भारत के न्याय तंत्र में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों और स्वयं शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह सार्वजनिक कर दिया है। अब आम नागरिक भी सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर जान सकते हैं कि किसी जज की नियुक्ति किन आधारों और प्रक्रियाओं के तहत की गई है।
क्या है इस पहल में खास? इस पहल के तहत सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 9 नवंबर, 2022 से 5 मई, 2025 के बीच हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्तियों से जुड़े सभी प्रस्ताव अपलोड किए गए हैं। इसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारियाँ शामिल हैं:
जज का नाम और संबंधित हाईकोर्ट
उनकी पृष्ठभूमि: क्या वे न्यायिक सेवा से हैं या बार (वकालत) से
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिश की तिथि
भारत सरकार के न्याय विभाग की अधिसूचना की तिथि
वास्तविक नियुक्ति की तिथि
विशेष श्रेणी (SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक/महिला) का विवरण
क्या संबंधित व्यक्ति किसी मौजूदा या सेवानिवृत्त जज के परिवार से हैं
यह कदम केवल नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता को सुनिश्चित नहीं करता, बल्कि इसमें वह भी शामिल है जिसे अक्सर ‘सिस्टम के भीतर नेटवर्क’ या पारिवारिक विरासत के रूप में देखा जाता है। इससे जनता यह जान पाएगी कि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और योग्यता आधारित है या नहीं।
संपत्ति का विवरण भी हुआ सार्वजनिक इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2025 को एक सर्वसम्मत निर्णय लेकर यह तय किया कि सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों की संपत्ति का विवरण भी सार्वजनिक डोमेन में लाया जाएगा। पहले से प्राप्त विवरण वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए हैं और जैसे-जैसे अन्य जजों का विवरण प्राप्त होगा, उसे भी अपडेट किया जाएगा।
जनता की भागीदारी और विश्वास को बढ़ाने की दिशा में पहल सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह निर्णय जनता की जानकारी और जागरूकता को बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है। इससे न्यायपालिका के प्रति आम नागरिकों का विश्वास और पारदर्शिता और अधिक मजबूत होगी।
यह पहल क्यों है ऐतिहासिक? यह पहली बार है जब न्यायपालिका ने अपने भीतर की प्रक्रिया को इतनी विस्तृत और व्यवस्थित रूप में सार्वजनिक किया है।
इससे न्यायाधीशों की जवाबदेही को संस्थागत रूप से बल मिलेगा।
लोकतंत्र में संस्थाओं की पारदर्शिता और अखंडता की दिशा में यह एक अनुकरणीय उदाहरण बनेगा।
सुप्रीम कोर्ट की यह पहल केवल एक सूचना भर नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र में न्यायपालिका की नैतिक शक्ति और पारदर्शिता की प्रतीक है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस कदम के बाद देश की अन्य संवैधानिक संस्थाएं भी जन-जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में ठोस कदम उठाएँगी।
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