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मराठा पराक्रम की जीवंत गाथा: छत्रपति शिवाजी महाराज व उनके अभेद्य किलों की कहानी

by Hamara Ghaziabad Staff
April 18, 2025
in जानकारी
मराठा पराक्रम की जीवंत गाथा: छत्रपति शिवाजी महाराज व उनके अभेद्य किलों की कहानी
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भारतवर्ष का इतिहास जब-जब वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की बात करता है, तब-तब छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित दिखाई देता है। वे केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक रणनीतिकार, कुशल प्रशासक और महान राष्ट्रनिर्माता भी थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी और उसे मजबूत स्तंभों पर खड़ा किया।
शिवनेरी से आरंभ हुई एक महान गाथा
19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में जन्मे शिवाजी राजे भोंसले ने बचपन से ही वीरता और राष्ट्रभक्ति के संस्कार पाए। उनकी माता जीजाबाई ने उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियों से ओतप्रोत किया, जिससे उनमें एक दृढ़ और धर्मनिष्ठ राजा बनने के गुण विकसित हुए। उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर सल्तनत के दरबार में एक उच्च अधिकारी थे, पर शिवाजी ने हमेशा स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राज्य की कल्पना की।
तोरणा से शुरू हुआ विजय अभियान
शिवाजी का पहला सैन्य अभियान केवल 15 वर्ष की आयु में शुरू हुआ जब उन्होंने 1645 में तोरणा किले पर कब्जा कर लिया। यह जीत केवल एक किला जीतने की घटना नहीं थी, बल्कि एक क्रांति की शुरुआत थी। अगले ही वर्ष 1646 में रायगढ़ के युद्ध में उन्होंने बीजापुर के जनरल मुल्ला अली को पराजित कर रायगढ़ पर कब्जा जमाया और इसे अपनी राजधानी बनाया।
शिवाजी महाराज के विजय क्रम में शामिल प्रमुख किले
शिवाजी महाराज ने जीवन भर जिस वीरता और रणनीति से किले जीतें, वे आज भी हमारी धरोहर हैं। उनके द्वारा जीते गए कुछ प्रमुख किलों में शामिल हैं:
रायगढ़ – मराठा साम्राज्य की राजधानी
राजगढ़ – सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण
प्रतापगढ़ – अफजल खां के विरुद्ध ऐतिहासिक जीत का साक्षी
शिवनेरी – उनका जन्मस्थान
सिंहगढ़ – जहां तानाजी ने बलिदान देकर विजय दिलाई
लोहगढ़, पुरंदर, जुन्नार, सिंधुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला, विजयदुर्ग, खंडेरी, साल्हेर – मराठा पराक्रम के प्रतीक
मुगलों से संघर्ष और पुरंदर की संधि
1665 में औरंगजेब की साज़िश के तहत आमेर के राजा जय सिंह प्रथम ने शिवाजी से संधि की, जिसके चलते शिवाजी को 23 किले मुगलों को देने पड़े। लेकिन इस संधि के बदले उन्हें स्वतंत्रता की मान्यता मिली, जिससे मराठा साम्राज्य की अस्मिता को मजबूती मिली। हालांकि यह एक अस्थायी समझौता था, क्योंकि जल्द ही शिवाजी को औरंगजेब के धोखे का पता चल गया।
औरंगजेब की कैद से भागकर फिर से विजय यात्रा
आगरा में औरंगजेब द्वारा कैद किए जाने के बाद शिवाजी महाराज अपने पुत्र संभाजी के साथ चमत्कारिक रूप से वहां से भाग निकले। इसके बाद उन्होंने फिर से अपने खोए हुए किलों पर धावा बोला और एक-एक कर सभी किले वापस जीत लिए। उन्होंने दक्षिण भारत में मुगलों के पांव जमने नहीं दिए और उनके विजय अभियान को ठप कर दिया।
“गढ़ आया पर सिंह गया” – तानाजी की अमर गाथा
सिंहगढ़ की लड़ाई में तानाजी मालुसरे की शहादत मराठा इतिहास की सबसे प्रेरणादायक घटनाओं में से एक है। शिवाजी महाराज ने इस बलिदान पर कहा था, “गढ़ तो आया पर सिंह चला गया।” यह वाक्य मराठा बलिदान की गूंज बन गया।
छत्रपति की उपाधि और मराठा झंडे का विस्तार
6 जून 1674 को रायगढ़ में शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक हुआ और उन्हें ‘छत्रपति’ की उपाधि मिली। इसके बाद उन्होंने मराठा झंडे को महाराष्ट्र, कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु के जिंजी तक फहराया। उनकी विजयों में दक्षिण का सुवर्णदुर्ग, खंडेरी, साल्हेर और विजयदुर्ग जैसे किले शामिल रहे।
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