आज महिलाएं अपने करियर को लेकर गंभीर हैं, वे अपनी जिंदगी का हर फैसला स्वयं कर रहीं हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाओं की दशा सुधरी नहीं है। मागर भारत का संविधान देश की सभी महिलाओं को विशेष रूप से लिंग समानता को सुरक्षित करने के प्रावधान प्रदान करता है। महिलाओं से जुड़े ऐसे कई कानून हैं, जिनकी जानकारी के बिना वे अधूरी हैं।
महिलाओं के अधिकार-
समान वेतन- समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता।
वर्किंग प्लेस में उत्पीड़न- यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को वर्किंग प्लेस पर हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है। केंद्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को 90 दिन की पेड लीव दी जाएगी।
मातृत्व संबंधी लाभ- मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत मैटरनिटी बेनिफिट्स हर कामकाजी महिलाओं का अधिकार है। मैटरनिटी बेनिफिट्स एक्ट के तहत एक प्रेग्नेंट महिला 26 सप्ताह तक मैटरनिटी लीव ले सकती है। इस दौरान महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती है।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज- गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक (लिंग चयन पर रोक) अधिनियम (PCPNDT) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है।
संपत्ति- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है।
पिता की संपत्ति- भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है।
पति की संपत्ति- शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता, लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत न होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है। शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं।
नाम न छापने- यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है, अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है।
घरेलू हिंसा- ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है, आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।
रात में गिरफ्तार न होने- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है। बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है।
पति-पत्नी में न बने तो- अगर पति-पत्नी साथ न रहना चाहें, तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है, अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए, तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है।
गरिमा और शालीनता- किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो, उसपर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए।
मुफ्त कानूनी मदद-रेप की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। पुलिस थानाध्यक्ष के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे।
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