दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में 2024-25 के छात्रसंघ चुनाव में एक नया मोड़ आया है। इस बार वामपंथी गठबंधन ने अध्यक्ष समेत तीन प्रमुख पदों पर जीत दर्ज की, जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने संयुक्त सचिव के पद पर कब्जा जमाया। इस चुनाव में एबीवीपी की एक दशक बाद वापसी ने कैंपस की राजनीति में नई ऊर्जा का संचार किया।
वामपंथी गठबंधन का दबदबा
इस साल के चुनावों में वामपंथी छात्र संगठन—आइसा और डीएसएफ—ने अपना दबदबा कायम रखते हुए जेएनयूएसयू के तीन प्रमुख पदों पर जीत हासिल की। अध्यक्ष पद पर नीतीश कुमार (आइसा) ने जीत दर्ज की, उपाध्यक्ष पद पर मनीषा (डीएसएफ) और महासचिव पद पर मुन्तेहा फातिमा (डीएसएफ) ने सफलता पाई। इन तीनों नेताओं ने छात्रों के कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई और सुनिश्चित किया कि उनकी आवाज हर मोर्चे पर सुनी जाएगी।
एबीवीपी की महत्वपूर्ण जीत
वहीं, एबीवीपी ने भी इस चुनाव में ऐतिहासिक सफलता हासिल की। एबीवीपी के उम्मीदवार वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव के पद पर जीत हासिल की, जिससे वह एक दशक बाद इस पद पर जीतने वाले पहले उम्मीदवार बने। इसके अलावा, एबीवीपी ने काउंसलर चुनावों में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 42 में से 23 सीटों पर कब्जा किया। यह एबीवीपी का 1999 के बाद का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। एबीवीपी ने स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज और स्कूल ऑफ संस्कृत एंड इंडिक स्टडीज में भी बढ़त हासिल की, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि उनका कैंपस में प्रभाव अब भी बरकरार है।
मतगणना में बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा
इस बार के चुनाव में मतगणना के दौरान एबीवीपी के उम्मीदवार शुरूआत में सभी चार केंद्रीय पैनल पदों पर आगे थे, लेकिन अंत में वामपंथी गठबंधन ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव पदों पर विजय प्राप्त की। एबीवीपी की हार का अंतर बहुत कम था, जो जेएनयू कैंपस की राजनीति में बदलाव का संकेत देता है। यह चुनाव एक महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट साबित हुआ है, क्योंकि यह दर्शाता है कि जेएनयू में वामपंथी और दक्षिणपंथी छात्र संगठनों के बीच की लड़ाई अब और तीव्र हो गई है।
नवनिर्वाचित नेताओं की प्रतिबद्धता
नवनिर्वाचित अध्यक्ष नीतीश कुमार (आइसा) ने छात्रों को आश्वस्त करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य छात्रों की आवाज को मजबूती से उठाना और उनके कल्याण के लिए काम करना रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि उनका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि हर छात्र का सम्मान किया जाए।
वहीं, नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष मनीषा (डीएसएफ) ने विश्वविद्यालय को जीत का श्रेय दिया और कहा कि जेएनयू हमेशा लाल रहेगा और उन्होंने हमेशा छात्रों की आवाज उठाई है। महासचिव मुन्तेहा फातिमा (डीएसएफ) ने कहा कि उनका संगठन हमेशा छात्रों के अधिकारों के लिए लड़ता रहेगा।
संयुक्त सचिव पद पर जीते एबीवीपी के वैभव मीणा ने अपनी जीत को महत्वपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह एक दशक बाद आई जीत है और वे आने वाले चुनावों में पूरी टीम के साथ सभी चार सीटें जीतने का लक्ष्य रखते हैं।
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2024-25 ने यह साबित कर दिया कि कैंपस की राजनीति में बदलाव हो रहा है। जहां वामपंथी छात्र संगठन अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए हैं, वहीं एबीवीपी की वापसी ने यह संकेत दिया कि अब तक के प्रमुख राजनीतिक संघर्षों में नई ऊर्जा आ रही है। आने वाले समय में जेएनयू की राजनीति और भी दिलचस्प होने वाली है, क्योंकि छात्रों के अधिकारों और कल्याण के लिए इन संगठनों के बीच की यह लड़ाई और भी तेज हो सकती है।
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