जब कोई साधारण पृष्ठभूमि से निकला युवा अपने सपनों को पंख देता है, तो वह न केवल अपना मुकाम बनाता है, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा बन जाता है। ऐसी ही एक कहानी है भारत की उभरती हुई स्टार शूटर सुरुचि इंदर सिंह की, जिन्होंने लगातार दूसरी बार ISSF वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल जीतकर न केवल देश का गौरव बढ़ाया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि सपने अगर सच्चे जज़्बे से देखे जाएं, तो वे ज़रूर पूरे होते हैं।
हरियाणा की धरती से निकली ‘सटीक निशाना’ लगाने वाली बेटी हरियाणा के एक सामान्य परिवार में जन्मीं सुरुचि ने एक समय पर वही सपने देखे, जो वहां की ज़्यादातर लड़कियों को दिखाए जाते हैं — कुश्ती में करियर, क्योंकि राज्य में इस खेल की गहरी जड़ें हैं। लेकिन स्कूल के दिनों में पहली बार जब सुरुचि ने राइफल थामी, तो उन्हें अहसास हुआ कि उनकी पहचान इस खेल में है, जहां शांति, एकाग्रता और सटीकता की ज़रूरत होती है। और तभी से शुरू हुआ एक ऐसा सफर, जो आज लाखों युवाओं की प्रेरणा बन गया है।
गुरु द्रोणाचार्य शूटिंग अकादमी में तराशा हुनर भिवानी स्थित गुरु द्रोणाचार्य शूटिंग अकादमी में सुरुचि ने कोच सुरेश सिंह के मार्गदर्शन में अपने निशाने को और सटीक बनाया। उन्होंने घंटों की कठिन ट्रेनिंग, अनुशासन और मानसिक संतुलन के बल पर खुद को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।
लगातार दो वर्ल्ड कप गोल्ड: भारत की बेटी की धमाकेदार वापसी सुरुचि ने ISSF वर्ल्ड कप में लगातार दो बार स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया को दिखा दिया कि भारत की बेटियां किसी भी मंच पर पीछे नहीं हैं। ये जीत केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह उन तमाम लड़कियों के लिए एक संदेश थी कि सही दिशा, मार्गदर्शन और मेहनत से हर सपना हकीकत में बदला जा सकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी रही हैं चमकदार प्रदर्शन की मिसाल इससे पहले भी सुरुचि ने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतकर खुद को साबित किया है। उन्होंने बार-बार अपने प्रदर्शन से यह दिखाया है कि वे सिर्फ एक खेल की खिलाड़ी नहीं, बल्कि आने वाले समय में भारत की सबसे भरोसेमंद निशानेबाजों में से एक बनने जा रही हैं।
नई पीढ़ी की प्रेरणा आज सुरुचि की कहानी सिर्फ एक स्पोर्ट्स जर्नी नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सीमाओं को तोड़ने, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने, और खुद पर विश्वास रखने की एक मिसाल है। वे उन लाखों लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं, जो खेल को अपना करियर बनाना चाहती हैं लेकिन सामाजिक या पारिवारिक दायरों से जूझ रही हैं।
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