सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में अंतरिम राहत प्रदान करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि जब तक एक परिवार की नागरिकता की वैधता की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए। यह मामला बेंगलुरु निवासी एक व्यक्ति और उसके परिवार से जुड़ा है, जिन पर पाकिस्तान का नागरिक होने का आरोप लगाकर निर्वासन की प्रक्रिया शुरू की गई है।
याचिकाकर्ताओं का स्पष्ट दावा है कि वे भारतीय नागरिक हैं और उनके पास पासपोर्ट, आधार, पैन और मतदाता पहचान पत्र जैसे सभी आवश्यक दस्तावेज मौजूद हैं। इसके बावजूद, कुछ सदस्यों को हिरासत में लेकर निर्वासन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
क्या है मामला? याचिकाकर्ता नंद किशोर के माध्यम से कोर्ट को बताया गया कि छह सदस्यों वाला यह परिवार—जिसमें पति-पत्नी और उनके चार बच्चे शामिल हैं—वर्तमान में श्रीनगर में रह रहा है। परिवार का मुखिया बेंगलुरु में कार्यरत है।
मामले की जड़ 1987 में जुड़ी है, जब परिवार के मुखिया के पिता पाकिस्तानी पासपोर्ट पर भारत आए थे। उनका जन्म मुजफ्फराबाद में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में आता है। उन्होंने बाद में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में अपना पासपोर्ट सरेंडर कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की पुष्टि आवश्यक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक अधिकारियों की ओर से दस्तावेजों की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक परिवार के खिलाफ कोई सख्त कदम न उठाया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता अगर सरकारी निर्णय से संतुष्ट नहीं होता, तो उसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की पूरी आज़ादी होगी।
क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण? यह मामला केवल एक परिवार के निर्वासन का नहीं, बल्कि भारतीय नागरिकता की जटिलताओं और मानवीय पहलुओं से जुड़ा है। एक ओर सरकार का कहना है कि वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद व्यक्ति भारत में नहीं रह सकता, वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता का दावा है कि वह जन्म से ही भारत में रह रहा है और उसके पास सभी वैध दस्तावेज हैं।
सरकार और याचिकाकर्ता के बीच तकरार सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि पांच जजों की संविधान पीठ का स्पष्ट फैसला है—अगर वीजा समाप्त हो चुका है, तो व्यक्ति को भारत में रहने का अधिकार नहीं है।
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने पलटवार करते हुए कहा कि उनके मुवक्किल भारत के नागरिक हैं और वीजा की बात उनके मामले में लागू नहीं होती, क्योंकि वे वर्षों से भारत में रह रहे हैं और सरकारी दस्तावेजों से नागरिकता सिद्ध कर सकते हैं।
क्या है आगे का रास्ता? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि मामला बहुत संवेदनशील और तथ्यों से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह आदेश इस विशेष मामले की परिस्थितियों के आधार पर दिया जा रहा है और इसे मिसाल के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे निष्पक्ष जांच करें और निष्कर्ष तक पहुंचने तक किसी भी प्रकार की कड़ी कार्रवाई से बचें।
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