देशभर में वक्फ संपत्तियों को लेकर लंबे समय से चल रहे विवादों के बीच वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 अब संवैधानिक जांच के घेरे में आ गया है। सोमवार, 5 मई को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली पांच याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, जिनमें एक याचिका हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर की गई है।
अधिनियम पर आपत्ति क्यों? वक्फ (संशोधन) अधिनियम, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद अप्रैल में अधिसूचित किया गया, संसद में तीखी बहस के बाद पारित हुआ था। लोकसभा में जहां 288 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट किया, वहीं 232 ने विरोध जताया। राज्यसभा में भी समर्थन और विरोध के बीच स्पष्ट मतभेद रहे।
इस अधिनियम के कुछ प्रमुख बिंदुओं को लेकर कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के उल्लंघन के रूप में देखा है। उनका आरोप है कि यह संशोधन धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन करता है और वक्फ संपत्तियों पर सरकार का हस्तक्षेप बढ़ाता है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी 17 अप्रैल को पिछली सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने इस अधिनियम पर गंभीर सवाल खड़े किए। अदालत ने पूछा कि गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में नियुक्त करने का क्या आधार है। अदालत ने केंद्र से यह भी स्पष्ट करने को कहा कि “वक्फ बाय यूजर” जैसे विवादास्पद प्रावधान कैसे लागू किए जा सकते हैं।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक ‘वक्फ बाय यूजर’ समेत किसी भी संपत्ति को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद या राज्य वक्फ बोर्डों में कोई नई नियुक्ति की जाएगी। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम संसद द्वारा गहन विचार-विमर्श के बाद पारित हुआ है और बिना सरकार का पक्ष सुने इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए।
क्या है ‘वक्फ बाय यूजर’? इस प्रावधान के तहत, किसी भी ऐसी संपत्ति को वक्फ घोषित किया जा सकता है जिसका लंबे समय से धार्मिक उपयोग होता रहा हो — भले ही उस पर कानूनी स्वामित्व किसी और का क्यों न हो। यही प्रावधान विवाद और आशंका का केंद्र बना हुआ है, क्योंकि इससे स्वामित्व अधिकारों और भूमि विवादों में बढ़ोतरी की आशंका है।
आगे क्या होगा? आज की सुनवाई में केंद्र सरकार को प्रारंभिक जवाब दाखिल करना है, जिसके बाद कोर्ट यह तय करेगा कि अधिनियम पर कोई अंतरिम रोक लगाई जाए या नहीं। यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकार और विधायी प्रक्रिया की पारदर्शिता जैसे मूलभूत मुद्दों से जुड़ा हुआ है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने वाले समय में देश की धार्मिक और कानूनी व्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
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