ढाका — दक्षिण एशिया में तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच बांग्लादेश और पाकिस्तान ने 15 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद विदेश सचिव स्तर की वार्ता फिर शुरू की है। यह ऐतिहासिक बैठक गुरुवार को ढाका में आयोजित हुई, जिसमें दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों ने व्यापार, द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय सहयोग से जुड़े मुद्दों पर गंभीर चर्चा की।
बांग्लादेश के विदेश सचिव जशीम उद्दीन और पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलूच के बीच हुई यह मुलाकात दोनों देशों के रिश्तों में नई संभावनाओं का संकेत देती है। गौरतलब है कि इससे पहले आखिरी बार विदेश कार्यालय परामर्श (Foreign Office Consultation – FOC) वर्ष 2010 में हुआ था। बलूच इस बैठक के लिए एक दिन पहले, बुधवार को ढाका पहुंची थीं।
क्यों अहम है यह वार्ता? यह बातचीत सिर्फ औपचारिकता भर नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में उभरते शक्ति समीकरणों के बीच एक रणनीतिक कदम के रूप में देखी जा रही है। हाल ही में भारत-बांग्लादेश संबंधों में खिंचाव की स्थिति बनी है, विशेषकर भारत द्वारा बांग्लादेश को दी जाने वाली ट्रांसशिपमेंट सुविधा को अचानक बंद कर दिए जाने के बाद।
भारत के इस निर्णय से बांग्लादेश को भूटान, नेपाल और म्यांमार जैसे देशों से होने वाले व्यापार में भारी असर पड़ने की आशंका है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने 8 अप्रैल को एक सर्कुलर जारी कर इस फैसले की जानकारी दी थी, जिसके बाद ढाका में चिंता की लहर दौड़ गई।
इस परिस्थिति में पाकिस्तान की बांग्लादेश के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश को एक कूटनीतिक अवसर के रूप में देखा जा रहा है। पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार भी आने वाले दिनों में ढाका का दौरा करने वाले हैं, जिससे संकेत मिलते हैं कि दोनों देश रिश्तों को एक नई दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं।
कूटनीतिक सौजन्य और संभावनाएं वार्ता के अलावा, पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलूच ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ. मोहम्मद यूनुस और विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन से भी शिष्टाचार भेंट की। इन मुलाकातों को बांग्लादेश के भीतर पाकिस्तान की छवि को सशक्त करने और विश्वास बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
नए युग की शुरुआत? भारत की ओर से ट्रांसशिपमेंट सुविधा की वापसी की फिलहाल कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है। ऐसे में बांग्लादेश को अपने विकल्प तलाशने होंगे। पाकिस्तान के साथ इस तरह की वार्ताएं केवल राजनीतिक सन्देश नहीं हैं, बल्कि आर्थिक और रणनीतिक विकल्पों की तलाश भी हैं।
15 वर्षों बाद हुई यह वार्ता शायद दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की शुरुआत हो, जो आगे चलकर क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग का एक नया अध्याय लिख सकती है।
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