कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की आयु में वेटिकन सिटी में निधन हो गया। वे लंबे समय से श्वसन संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। डबल निमोनिया और ब्रोंकाइटिस की गंभीर स्थिति के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां शनिवार शाम को उनकी हालत बिगड़ गई और फिर उनका निधन हो गया।
पोप फ्रांसिस: एक करुणामयी और प्रगतिशील आवाज पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बेर्गोलियो था, कैथोलिक चर्च के इतिहास में पहले लैटिन अमेरिकी और पहले येसुइट पोप थे। उन्होंने 2013 में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के इस्तीफे के बाद पदभार संभाला था। अपनी नर्मदिली, समाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और गरीबों के प्रति करुणा के लिए वे दुनियाभर में विख्यात थे।
अंतिम मुलाकात और बिगड़ती तबीयत निधन से एक दिन पूर्व उन्होंने अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से मुलाकात की थी। हालांकि, बीते एक सप्ताह से उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी। उन्हें 14 फरवरी को ब्रोंकाइटिस और निमोनिया की शिकायत के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया था। डॉक्टरों ने उनकी ‘जटिल नैदानिक स्थिति’ के चलते उपचार में बदलाव किया, लेकिन स्थिति लगातार नाज़ुक बनी रही।
धार्मिक कार्यक्रम रद्द, प्रार्थनाओं से रही दूरी स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे सेंट पीटर्स स्क्वायर में होने वाली पारंपरिक रविवार की प्रार्थना और अन्य कैथोलिक जयंती वर्ष के आयोजनों में शामिल नहीं हो सके। डॉक्टरों ने उन्हें पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी, लेकिन शनिवार शाम वेटिकन ने पुष्टि की कि “लंबे समय से सांस लेने में कठिनाई के बाद” उनकी हालत अत्यधिक बिगड़ गई।
कैमरलेन्गो कार्डिनल केविन फेरेल ने दी निधन की घोषणा वेटिकन के वरिष्ठ अधिकारी और खजाना प्रमुख कैमरलेन्गो कार्डिनल केविन फेरेल ने पोप फ्रांसिस के निधन की औपचारिक घोषणा की। कार्डिनल फेरेल का दायित्व है कि वे पोप की अनुपस्थिति या निधन की स्थिति में प्रशासनिक कार्य संभालें।
विश्वव्यापी शोक और श्रद्धांजलि पोप फ्रांसिस के निधन की खबर से पूरे विश्व में 1.4 अरब कैथोलिक अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई है। दुनियाभर के नेता, धार्मिक संस्थान, और आम नागरिक सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं आयोजित की जा रही हैं और मोमबत्तियाँ जलाई जा रही हैं।
पोप फ्रांसिस की विरासत उनकी शिक्षाएं, करुणा, और दुनिया को एकजुट करने का प्रयास आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने अपने जीवन में यह सिखाया कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि सेवा और सहानुभूति भी है।
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