फ्री बलूचिस्तान, बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है, पाकिस्तान बलूचिस्तान छोड़ो-यह कुछ ऐसे हैशटैग हैं जो लगभग हर दिन सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं। केवल लोकप्रिय रुझानों से अधिक, यह बलूचिस्तान के लोगों की गहरी पीड़ा व्यक्त करते हैं जो पाकिस्तान के हाथों नरसंहार जैसी स्थितियों का सामना कर रहे हैं। सोशल मीडिया बलूचियों द्वारा उनके दुख और यातना को व्यक्त करने के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में उभरा है। यह पाकिस्तान की घृणा के खिलाफ नाराजगी को दिखाने के लिए बचे कुछ उपायों में से एक बन चुका है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार साल पहले अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पाकिस्तान पर बलूचिस्तान प्रांत और गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में मानवाधिकारों के उल्लंघन और अत्याचार का आरोप लगाया था। मोदी ने कहा था, बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर) के लोगों ने पिछले कुछ दिनों में मुझे बहुत धन्यवाद दिया है। मैं उनका आभारी हूं।
बलूच लोग भारत के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त कर रहे हैं और उनका कहना है कि उन्हें अपनी जमीन पाकिस्तान के प्रभुत्व और उसके सैन्य प्रतिष्ठान से मुक्त करने के लिए भारत के समर्थन की आवश्यकता है। पाकिस्तान, भारत पर बलूचिस्तान विद्रोहियों के समर्थन का आरोप लगाता रहा है, जिसे भारत बेतुका बताते हुए सिरे से खारिज करता रहा है। यह सबसे लंबे समय से चलने वाला विद्रोह है जो 1947 से आज तक बना हुआ है। यह सुलह की कठिन समस्याओं को प्रस्तुत करता है, जिन्हें तथाकथित भारतीय हाथ के नाम पर आसानी से नजरअंदाज कर दिया गया है।
हर साल की तरह इस साल भी बलूच राष्ट्रवादियों ने 11 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाया। फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट ने एक बयान में कहा, समूचा बलूचिस्तान मातृभूमि का स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और हम संयुक्त राष्ट्र से आग्रह करते हैं कि बलूच लोगों को उनका उचित समर्थन दिलाने में मदद करें। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बलूचिस्तान में पाकिस्तान के अत्याचार ध्यान देना चाहिए।
पाकिस्तान ने बलूच लोगों के संघर्ष को दबाने के लिए व्यवस्थित रूप से गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन किए हैं। पाकिस्तान सरकार बलूच लोगों का सांस्कृतिक, भाषाई, आर्थिक और सांप्रदायिक संहार कर रही है। पाकिस्तान के साथ बलूचिस्तान की सात दशक पुरानी शिकायतों में प्रांत के संसाधनों में उचित हिस्सेदारी से वंचित रहना व लगातार सैन्य अभियानों का बना रहना शामिल हैं। बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि स्थानीय लोगों की इच्छा के खिलाफ मार्च 1948 में प्रांत पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया गया। बलूचिस्तान में बढ़ते जातीय-राष्ट्रवाद ने 1950 1960 और 1970 के दशकों में विद्रोह को देखा।
बलूचिस्तान में चल रही डर्टी वॉर पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ के समय में विस्फोटक स्थिति में पहुंची। 2006 में राष्ट्रवादी नेता अकबर बुगती की हत्या के साथ बलूच विद्रोह की सबसे भीषण लहर उठी। पाकिस्तानी सेना और उसके मौत के दस्तों (पाकिस्तान सेना के भाड़े के सैनिकों) और लश्कर-ए-झांगवी और इस्लामिक स्टेट जैसे गुटों ने बलूचिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से स्थानीय शिया हजारा और ईसाई आबादी को लक्षित किया। इन समूहों ने हजारों बलूचों को मार डाला है। बलूचियों पर कई अत्याचार, जैसे उनकी महिलाओं के साथ दुष्कर्म, एक सामान्य घटना है। इस सबके बीच बलूच स्वतंत्रता संग्राम जारी है। नवीनतम घटना इस साल 29 जून को कराची स्टॉक एक्सचेंज पर हमला है।
20 जून को बलूचिस्तान नेशनल पार्टी (बीएनपी-एम) के प्रमुख अख्तर मेंगल ने प्रधानमंत्री इमरान खान की गठबंधन सरकार छोड़ दी। उन्होंने कहा कि अगर राजसत्ता वर्तमान में मौत के दस्तों द्वारा नो-गो एरिया जैसा बना दिए गए प्रांत में अपने अत्याचार जारी रखना चाहती है तो उनके प्रांत को कब्जे वाला बलूचिस्तान घोषित किया जाना चाहिए।
वॉच फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स की शुरुआत करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मामा कादिर क्वेटा में स्थानीय प्रेस क्लब के सामने नियमित विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते रहते हैं। उनका कहना है कि 2000 के बाद से कम से कम 47,000 बलूच लापता हो गए हैं और यह आंकड़ा पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है।
2007-2015 के बीच बलूचिस्तान में 29 पत्रकार मारे गए।
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर लेकिन बेहद गरीब लोगों के प्रांत बलूचिस्तान में बीजिंग और इस्लामाबाद द्वारा संयुक्त रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) शुरू करने के बाद संसाधन राष्ट्रवाद ने जोर पकड़ा। 2015 में सीपीईसी समझौते के समय बलूच राष्ट्रवादियों ने इस्लामाबाद पर चीनी निवेश के पक्ष में उनके हितों को दरकिनार करने और बलूचिस्तान की अपार प्राकृतिक संपदा को बिना उनकी सलाह के बेचने का आरोप लगाया था।
तभी से बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के हमले काफी हद तक चीनी हितों पर केंद्रित रहे हैं। मई 2017 के बाद से चीनी मजदूरों पर कई घातक हमले हुए हैं, जो बीएलए के प्रवक्ता जियांद बलूच के अनुसार, बलूचिस्तान में बलूच धन को लूटने के लिए चीन सहित किसी भी बल को अनुमति नहीं देने की नीति का हिस्सा हैं।
क्रांतिकारी बलूच कवि हबीब जालिब ने लिखा था, मुझे जीने का मजा मालूम है, बलूचों पर जुल्म की इंतेहा मालूम है, मुझे जिंदगी भर पाकिस्तान में रहने की दुआ न दो, मुझे पाकिस्तान में साठ साल जीने की सजा मालूम है।
आज से करीब दस साल पहले जालिब को क्वेटा स्थित उनके घर के बाहर गोलियों से भून दिया गया था।
साभार: bhaskarhindi
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