत सी समस्याएं पैदा होने लगेंगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
यह बहुत जरूरी होने वाला ही एक नई शासन व्यवस्था (Governance System) इसके लिए बन जिसे बहुत सारी समस्याओं को सुलझाना होगा. फिलहाल सैटेलाइट (Satellite) राष्ट्रीय स्तर पर नियामक के तहत नियंत्रित किए जाते हैं. जिसका निर्धारण 1967 की आउटर स्पेस ट्रीटी (Outer Space Treaty) के नियमों के तहत होता है. अलग अलग देशों के कानूनों के तहत यह सैटेलाइट प्रक्षेपित होकर काम करेंगे लेकिन इन्हें एक एकीकृत वैधानिक व्यवस्था केबिना इन पर नियंत्रण कैसे होगा, इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होनी चाहिए. एक देश से कितने सैटेलाइट प्रक्षेपित हो सकते हैं जैसे कई गंभीर सवाल हैं जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पष्टता की जरूरत है. ऐसे प्रयासों से पृथ्वी की निचली कक्षा का सुरक्षित और संवहनीय उपयोग सुनिश्चित होने में मदद मिलेगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
ज्यादा संख्या में सैटेलाइट (Satellite) धरती की समुद्रतल से 600 से 800 किलोमीटर के बीच में काम करते हैं. यह एक बहुत ही घना इलाका होता है जहां बहुत सारे सैटेलाइट पहले से ही मौजूद हैं. छोटे सैटेलाइट का जीवन बड़े सैटेलाइट की तुलना में छोटा होता है. वे पृथ्वी की कक्षा (Earth orbit) के निचले हिस्से में होते हैं. लेकिन एक सैटेलाइट के हटने में 150 साल का समय लग सकता है जब वह पृथ्वी के वायुमंडल (Atmosphere) में प्रवेश कर जल जाता है. हालांकि कुछ को रीएंट्री के जरिए वायुमंडल में फिर से प्रवेश कराया जाता है, बहुत से सैटेलाइट अनियंत्रित तरीके से गिरने के लिए डिजाइन किए गए हैं. ऐसे हालात में अंतरिक्ष में कचरा (Space garbage) प्रबंधन बहुत ही जरूरी हो जाएगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी निचली कक्षा ही सीमित संसाधन हो जाएगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: NASA)
बात केवल अंतरिक्ष (Space) में पृथ्वी (Earth) की निचली कक्षा (Lower Orbit) की उपलब्ता में सीमा आने की ही नहीं है. ऐसा रेडियो तरंगों (Radio Waves) के साथ भी हो सकता है. संचार के लिए सैटेलाइट (Satellite) रेडियो स्पैक्ट्रम का उपयोग करते हैं. सैटेलाइट की संख्या बढ़ने से रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio Frequency) का उपयोग इतना बढ़ने लगेगा कि आगे के लिए नहीं बचेंगीं. उपयोग से पहले ही इनकी जमाखोरी की आशंका हो जाएगी. वैसे इसके लिए संयुक्त राष्ट्र एक विशेषज्ञ संस्था के जरिए इन फ्रीक्वेंसी का नियमन करती है. इससे इनका समय सीमा में उपोयग का आवंटन हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
बात केवल अंतरिक्ष (Space) में पृथ्वी (Earth) की निचली कक्षा (Lower Orbit) की उपलब्ता में सीमा आने की ही नहीं है. ऐसा रेडियो तरंगों (Radio Waves) के साथ भी हो सकता है. संचार के लिए सैटेलाइट (Satellite) रेडियो स्पैक्ट्रम का उपयोग करते हैं. सैटेलाइट की संख्या बढ़ने से रेडियो फ्रीक्वेंसी (Radio Frequency) का उपयोग इतना बढ़ने लगेगा कि आगे के लिए नहीं बचेंगीं. उपयोग से पहले ही इनकी जमाखोरी की आशंका हो जाएगी. वैसे इसके लिए संयुक्त राष्ट्र एक विशेषज्ञ संस्था के जरिए इन फ्रीक्वेंसी का नियमन करती है. इससे इनका समय सीमा में उपोयग का आवंटन हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)साभार- न्यूज़18
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